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समाज

जिबाकलाम को फ्रीडम ऑफ स्पीच अवॉर्ड

३ मई २०१८

डॉयचे वेले को दिए एक इंटरव्यू में देश के राजनीतिक हालात पर टिप्पणी करने के बाद ईरान के राजनीतिज्ञ सादिग जिबाकलाम को जेल की कैद सुनाई है. डॉयचे वेले ने इस साहसी आलोचक को फ्रीडम ऑफ स्पीच अवॉर्ड 2018 से नवाजा है.

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dw freedom Prof Sadegh Zibakalam

"मुझे लगता है, मेरा अपराध यह है कि मैंने डॉयचे वेले के साथ एक इंटरव्यू में राजनीति पर अपने विचार रख दिए थे और मेरे विचार सरकार के नजरिये से मेल नहीं खाते." वे आगे कहते हैं, "अगर सरकार कहे कि देश में तनाव का कारण देश के दुश्मन हैं, जो योजना बनाकर ऐसा करा रहे हैं, तो सरकार यह उम्मीद करती है कि हर कोई इस बात को माने और दोहराए."

लेकिन सादिग जिबाकलाम ने ऐसा नहीं किया. जनवरी में उन्होंने डॉयचे वेले की फारसी सेवा को एक इंटरव्यू दिया जिसमें उन्होंने उस वक्त ईरान में चल रहे तनाव पर अपने विचार रखे. देश की चरमराती अर्थव्यवस्था और पूरी राजनीतिक प्रणाली के खिलाफ आवाज उठाने के लिए करीब दस हजार लोग सड़कों पर निकल आए थे. जिबाकलाम ने प्रदर्शन कर रहे लोगों का समर्थन किया और सरकार के आरोपों का खंडन किया. डॉयचे वेले के साथ एक ताजा इंटरव्यू में उन्होंने बताया, "मैंने कहा था कि प्रदर्शन ईरान की जनता ने आयोजित किए हैं, उनमें ईरान के बाहर से किसी का कोई हाथ नहीं है, कोई भी विदेशी ताकत इसमें शामिल नहीं है."

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तेहरान यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जिबाकलामतस्वीर: DW

69 वर्षीय जिबाकलाम को इसके लिए 18 महीने की कैद सुनाई गई. मार्च में ईरान की विशेष अदालत ने उनके खिलाफ फैसला सुनाया. सजा के अनुसार ना केवल उन्हें जेल भेजा जाएगा, बल्कि दो साल के लिए उन पर एक सामाजिक बैन भी लगाया जाएगा. इसका मतलब होगा कि दो साल तक जिबाकलाम कोई इंटरव्यू नहीं दे सकेंगे, कोई लेख नहीं छाप सकेंगे और सोशल मीडिया में भी सक्रिय नहीं रह सकेंगे. जिबाकलाम ने इस सजा के खिलाफ अपील की है. अभी इस पर नया फैसला आना बाकी है.

वे तब तक क्या करें? शांत रहें या कहीं जा कर छिप जाएं? जिबाकलाम के लिए ये विकल्प संभव नहीं हैं. यह सजा उन्हें ट्विटर और फेसबुक पर सक्रिय रहने और खुल कर अपने विचार रखने से रोक नहीं पाई है. वे कहते हैं, "अगर अदालत मुझसे साफ कहे कि प्रोफेसर जिबाकलाम, आपको अब से इंटरव्यू देने की अनुमति नहीं है, तो मैं उनके फैसले का पालन करूंगा. लेकिन उन्होंने ऐसा तो किया नहीं. इसलिए अब मैं अपील अदालत के फैसले का इंतजार करूंगा."

ईरान की अदालत जिबाकलाम को बार बार वही अपराध करने वाले के रूप में देखती है. तेहरान यूनिवर्सिटी में पढ़ाने वाले प्रोफेसर जिबाकलाम देश के सबसे जाने माने राजनीतिज्ञों में से एक हैं. वे राष्ट्रपति हसन रूहानी के इर्दगिर्द रहने वाले सुधारवादियों के करीबी हैं. उन्हें कट्टरवादियों की तीखी आलोचना के लिए जाना जाता है. वे सरकार की आंतरिक और विदेश नीतियों की लगातार विवेचना करते रहे हैं. फरवरी 2014 में उन्होंने कहा था कि वे इस्राएल को एक स्वतंत्र देश के रूप में स्वीकारते हैं क्योंकि संयुक्त राष्ट्र भी यही मानता है. 

जिबाकलाम ने ब्रिटेन की ब्रैडफोर्ड यूनिवर्सिटी से राजनीति की पढ़ाई की. उन्होंने इस्लामी क्रांति और पश्चिम की राजनीति पर अपना पीएचडी का थीसिस लिखा. 1974 में जब वे छात्र थे और घर लौटे थे, तब शाह की खुफिया पुलिस ने उन्हें देश को बदनाम करने और गलत प्रचार के आरोप में गिरफ्तार कर लिया. इस्लामी क्रांति के बाद अस्सी के दशक में वे ईरान लौट आए और कुछ सालों बाद तेहरान यूनिवर्सिटी में उन्होंने अपने करियर की शुरुआत की. साल 2000 में वे जनजान शहर के चुनावों में भी खड़े हुए लेकिन नगरपालिका ने उनकी उम्मीदवारी को रद्द कर दिया. 

ऐसा पहली बार नहीं है कि जिबाकलाम अदालत के चक्कर लगा रहे हों. जून 2014 में भी उन्हें 18 महीने की कैद की सजा सुनाई गई थी. उस समय उन्होंने देश के परमाणु कार्यक्रम की आलोचना की थी. हालांकि वे कभी सलाखों के पीछे नहीं गए और उनकी सजा को जुर्माने में तब्दील कर दिया गया था. 

जिबाकलाम अच्छी तरह जानते हैं कि सरकार की आलोचना करने का मतलब क्या है. लेकिन उनका कहना है कि वे आगे भी अपने विचार खुल कर दुनिया के आगे रखते रहेंगे. वे कहते हैं, "अगर मैं चुप हो जाना चाहता, तो मैंने तीन साल पहले ही यह फैसला ले लिया होता, जब मुझ पर परमाणु कार्यक्रम के मामले में मुकदमा चला था क्योंकि मैंने सरकार के खिलाफ कुछ कह दिया था." 

लगातार सरकार की आलोचना कर साहस की मिसाल देने वाले जिबाकलाम को डॉयचे वेले ने 2018 का फ्रीडम ऑफ स्पीच अवॉर्ड देने का फैसला किया है. डॉयचे वेले के महानिदेशक पेटर लिम्बुर्ग ने इस बारे में कहा, "इस पुरस्कार का मकसद है ईरान में नागरिक समाज को प्रोत्साहित करना और सरकार के जिबाकलाम को अपने विचार रखने के लिए सजा देने के फैसले की आलोचना करना."

पुरस्कार के बारे में जिबाकलाम ने कहा, "मैं बहुत सम्मानित महसूस कर रहा हूं." बहुत ही विनम्रता के साथ उन्होंने कहा कि ईरान में ऐसे और बहुत लोग हैं, जो इस पुरस्कार के उनसे ज्यादा हकदार हैं, "मैंने अभिव्यक्ति की आजादी के अपने अधिकार के इस्तेमाल पर उतना कष्ट नहीं सहा है लेकिन ऐसे कई लोग हैं, जिन्हें इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ी है."