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शहद की मलिकाएं

आभा निवसरकर मोंढे २९ जुलाई २००८

तमिलनाडु के तटीय गांव हेलन नगर और मिडालम. जहां महिलाओं ने परंपरा को नया आयाम दिया. चौका चूल्हे के साथ साथ स्वीकार की एक चुनौती. मधुमक्खी पालन की और आज उन्होंने इसे एक घरेलू उद्योग का रूप दिया है.

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आत्मविश्वास से भरपूरतस्वीर: DW

छोटा सा गांव.. चारों ओर नारियल के पेड़ और उसमें उपवन सी एक जगह. जहां चारों तरफ़ छोटे छोटे लकड़ी के डब्बे लगे हुए हैं. बहुत सारी मधुमक्खियां हैं, जिन्हें देखकर बेशक डर लगता है कि ये अभी शायद काट न लें.

पहले विरोध फिर सहयोग

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पारंपरिक व्यवसाय मछली पालनतस्वीर: Flickr/_val_

पंद्रह महिलाएं निडर मधुमक्खियों के साथ ऐसे खड़ी हैं जैसे मधुमक्खियां इनके इशारों पर चुप उस लकड़ी के फ्रेम पर बैठी हैं.लेकिन हमेशा ऐसा नहीं हो पाता. केयर इंडिया में कन्याकुमारी के ज़िला समन्वयक के. ए. बेन्नी एक महिला की तरफ़ इंगित करते हैं जिसे एक दिन पहले ही मधुमक्खियों ने तीन जगह डंक मारा लेकिन वह फिर अगले दिन काम पर आ गई. हेलन नगर गांव ग्रुप की महिलाओं में से पुनिता बताती हैं कि पहले उनके घरवाले उन्हें यहां आने से मना करते थे और अगर कभी मधुमक्खी का डंक हो तो घर पर भी जली कटी सुननी पड़ती थी. कई बार तो ऐसा हुआ कि काम से रोकने के लिये उस पर पति ने हाथ भी उठाया. लेकिन अब उनकी सफलता देखने के बाद उनके पति भी कई बार उनकी मदद करते हैं. पुनिता बताती हैं कि मधुमक्खियों की फ्रेम्स लगाने के लिये उन्होंने ही मदद की.

चुनौतियों से भरा काम

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परंपरा से अलग समुद्र तट पर महिलाएं कर रही हैं मधुमक्खी पालनतस्वीर: DW

मधुमक्खियों से भरा फ्रेम खोलते हुए रानी ज़रा नहीं डरतीं. एक हाथ में चाकु लेकर धीरे धीरे मधुमक्खियों से भरा लकड़ी का फ्रेम बाहर निकालती हैं ये देखने के लिये कि शहद ठीक से बन रहा है या नहीं. ये करते समय उनके शरीर पर कोई कवच नहीं होता बल्कि एक स्मोकर के ज़रिये वे शरीर पर धुआं छोड़ती हैं ताकि मधुमक्खियां दूर रहें.इस कार्यक्रम की दो ख़ासियतें हैं एक तो ये कि किसी भी तटीय गांव में मधुमक्खी पालन नहीं होता जो यहां किया जा रहा है. दूसरे सभी कार्यक्रम पुरुषों द्वारा संचालित हैं. लेकिन यहां ये महिलाएं काम कर रही हैं. चुंकि मधुमक्खी पालन का काम मुख्यतया पुरुषों द्वारा किया जाता है तो जब इन महिलाओं ने काम शुरू किया तो उनकी बहुत हंसी उड़ाई जाती थी लेकिन कुछ समय बाद जब उन्होंने ख़ुद को साबित किया तो अब वही पुरुष जो पहले इनकी हंसी उड़ाते थे अब उनकी तारीफ़ करते हैं.

5 से शुरूआत अब 25

ग्रुप की टीमलीडर बताती हैं कि जब इस कार्यक्रम की शुरूआत हुई तो केवल पांच महिलाएं थी. उन्हें यहां के पादरी को ज़मीन देने के लिये राज़ी करने में भी मुश्किल हुई लेकिन फिर उनसे बातचीत के बाद सबने मिल कर उन्हें भरोसे में लिया और फिर 15 अगस्त 2007 को कार्यक्रम शुरू हुआ. जब यह कार्यक्रम शुरू हुआ तो केवल पांच महिलाएं थी. लेकिन धीरे धीरे और साथ आती गई और कारवां बनता गया. ट्रेनिंग होने के बाद धीरे धीरे और महिलाएं साथ जुड़ी और वर्तमान में दो गांवों में ये पच्चीस महिलाएं हैं जो पूरे जोश और हिम्मत के साथ इस कार्यक्रम में जुटी हुई हैं. हेलन नगर में कई इसाई रहते हैं और यहां चर्च भी हैं जिसके पादरी ने मधुमक्खी पालन के लिये ज़मीन मुफ़्त उपलब्ध करवाई है.

तटीय इलाकों में मधुमक्खी पालन मुश्किल

के ए बेन्नी बताते हैं कि कन्याकुमारी ज़िले के ये सारे गांव तटीय गांव हैं और यहां मछली पालन के अलावा कुछ नहीं किया जाता यह पहली बार हो रहा है कि किसी तटीय गांव में मधुमक्खी पालन किया जाए क्योंकि तटीय इलाकों में जलवायु के कारण मधुमक्खी पालन संभव नहीं होता. लेकिन सर्वे के दौरान यह पाया गया कि कुछ गांवों में ये संभव है. केयर इंडिया में कन्याकुमारी में सुनामी रिस्पॉंस प्रोग्राम के ज़िला समन्यवयक के ए बेन्नी बताते हैं कि इन महिलाओं को मधुमक्खियों का सीसनल माइग्रेशन करना पड़ता है. मतलब ये सारे सौ डब्बे इन्हें तीन महीने के लिये पहाड़ी इलाके में ले जाने पड़ते हैं जहां रबर के पेड़ों से मिलने वाले परागण अच्छे शहद के लिये बहुत ज़रूरी होते हैं. इसलिये ये सभी महिलाएं घर के काम निपटा कर जब बच्चे स्कूल चले जाते हैं तब ये सारे डब्बे लेकर दस किलोमीटर का सफ़र कर दूसरे गांव में इन मधुमक्खियों को ले जाती हैं. वहां तीन महीने रखने के बाद इन मधुमक्खियों को वापिस लाया जाता है. बाकी नौ महीने इन मधुमक्खियों का यहां पालन किया जाता है और इन्हें शकर और पानी का कृत्रिम आहार दिया जाता है. मधुमक्खी पालन में सहयोग करने वाला स्थानीय ग़ैर सरकारी संगठन गुड विज़न है.

पहला साल मुश्किलों भरा

15 अगस्त 2007 से यह योजना शुरु हुई. पहला साल इतना अच्छा नहीं रहा. बेमौसम बरसात की वजह से एक हज़ार किलो की जगह पर सिर्फ़ 179 किलो के क़रीब शहद ही पैदा कर पाए. लेकिन इन महिलाओं की उम्मीद और हौसले बुलंद हैं. हंसती खिलखिलाती शहद की मलिकाएं.