सिटी बैंक के कर्मचारी ने किया 4 अरब का घपला
२९ दिसम्बर २०१०यह मामले दिल्ली से सटे गुड़गांव में सिटी बैंक की एक ब्रांच के हैं जहां 20 अमीर लोगों के खातों को निशाना बनाया गया है. सिटी इंडिया के बयान में कहा गया है, "हम एक कर्मचारी द्वारा फर्जी दस्तावेजों के आधार पर हुए ट्रांजेक्शंस की छानबीन कर रहे हैं. यह मामला हमारी गुड़गांव शाखा से जुड़ा है." बताया जाता है कि शिवराज पुरी नाम के एक कर्मचारी ने 20 नामी गिरामी लोगों के खातों से लगभग चार अरब रुपये निकाल लिए.
बैंक के बयान के मुताबिक, "हमने तुरंत मामले की सूचना संबंधित नियामक संस्था और जांच अधिकारियों को दे दी है. संदिग्ध लेन देन की गतिविधियों की पहचान की जा चुकी है और हम जांच में पूरा सहयोग करेंगे." पुलिस ने मामले की जांच शुरू कर दी है. बैंक के एक या दो कर्मचारियों पर शक है कि उन्होंने फर्जी निवेश प्रोडक्ट को बेचने के लिए बैंक के लेटरहेड का गलत तरीके से इस्तेमाल किया. इकॉनोमिक्स टाइम्स अखबार ने खबर दी है कि कम समय में अत्यधिक मुनाफे का वादा करने वाली इस स्कीम को लगभग 40 लोगों को बेचा गया. लेकिन इस धांधली का पता इसी महीने उस वक्त चला जब एक ग्राहक ने बैंक के एक सीनियर मैनेजर से इस स्कीम का जिक्र किया.
गुड़गांव के पुलिस कमिश्नर एसएस देसवाल ने बताया है कि मामले में एफआईआर दर्ज कर ली गई है जिसमें पुरी और तीन अन्य लोगों के नाम शामिल है. इसमें कहा गया है कि पुरी ने ग्राहकों से पैसे लेने के लिए उन्हें सेबी की फर्जी अधिसूचना दिखाई. उस पर ग्राहकों से यह दावा करने का भी आरोप लगा है कि निवेश स्कीम को बैंक ने मंजूरी दी है. सूत्रों का कहना है कि पुरी ने अमीर ग्राहकों के खातों से पैसे निकाल कर कुछ अलग खातों में डाल दिए. यह रकम 400 करोड़ रुपये के आसपास हो सकती है.
सिटीग्रुप का कहना है कि इस मामले की वजह से उसके दूसरे खातों, लेन देन और बैंक के ग्राहकों पर कोई असर नहीं होगा. लेकिन इन दिनों भारत में छाए घोटालों की कड़ी में एक और घोटाला तो जुड़ ही गया है. पिछले महीने ही सरकारी बैंकों के कई वरिष्ठ आधिकारियों और एक बीमा करने वाले को 20 करोड़ डॉलर की रिश्वत के मामले में गिरफ्तार किया गया. बताया जाता है कि यह रिश्वत बड़ी प्रोपर्टी के लिए लोन हासिल करने के लिए दी गई.
सिटीग्रुप ने 108 साल पहले कोलकाता से भारत में काम शुरू किया. अब 30 भारतीय शहरों में उसकी 42 शाखाएं हैं.
रिपोर्ट: एजेंसियां/ए कुमार
संपादन: महेश झा