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संयुक्त राष्ट्र की आर्थिक तंगी का असर ग़रीबों पर

२ अगस्त २००९

संयुक्त राष्ट्र की खाद्य एजेंसी-विश्व खाद्य कार्यक्रम ने कहा है कि उसके पास फंड का अकाल होता जा रहा है जिसका सीधा असर दुनिया के करोड़ों भूखे लोगों को भोजन मुहैया कराने की कोशिशों पर पड़ेगा.

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मलावी के एक गांव में यूएन की रसद का इंतज़ार करते लोगतस्वीर: picture-alliance/ dpa/dpaweb

एजेंसी के मुताबिक उसे फंड की कमी की वजह से सहायता सप्लाई में कटौती करनी पड़ रही है.

एजेंसी के मुताबिक अफ्रीकी देशों युगांडा, आइवरी कोस्ट और नाइजर में भुखमरी के शिकार लोगों को भोजन सप्लाई पहले ही स्थगित की जा चुकी है. फंड की कमी के बारे में संगठन पहले भी आवाज़ उठा चुका है लेकिन इस पर ध्यान नहीं दिया गया.

World Food Programme Logo
विश्व खाद्य कार्यक्रम(डब्लूएफ़पी) को पैसे की किल्लत

विश्व खाद्य कार्यक्रम की देखरेख में चलने वाले संयुक्त राष्ट्र मानवीय वायु सेवा के पास इस साल के लिए 16 करोड़ डॉलर का बजट है. लेकिन उसे सिर्फ़ नौ करोड़ डॉलर ही मुहैया कराए जा सके हैं.

इस बारे में विश्व खाद्य कार्यक्रम के प्रवक्ता ग्रेग बैरो का कहना है कि वायु सेवा दुनिया भर में मानवीय राहत का एक बड़ा अहम हिंस्सा है, लेकिन फंड की कमी के चलते अगले कुछ सप्ताह में इस सेवा को बंद भी करना पड़ सकता है.

अफ्रीकी देश चैड के लिए यूएन की ये वायु सेवा 15 अगस्त को बंद हो रही है. सेवा से जुड़े अधिकारियों का कहना है कि लोगों तक भोजन पहुंचाने के लिए ज़रूरी है कि विमान उड़ानें भरते रहें लेकिन पैसे की कमी से ये कम होती जा रही हैं.

वायु सेवा कमान के प्रमुख पियरे कैरासे कहते हैं कि, ''बात सिर्फ़ उड़ान की नहीं. यूएन भूखे लोगों तक कैसे पहुंचेगा, डॉक्टर मरीज़ों तक कैसे पहुंचेगे, लोगों को पीने का साफ़ पानी कैसे मिलेगा अगर कुशल इंजीनियर पानी सप्लाई को दुरुस्त करने ऐसे इलाकों में पहुंच ही न सकें.''

WFP in Angola
कब तक जारी रह पाएगा मदद का सिलसिलातस्वीर: WFP

मानवाधिकार मामलों से जुड़े जानकारों का कहना है कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर बड़े दावे करने वाले दुनिया के बड़े मुल्क ऐसे हालात में ख़ामोश कैसे हैं, ये भी कम हैरानी की बात नहीं. आलोचक ये भी कहते हैं कि मुलाक़ातों, दावत समारोहों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों की बैठकों में आर्थिक मंदी को लेकर बतकही तो ख़ूब चल रही है लेकिन दुनिया के करोड़ो भूखे लोगों तक रसद और खाना कैसे पहुंचे, ये सोचने की आपात फ़िक्र नज़र नहीं आती.

रिपोर्ट- एजेंसियां/एस जोशी

संपादन- ओ सिंह