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सिनेमा में वर्चुअल रियलिटी की दस्तक

२० जनवरी २०१७

वर्चुअल रियलिटी तकनीक सिनेमा की दुनिया को बदलने के लिए तैयार है. इससे ना केवल सामने के पर्दे पर बल्कि फिल्म देखते समय आपके चारों ओर यानि पूरे 360 डिग्री पर भी फिल्म के नजारे होंगे.

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Symbolbild Frau mit Virtual Reality Brille
तस्वीर: Imago/Westend61

वर्चुअल रियलिटी धीरे धीरे सिनेमा हॉल का रुख कर रही है. लंदन की कंपनी हैप्पी फिनिश सिनेमा में वर्चुअल रियलिटी को दाखिल करवाने में अगुआ मानी जाती है. अभी तो वर्चुअल रियलिटी में सिर्फ छोटे वीडियो उपलब्ध हैं, 360 डिग्री के ऑप्टिक में और 3 डी में. सामान्य पर्दे पर आभास भर किया जा सकता है कि ऐनक की मदद से दरअसल क्या देखा जा रहा है.

हैप्पी फिनिश से जुड़े एड ओ'ब्रायन कहते हैं, "जब मैं फिल्म को स्क्रीन पर देखता हूं तो मुझे माउस का इस्तेमाल करना पड़ता है. लेकिन जब मेरी आंखों पर गॉगल्स होते हैं तो मैं गॉगल्स को इधर उधर घुमा सकता हूं और वह ऑटोमैटिकली तस्वीर को एडजस्ट कर देता है. इसकी यही खासियत है, ऐसा लगता है कि सबकुछ आम जिंदगी में देख रहे हैं.”

देखिए 3डी प्रिंटिंग से मिला नया जीवन

वर्चुअल रियलिटी वाली फिल्मों के जरिए सीन और लैंडस्केप को जीवंत बनाया जा सकता है. लेकिन एक्शन सीनों के साथ क्या हो? हैप्पी फिनिश कंपनी ने सिनेमा के विभिन्न तत्वों के साथ पहली बार चारों तरफ से दिखने वाले एक कमरे में एक्सपेरिमेंट किया है. इसे 2 से लेकर 16 कैमरों की मदद से फिल्माया जाता है.

ऑडियो और लाइट इफेक्ट्स की मदद से दर्शकों की नजर वहां पहुंचायी जाती है जहां कुछ हो रहा हो और वह कुछ सिर्फ इसलिए मिस नहीं करता क्योंकि वह ठीक उस समय किसी और दिशा में देख रहा था. 

हैप्पी फिनिश के डैनियल चीथम कहते हैं, "वर्चुअल रियलिटी तकनीक सिनेमा की दुनिया को बदलने के लिए तैयार है. इससे ना केवल सामने के पर्दे पर बल्कि फिल्म देखते समय आपके चारों ओर यानि पूरे 360 डिग्री पर भी फिल्म के नजारे होंगे."

देखिए सैटेलाइट की आंख से

एक उदाहरण दिखाते हुए वे कहते हैं, "इस कमरे में दो मुख्य किरदार खिड़की पर खड़े हैं. मैं उन्हें देख रहा हूं. लेकिन अगर मैं पूरे कमरे को देख पाऊं तो मुझे ज्यादा सूचना मिलती है, पृष्ठभूमि की ज्यादा जानकारी मिलती है. मैं सचमुच वहां हूं, मैं उस माहौल का हिस्सा हूं, मैं उस अनुभव का हिस्सेदार हूं. और कुछ ऐसी भी चीजें हो सकती हैं जो चकित करने वाली हों. भले ही वे प्लॉट का हिस्सा न हों. लेकिन वे संदर्भ को समझने में मदद करती हैं."

बर्लिन के एक वर्चुअल रियलिटी पॉप अप सिनेमा हॉल में लोग अलग अलग तरह की शॉर्ट फिल्म देख सकते हैं. उनमें एक वीडियो भी है जो जॉर्डन के शरणार्थी कैंप की है. एक ऐप की मदद से पूरे वीडियो को 360 डिग्री में मोबाइल फोन पर देखा जा सकता है. यह सिर्फ 2डी में है. गॉगल्स की मदद से वर्चुअल माहौल 3डी में देखा जा सकता है. रिपोर्टिंग और दस्तावेजी वीडियो के मामलों में वर्चुअल रियलिटी बहुत फायदेमंद साबित हो सकती है. फिल्मों में वर्चुअल रियलिटी की संभावनाएं और सीमाएं क्या हैं, यह अभी तक पूरी तरह से पता नहीं है. आने वाले सालों में इसे टेस्ट किया जाता रहेगा.

देखिए लेजर प्रिंटर से बनेगा विमान

एड ओ'ब्रायन कहते हैं, "इसमें दर्शकों को बहुत ज्यादा सूचना मिलती है और इसमें सिनेमा के मुकाबले चेतना के स्तर पर बहुत ज्यादा सीधा अनुभव होता है. इनमें विजुअल सिमुलेशन होता है. ऑडियो सिमुलेशन होता है और हाथों को दूसरे लोगों के साथ इंटरएक्ट करते देखा जा सकता है. इसमें बहुत सारे एक्स्ट्रा तत्व हैं जो सिनेमा में नहीं हैं. यह सचमुच सिनेमा को बेसिक बनाता है.”

ये सवाल तो रह ही जाता है कि इन हाई टेक गॉगल्स के साथ सिनेमा हॉल में फिल्म देखना अच्छा लगेगा या घर के ड्रॉइंग रूम में. इस समय तो ये इतना नया है कि लोग अपने अनुभव दूसरों के साथ बांटना चाहते हैं और इसलिए सिनेमा हॉलों को पसंद कर रहे हैं.

याना ओएर्टेल/एके