सियासी आंच पर गर्माता आंदोलन
१३ अगस्त २०१२भ्रष्टाचार में घिरी सरकार को इस मुद्दे पर सांस लेने तक की फुर्सत नहीं मिल पा रही है. अभी अन्ना हजारे का आंदोलन ठीक से सिमटा भी न था कि स्वामी रामदेव के प्रदर्शन ने आंच को हवा दे दी. तीन दिनों तक दिल्ली में जब अनशन करने पर कोई सुनवाई नहीं हुई, तो रामदेव अपने काफिले के साथ संसद की तरफ निकल पड़े और रास्ते में गिरफ्तार कर लिए गए.
योग गुरु ने इसे भी साजिश करार दिया, "दिल्ली पुलिस केंद्र सरकार के हाथों की कठपुतली है. हम लोग शांति भंग करने के लिए कुछ नहीं कर रहे थे. हम तो संसद की तरफ जा रहे थे ताकि हमारी बात सुनी जा सके. हम लोग कानून और व्यवस्था का सम्मान करेंगे."
दुनिया के सबसे चर्चित योग गुरुओं में शामिल रामदेव के मानने वालों की संख्या अच्छी खासी है और दिल्ली में हजारों हजार की तादाद में लोग जमा हैं. जब खुली गाड़ी में सवार रामदेव संसद की ओर निकले, तो दिल्ली पुलिस को रास्ता रोकने में खासी मशक्कत करनी पड़ी. पिछली बार के प्रदर्शन के दौरान गिरफ्तारी से बचने के लिए रामदेव को औरतों के कपड़े पहन कर भागना पड़ा था लेकिन इस बार उन्होंने खुद को गिरफ्तार हो जाने दिया. समाचार एजेंसी एएफपी ने दिल्ली पुलिस के संयुक्त कमिश्नर ताज हसन के हवाले से रिपोर्ट दी है, "बाबा रामदेव ने खुद ही प्रस्ताव रखा कि उन्हें गिरफ्तार किया जाए. हम लोग एहतियात के तौर पर दूसरी गिरफ्तारियां भी कर रहे हैं."
नेताओं का साथ
रामदेव की गिरफ्तारी से उनका प्रदर्शन कमजोर होगा, दावे के साथ नहीं कहा जा सकता क्योंकि गुरुवार से धरने पर बैठे योग गुरु को सोमवार को अचानक राजनीति का साथ मिलने लगा. बीजेपी और जेडीयू के अध्यक्ष धरना स्थल पर पहुंच गए. बीजेपी प्रमुख नितिन गडकरी ने उन्हें पार्टी का समर्थन देते हुए कहा, "आप इस लड़ाई में खुद को अलग मत मानिए." गडकरी का कहना है, "बाबा रामदेव भ्रष्टाचार मुक्त भारत के लिए संघर्ष कर रहे हैं. जो काला धन विदेशी बैंकों में रखा है, उसे वापस लाकर किसानों और गरीबों में खर्च किया जाना चाहिए."
बीएसपी की मुखिया मायावती भी काले धन के मुद्दे पर साथ देने को तैयार हैं. उनका कहना है कि अगर केंद्र सरकार ने वक्त पर सही कदम उठाया होता, तो सुप्रीम कोर्ट को इसमें दखल नहीं देनी पड़ती, "हमने उन सभी संगठनों का साथ दिया है, जो भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ना चाहती हैं. यह एक गंभीर मुद्दा है और सभी पार्टियों को मिल कर इसके खिलाफ आवाज उठानी चाहिए."
हालांकि कांग्रेस ने इस पूरे मुहिम को अलग रंग देने की कोशिश की है. प्रवक्ता जनार्दन द्विवेदी का कहना है कि गडकरी और यादव जिस तरह से रामदेव के पास गए, उससे साबित हो जाता है कि उनकी मिलीभगत है, "आपको याद होगा कि कुछ दिनों पहले तक राजनीति में मुखौटों की बात हो रही थी. देश ने आज देख लिया कि मुखौटे उतर गए और चेहरे सामने आ गए."
कितना काला धन
रामदेव की मुख्य मुहिम काले धन को लेकर है. मीडिया रिपोर्टों में दावा किया जाता है कि भारत का करीब 1400 अरब डॉलर यूरोपीय बैंकों में जमा है. हालांकि स्विट्जरलैंड इस दावे को गलत बताता है और कहता है कि यह रकम मुश्किल से दो अरब डॉलर होगा. भारतीय जांच एजेंसी सीबीआई ने हालांकि भारतीय सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि यह रकम 500 अरब होनी चाहिए, लेकिन बाद में सरकार ने सफाई दी कि सीबीआई का बयान मीडिया रिपोर्टों पर आधारित है.
यूरोप में स्विट्जरलैंड, लक्जमबर्ग और लिश्टेनश्टाइन देशों में भारत का काला धन पड़ा होने की बात कही जाती है. जर्मनी भी काले धन से निपटने की कोशिश कर रहा है और रिपोर्टें हैं कि बैंक के खाताधारकों की एक सीडी उसके पास पहुंच गई है, जो वह भारत से बांटने को तैयार है. विदेशी खातों में जमा पैसों के मालिकों के बारे में कोई जानकारी नहीं है, अलबत्ता मीडिया का कयास है कि इसमें कुछ बड़े नेताओं का पैसा होगा. भारत में काले धन के मामले में एकमात्र गिरफ्तारी हसन अली खान के रूप में हुई है. बताया जाता है कि पुणे के इस कारोबारी के 36,000 करोड़ रुपये विदेशी बैंकों में हैं. हालांकि जानकार अली को छोटी मछली ही मानते हैं.
अलग अलग आंदोलन
रामदेव के अलावा अन्ना हजारे और उनकी टीम भी भारत में भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन कर रही हैं. पिछले महीने दिल्ली में आंदोलन के बाद उन्होंने राजनीतिक पार्टी बनाने का फैसला किया है, जिसका एलान अक्तूबर में हो सकता है. लेकिन रामदेव के आंदोलन में कूदने से अच्छी खासी गर्मी बढ़ गई है. यहां तक कि दलाई लामा ने भी उनका समर्थन किया है. दलाई लामा का कहना है, "मैंने हमेशा साफगोई से कहा है कि भ्रष्टाचार एक तरह की हिंसा है, जिससे पैसों के क्षेत्र में दूसरों को नुकसान पहुंचाया जा सकता है."
रामदेव की गिरफ्तारी सांकेतिक ही हो सकती है और उन पर कोई गंभीर आरोप लगाना तर्कसंगत नहीं दिखता. ऐसे में उनका अगला कदम भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष में अहम साबित हो सकता है.
रिपोर्टः अनवर जे अशरफ (एएफपी, डीपीए, रॉयटर्स, पीटीआई)
संपादनः आभा मोंढे