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सिंगुर से पसरती आंदोलन की आग

प्रभाकर मणि तिवारी
२० अक्टूबर २०१६

सुप्रीम कोर्ट ने लगभग दो महीने पहले सिंगुर में टाटा मोटर्स के लिए ली गई जमीन का अधिग्रहण गैरकानूनी करार दिया था. उसके बाद से ही राज्य के विभिन्न स्थानों पर अधिग्रहण के खिलाफ आंदोलनों की बाढ़ आ गई है.

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West Bengal Chef-Ministerin Mamata Bannerjee
तस्वीर: UNI

सिंगुर पर अदालती फैसले ने इन विरोध प्रदर्शन की आग में घी डालने का काम किया है. सिंगुर की तरह ही ऐसे ज्यादातर मामलों में राज्य की पूर्व लेफ्ट फ्रंट सरकार के कार्यकाल में जमीन का अधिग्रहण किया गया था. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी 20 अक्तूबर से सिंगुर के किसानों की जमीन लौटाने की औपचारिक शुरूआत कर रही हैं. इससे पहले बीते महीने 14 तारीख को आयोजित सिंगुर दिवस के दौरान आयोजित समारोह में किसानों को जमीन के पट्टे दिए गए थे.

सिंगुर में समारोह

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी बृहस्पतिवार को सिंगुर में किसानों को लगभग सौ एकड़ जमीन लौटाएंगी. वैसे बीते महीने उनको इस जमीन का पट्टा दिया गया था. लेकिन उसके बाद सरकार इस जमीन को खेती के लायक बनाने का प्रयास कर रही थी. अब वह जमीन खेती लायक हो गई है. इनको औपचारिक रूप से इनके मालिकों को सौंपा जाएगा. इसके साथ ही सरकार की ओर से किसानों को मुफ्त खाद व बीज भी दिए जाएंगे.

राज्य सरकार की ओर से आज तमाम अखबारों में इस बारे में पूरे पेज का विज्ञापन छपवाया गया है. कृषि मंत्री पूर्णेंदु बसु कहते हैं, "वहां के किसान पहले सरसों की खेती करेंगे. इसलिए आज उनको सरसों के बीज दिए जा रहे हैं. उसके बाद उनको जो भी सहायता चाहिए, वह सरकार मुहैया कराएगी." वह बताते हैं कि सिंगुर के गोपालनगर इलाके में 415 एकड़ जमीन को खेती लायक बना दिया गया है.

विरोध-प्रदर्शन
अधिग्रहण के खिलाफ आंदोलन में तेजी की शुरूआत सबसे पहले बर्दवान से हुई. वहां लोगों ने सिंगुर फैसले का हवाला देते हुए वर्ष 2007 में अधिगृहीत अपनी जमीन वापस देने की मांग में धरना शुरू किया. ममता बनर्जी उस जमीन पर मिठाई का हब बनाना चाहती थी. लेकिन स्थानीय लोगों के विरोध को ध्यान में रखते हुए सरकार ने उक्त परियोजना दूसरी जगह शिफ्ट कर दी. उसके बाद ममता ने सिंगुर की रैली में दावा किया कि उनकी सरकार किसानों की जमीन का जबरन अधिग्रहण नहीं करने की अपनी नीति पर कायम है.

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कभी उम्मीद थी टाटा सेतस्वीर: Getty Images/AFP/D. Chowdhury

लेकिन बर्दवान से उठी चिंगारी धीरे-धीरे पुरुलिया, बीरभूम, उत्तर 24-परगना और कोलकाता तक फैलती जा रही है. बीते महीने पुरुलिया के रघुनाथपुर में तीन हजार से ज्यादा किसानों ने 6,300 एकड़ अधिगृहीत जमीन वापस करने की मांग में प्रदर्शन किया. सरकार ने वर्ष 2007 से 2010 के बीच स्टील प्लांट समेत विभिन्न परियोजनाओं के लिए उक्त जमीन का अधिग्रहण किया था. इन किसानों के संगठन नतूनदिही अंचल कृषि समिति के सचिव प्राणेश्वर गांगुली कहते हैं, "जिस तरह सुप्रीम कोर्ट ने सिंगुर की जमीन उसके मालिकों को लौटाने का निर्देश दिया है, हम भी उसी तरह अपनी जमीन वापस चाहते हैं."

पुराने मामले

बीरभूम में भी स्थानीय लोग सरकार की ओर से वर्षों पहले अधिगृहीत 130 एकड़ जमीन पाने के लिए प्रदर्शन कर रहे हैं. लेफ्टफ्रंट सरकार ने यहां आईटी हब बनाने की योजना बनाई थी. अब ममता बनर्जी सरकार यहां स्मार्ट सिटी बनाने की योजना बना रही है. नुरपुर गांव के मीर अमजद अली कहते हैं, "हमें बहुत कम मुआवजा मिला था. साथ में नौकरियों का भरोसा दिया गया था. लेकिन कुछ नहीं हुआ." वह कहते हैं कि अब सिंगुर पर अदालती फैसले ने हमें अपने हक की आवाज उठाने के लिए प्रोत्साहित किया है.

महानगर कोलकाता में भी हाल ही में ऐसे सैकड़ों लोगों ने अपनी जमीन पाने के लिए प्रदर्शन किया. टाउनशिप बनाने के लिए सरकार ने उनकी जमीन का अधिग्रहण किया था. जमीन बचाओ समिति के संयोजक शेख नजीमुद्दीन कहते हैं, "अब सत्ता में आने के बाद तृणमूल कांग्रेस हमारी समस्याओं की अनदेखी कर रही है. हमें जितने पैसे मिलने चाहिए थे, नहीं मिले."

सरकारी दलील

पंचायत मंत्री सुब्रत मुखर्जी कहते हैं, "सिंगुर मामला दूसरे मामलों से अलग है. अब लोग पहले बेची गई जमीन के एवज में और पैसे वसूलने के लिए विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं." तृणमूल कांग्रेस के एक नेता आरोप लगाते हैं, "अब कुछ मौकापरस्त तत्व स्थानीय लोगों को उकसा कर आंदोलन की आग में घी डालने का प्रयास कर रहे हैं." वह कहते हैं कि लेफ्टफ्रंट सरकार ने कई मामलों में गैरकानूनी तरीके से जमीन का अधिग्रहण किया था. सरकार ऐसे मामलों पर पुनर्विचार कर पीड़ित लोगों के पुनर्वास पर विचार कर रही है.