सबसे गर्म रहा यह दशक
९ दिसम्बर २००९जिनेवा स्थित संयुक्त राष्ट्र की वर्ल्ड मीटियोरोलॉजिकल ऑर्गनाइजेशन, डब्ल्यूएमओ ने कहा है कि सन 2000 से लेकर 2009 तक के दशक का तापमान काफी ज़्यादा रहा. रिपोर्ट के मुताबिक, दक्षिण एशिया और अफ़्रीका के कई देशों में 2009 सबसे ज़्यादा गर्मी वाला साल रहेगा. भारत को ही देख लें तो इस साल वहां गर्मी भी ज़्यादा रही और सूखा भी पड़ा. उत्तरी चीन में भी तापमान 40 डिग्री से ज़्यादा रहे और वहां सूखा भी पड़ा.
2009 को ख़त्म होने में अभी तीन हफ्ते बाकी हैं, लेकिन जनवरी से लेकर अक्टूबर तक के आंकड़ों से पता चला है कि इस दशक में तापमान पिछले दशकों से 0.44 सेल्सियस ज़्यादा रहा है. डब्ल्यूएमओ को यह जानकारी धरती में जलवायु को जांच रही स्टेशनों, समुद्री जहाज़ों और अंतरिक्ष में सैटेलाइटों की मदद से मिली है.
हालांकि डब्ल्यूएमओ के महासचिव मिशेल ज़ारो का कहना है कि ठंड इस साल भी पड़ेगी और उसके बाद गर्मियां भी आएंगी, लेकिन नए किस्म के बदलाव दिखाई पड़ रहे हैं. शीत लहरों में कमी हो रही है और गर्म हवाओं का प्रभाव बढ़ रहा है. .
डब्ल्यूएमओ के मुताबिक कई देशों में तापमान औसत से ज़्यादा रहा. आर्कटिक ध्रुव में गर्मियों में 2007 और 2008 के बाद बर्फ का स्तर सबसे कम मापा गया है. चीन में इस साल 50 वर्षों में सबसे ज़्यादा गर्मी हुई और केंद्रीय और दक्षिण यूरोप में भी गर्म हवाएं चलीं. ऑस्ट्रेलिया के लिए भी 2009 सबसे गर्म साल रहा.
अफ़्रीकी देशों बुरकीना फ़ासो, ज़ैंबिया और नमीबिया में बाढ़ आई. पूर्वी अफ़्रीका में कई देश भुखमरी का शिकार बने, केन्या में इस साल मक्के की उपज में 40 फीसदी की कमी आई. लेकिन अमेरिका और कनाडा में इसका उल्टा हुआ, वहां तामपान में भारी कमी दर्ज की गई. रिपोर्ट के मुताबिक इन असामान्य मौसमी बदलावों के चलते दक्षिण अमेरिकी देश एल साल्वादोर में भी तूफ़ान आए.
उधर, डेनमार्क की राजधानी कोपेनहेगन में जलवायु सम्मेलन चल रहा है और इस बीच विकास कर रहे देशों के संगठन जी77 ने डेनमार्क द्वारा तैयार किए गए प्रस्ताव की आलोचना की है और कहा है कि इससे अमीर देशों को ही फ़ायदा होगा. विकासशील देशों ने कहा है कि वह अपने देशों में कार्बन डायॉक्साइड उत्सर्जन को तभी कम करेंगे जब अमीर देश अपने उत्सर्जनों को 40 प्रतिशत घटाने का वादा करें.
संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून ने सम्मेलन से एक सकारात्मक समाधान की उम्मीद की है. लेकिन यह डर भी सता रहा है कि कहीं सम्मेलन अमीर और ग़रीब देशों के बढ़ते मतभेदों की भेंट न चढ़ जाए.
रिपोर्टः एजेंसियां/ एम गोपालकृष्णन
संपादनः ओ सिंह