सांस थामे अयोध्या के फैसले का इंतजार
३० सितम्बर २०१०पूरे देश में सुरक्षा व्यवस्था कड़ी की गई है. देश भर की पार्टियां और धार्मिक नेता लोगों से शांति की अपील कर रहे हैं. आयोध्या में विवादित 2.7 एकड़ की जमीन ने भारत की राजनीति में भारी उथल पुथल मचाई है और इसी विवाद के कारण देश को इतिहास के दो बड़े सांप्रदायिक दंगों से दो चार होना पड़ा.
भारत के सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों वाली बेंच ने उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें अपील की गई थी कि फैसले को टाल दिया जाए और अदालत के बाहर मुद्दे पर समझौता किया जाए. अब इलाहबाद हाईकोर्ट की तीन जजों वाली बेंच के जस्टिस एसयू खान, जस्टिस सुधीर अग्रवाल और जस्टिस डीवी शर्मा गुरुवार को फैसला सुनाएंगे. अदालत के बाहर भारी सुरक्षा है और इसे नो एक्सेस जोन घोषित कर दिया गया है मतलब यहां किसी को भी जाने की इजाजत नहीं है.
60 साल पहले इस केस को फाइल किया गया था जिसमें हिंदुओं ने विवादित स्थल पर पूजा की इजाजत मांगी थी. इसके खिलाफ उत्तर प्रदेश के केंद्रीय सुन्नी वक्फ बोर्ड ने इस जमीन पर 1961 में दावा ठोंका. इसके बाद 1989 में राम के नाम पर मिल्कियत का एक और दावा ठोंका गया. 1989 में इसके सभी मुकदमे फैजाबाद की अदालत से हाईकोर्ट की स्पेशल बेंच में भेजे गए.
भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने मंदिर बनाने को पार्टी का मुद्दा बनाया और कई दिनों तक राजनीति की बिसात पर यह दांव चला. लेकिन 2004 के चुनावों में मंदिर एजेंडा के साथ बीजेपी सत्ता में नहीं आ सकी.
भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, गृहमंत्री पी चिदंबरम ने लोगों से अपील की है कि वे शांति और संयम बनाए रखें. उन्होंने जोर दिया कि किसी भी समुदाय के लोगों को उकसाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए. नेताओं का कहना है कि पार्टियां अगर चाहें तो सुप्रीम कोर्ट में फैसले के खिलाफ अपील कर सकती हैं.
बीजेपी ने साफ किया है कि वह न्याय व्यवस्था का सम्मान करती है और शांति चाहती है.
रिपोर्टः पीटीआई/आभा एम
संपादनः निर्मल