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साथ आने की कोशिश में रूसी विपक्ष

ऊटे शेफर/एनआर३१ मई २०१३

रूस सरकार नागरिक समाज का कमजोर करने का हर प्रयास कर रही है. जब तक विपक्ष एक नहीं होता तब तक राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का विकल्प संभव नहीं है.

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तस्वीर: DW/J. Winogradow

रूस में सत्ता की जंग जारी है. ''सिलोविकी'' यानी सामूहिक रूप से सेना, पुलिस और खुफिया एजेंसियां बनाम विपक्ष. एक तरफ पुतिन की अडिग सत्ता के पहरेदार हैं तो दूसरी ओर अलग अलग धड़ों में बंटे विरोध प्रदर्शनों का अभियान.

रूस के भविष्य को सरकारी नियंत्रण से मुक्त कराने की कोशिशों को एक साथ लाने के लिए विपक्ष ने हाल ही में एक समन्वय परिषद बनाया है. इसमें शामिल ज्यादातर कार्यकर्ता इसाबेल मागकोएवा की तरह रूस के युवा पीढ़ी के हैं. दिसंबर 2011 में उन्होंने विरोध प्रदर्शनों में जाना शुरू किया और फिर वह ऑक्युपाइ मॉस्को अभियान की प्रवक्ताओं में शामिल हो गईं. जापानी भाषा पढ़ाने वाली मागकोएवा मानती हैं कि विपक्ष नई रूसी क्रांति के लिए रास्ता तैयार कर रहा है. वे कहती हैं, ''हमारे मां बाप की पीढ़ी की तरह हम डरते नहीं और ना ही हम स्वार्थी हैं. हम मानते हैं कि हमारे देश में बदलाव मुमकिन है.''

Bürgerforum Antiseliger nahe Moskau
जर्मनी ग्रीन का प्रभावतस्वीर: DW

युवा प्रदर्शनकारी भले ही निडर हों लेकिन इनमें संयुक्त मोर्चे की कमी है. विपक्ष में पर्यावरण कार्यकर्ता, आर्थिक उदारवादी और दिमित्री दियोमुश्किन जैसे दक्षिणपंथी राष्ट्रवादी शामिल हैं. दियोमुश्किन भले ही पूर्व प्रधानमंत्री बोरिस नेमत्सोव और वामपंथी राजनीतिक कार्यकर्ता सेर्गेई उदाल्त्सोव जैसे प्रमुख सरकार विरोधियों के साथ बेहतर संपर्क रखने का दंभ भरते हों लेकिन इन लोगों के विचारों में बड़ा फर्क है.

जर्मनी के ग्रीन मूवमेंट ने दिखाई राह

पिछले साल विपक्ष ने अलग अलग अभियानों को संगठित करने के लिए समन्वय परिषद बनाया लेकिन वह भी अंदरूनी कलह से नहीं बच सका. पर्यावरण कार्यकर्ता एवेगेनिया चिरिकोवा ने इसके प्रवक्ता एलेक्सी नावाल्नी की राजनीतिक पर बदलते रुख के लिए आलोचना की.

चिरिकोवा को खुद के लिए तो पता है कि वो क्या चाहती हैं. वह यूरोप और जर्मनी के ग्रीन मूवमेंट की तारीफ करती हैं, ''मुझे इससे प्रेरणा मिली क्योंकि रूस में ऐसा कुछ नहीं था लेकिन मैंने जर्मनी में देखा कि लोग अपने विचारों के लिए सचमुच संघर्ष करते हैं. वो विरोध करते हैं और ऊपर से मिले आदेशों का पालन करने के बदले नीचे से लेकर ऊपर तक अभियान चलाते हैं.'' चिरिकोवा ने जो रूस के बाहर देखा वैसी कोशिश उन्हें अपने यहां करने की प्रेरणा मिली.

Russland St.-Petersburg Proteste Menschenrechte
पुतिन का विरोधतस्वीर: DW

हालांकि रूस के ज्यादातर लोगों के पास चिरिकोवा जैसी हिम्मत नहीं है. मॉस्को और सेंट पीटर्सबर्ग जैसे शहरों में विरोध प्रदर्शन जरूर हुए हैं लेकिन बदलाव लाने वाले इन अभियानों से देश का मध्य वर्ग गायब ही रहा. ज्यादातर लोग परिवार पालने की रोजमर्रा की जद्दोजहद में फंसे हैं लेकिन इसके साथ ही सरकार की दमनकारी नीतियों और संदिग्धों की सूची में नाम डल जाने का भी डर है. मध्य वर्ग के ज्यादातर लोग अपनी सुरक्षा को जोखिम में नहीं डालना चाहते.

सरकार की धौंस

अनास्तासिया मेशरिकोवा इसकी सबसे बड़ी मिसाल हैं. दो बच्चों की अकेली मां मॉस्को में दो रेस्तरां चलाती हैं. मेशरिकोवा का कहना है, ''मैं बस इतना चाहती हूं कि देश में कानून लागू हो. मैं सचमुच इस बात की परवाह नहीं करती कि हम वाम, दक्षिण, उदारवादी या सोशल डेमोक्रैटिक विचारों में से किसे अपनाएं, मैं विचारों की चिंता नहीं करती.'' वे स्वीकार करती हैं कि नागरिक अधिकारों पर अगर और पाबंदियां लगाई गई तो उनके जैसे लोग भी ज्यादा राजनीतिक होने लगेंगे, ''दस साल पहले हम राजनीति के बारे में बात नहीं करते थे लेकिन आज स्थिति अलग है. जब भी हम दोस्तों से मिलते हैं, वहां भले ही दूसरी बातें हों लेकिन राजनीति भी एक मुद्दा होता है.''

सरकार अनास्तासिया जैसे लोगों को विरोध प्रदर्शनों से दूर रखने के लिए जो कुछ कर सकती है, कर रही है. उसने प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार किया है, उन्हें कड़ी सजाएं दी हैं, सभा बुलाने पर पाबंदी लगाई है और विरोध प्रदर्शन के ठिकानों पर निर्माण का काम शुरू करवा दिया है. सरकार ने इसके साथ ही कई तरह के नए कानून भी बना दिए हैं. ''फॉरेन एजेंट लॉ'' इन्हीं मे से एक है जिसके तहत विदेशी संगठनों के लिए काम करने वालों पर जासूसी का आरोप लगाया जा सकता है.

Russland Opposition Leonid Razvozzhaev
विरोध का जवाब कैदतस्वीर: picture-alliance/dpa

विरोध के लिए एक

विपक्षी गुटों के विचार अलग हैं, लेकिन सिवाय कम्युनिस्टों के वे पुतिन सरकार और उसकी दमनकारी नीतियों को खत्म करने की इच्छा पर एकमत हैं. एलेक्सी नावाल्नी के करीबी सहयोगी व्लादिमीर एशुरकोव का कहना है कि विपक्ष एक अलग रूस के लिए संघर्ष कर रहा है, ऐसा देश जो अपने लोगों को ज्यादा आजादी दे और यूरोपीय मूल्यों का पालन करे. उनका कहना है, ''रूस एक यूरोपीय देश है और हमारी संस्कृति, इतिहास और धर्म के लिहाज से हम पश्चिमी सभ्यता का हिस्सा हैं.'' इसके साथ ही उन्होंने यह भी माना, ''रूस को यूरोप का होने में ज्यादा वक्त नहीं लगेगा. जरूरी नहीं कि यह आर्थिक, राजनीतिक या सैनिक गठबंधन के रूप में हो बल्कि कानून के शासन, प्रेस की आजादी और सामान्य दक्षता के रूप में हो.''