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श्रीलंका में पत्रकारों की सांसत

२ फ़रवरी २०१०

कुछ देशों में रिपोर्ट देना पत्रकारों के लिए ख़तरनाक है, मिसाल के तौर पर श्री लंका में. उनकी खोज में रुकावटें डाली जाती हैं, उन्हें बदनाम किया जाता है, धमकियां दी जाती हैं, यहां तक कि उनके अपहरण के मामले भी सामने आए हैं.

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दो पाटन के बीच में पत्रकारतस्वीर: AP

पिछले हफ़्ते हुए राष्ट्रपति चुनाव से पहले उन्हें कुछ रियायतें दी गई थीं. लेकिन उसके बाद हालत फिर से बिगड़ती जा रही है. एक पत्रकार का कहना है कि जो लोग जनरल सरथ फ़ोनसेका का समर्थन कर रहे थे, अब जल्द ही उन्हें गायब कर दिया जाएगा - इस स्थानीय पत्रकार का कहना था. ये अपहर्ता सफ़ेद वैनों में आते हैं, और जब उनके घर के सामने ऐसे वैन दिखने लगे, पड़ोसियों से पूछताछ की जाने लगी, तो वे भूमिगत हो गए. यही हाल संडे लीडर के संपादक लाल विक्रमातुंगे का है. उनके भाई लसंथा राष्ट्रपति के नज़दीकी हलकों में व्यापक भ्रष्टाचार की जांच कर रहे थे. साल भर पहले उनकी हत्या कर दी गई. लाल कहीं भी एक रात से ज़्यादा नहीं ठहरते हैं. उन्हें राष्ट्रपति के भाई, देश के प्रतिरक्षा मंत्री गोटाबाया राजपक्षे से डर है -

हमें धमकियां दी गई. अदालत में ही, जहां हमारे ख़िलाफ़ मुकदमा दायर किया गया था. लसंथा की मौत के बाद हमने राष्ट्रपति से मुलाक़ात की थी और हमने कहा था कि बिती बातें भुला दी जानी चाहिए. लेकिन गोटाबाया ने कहा - नहीं, मैं तुम्हें देख लूंगा. - लाल विक्रमातुंगे

विदेशी पत्रकारों को भी निशाना बनाया जा रहा है. चुनाव की रिपोर्टिंग के लिए उन्हें वीसा नहीं दिया गया. प्रेस कांफ़्रेंस में मुश्किल सवाल पूछने के बाद स्विस पत्रकार कारिन वेंगर का वीसा रद्द कर दिया गया. वे कहती हैं -

मैंने दो सवाल पूछे थे. मैंने पूछा था कि विपक्षी उम्मीदवार फ़ोनसेका के होटल के सामने इतने सैनिक क्यों हैं. साथ ही मैंने पूछा था कि क्या यह अफ़वाह सही है कि राष्ट्रपति के भाई बासिल राजपक्षे चुनाव आयोग के दफ़्तर में ठहरे हुए थे? - कारिन वेंगर

प्रेस कांफ्रेंस से निकलने के बाद एक अधिकारी ने उसे रोकते हुए कहा - याद रखना, हम गोरी चमड़ी से डरने वाले नहीं हैं.

रिपोर्ट: सबीना मथई/उ भट्टाचार्य

संपादन: राम यादव