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शिवाजी पर लेन की किताब नहीं बिकने देगी महाराष्ट्र सरकार

१२ जुलाई २०१०

शिवाजी पर लिखी किताब को प्रतिबंधित करने से सुप्रीम कोर्ट के इंकार के बाद महाराष्ट्र सरकार ने तीन सदस्यों की कमेटी बनाई है. कमेटी किताब पर रोक लगाने के कानूनी उपाय ढूंढेगी. किताब जेम्स लेन ने लिखी है.

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तस्वीर: AP

महाराष्ट्र सरकार किसी भी सूरत में शिवाजी- द हिन्दू किंग इन मुस्लिम इंडिया नाम की इस किताब को राज्य में छपने या बिकने नहीं देना चाहती. दो दिन पहले सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार के मंसूबों पर पानी फेर दिया और बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले के साथ सहमति जताई. सरकार की मुश्किल ये है कि अदालत से रोक हटने के बाद वो इस किताब को कैसे रोके.

शिवाजी ने 17वीं शताब्दी में दक्षिण और पश्चिमी भारत के हिस्सों को मिलाकर मराठा राज्य को खड़ा किया था. उस वक्त पूरे भारत मुगल साम्राज्य के अधीन था.सरकार का कहना है कि इस किताब में मराठा सम्राट छत्रपति शिवाजी के बारे में आपत्तिजनक बातें लिखी गईं हैं. सरकार की ये भी दलील है कि इस किताब में ऐसी बातें लिखी गई हैं जिनसे समाज में कटुता बढ़ेगी. महाराष्ट्र के गृहमंत्री आरआर पाटिल ने कहा है कि राज्य सरकार केंद्र सरकार से आग्रह करेगी कि वो महान व्यक्तियों के बारे में आपत्तिजनक बातों को लिखने से रोकने के लिए कड़े कानून बनाए.

मुख्यमंत्री ने कहा कि 'सुप्रीम कोर्ट के प्रतिबंध हटाने के फैसले के बाद राज्य सरकार ने इस मसले पर कानूनी रूप से आगे बढ़ने का फैसला किया है. एड्वोकेट जनरल, कानून सचिव और मुख्य सचिव(गृह) की समिति आपस में मिलकर कानूनी कदमों की तलाश करेगी और सरकार को इस बारे में बताएगी.' कमेटी को अपनी राय देने के लिए दो दिन का वक्त दिया गया है.

ये पूछे जाने पर कि क्या राज्य सरकार पुणे के इतिहासकारों के खिलाफ भी कार्रवाई करेगी गृहमंत्री आरआर पाटिल ने कहा कि पुलिस उनसे पूछताछ कर चुकी है और उन्होंने किसी को ऐसी कोई जानकारी देने के आरोप से साफ इंकार किया है. जेम्स लेन ने अपनी किताब में इन्हीं इतिहासकारों के हवाले से शिवाजी के बारे में आपत्तिजनक बातें लिखी है. शिवसेना और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना पहले ही ये एलान कर चुके हैं कि राज्य में किसी को भी इस किताब को बेचने नहीं दिया जाएगा.

लेन की लिखी इस किताब को ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस न्यूयॉर्क और नई दिल्ली ने छापा है. लेन रिलिजियस स्टडीज़ के प्रोफेसर हैं.

सरकार ने 2004 में इस किताब पर प्रतिबंध लगा दिया. हाईकोर्ट ने 2007 में वकील संघराज रूपावते, डॉक्यूमेंट्री फिल्ममेकर आनंद पटवर्धन औऱ सामाजिक कार्यकर्ता कुंदा प्रमिला की याचिका पर इस किताब पर से प्रतिबंध हटा दिया. इसके बाद राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट में गई पर यहां भी उसे निराशा ही मिली.

रिपोर्टः एजेंसियां/ एन रंजन

संपादनः आभा एम