"शरणार्थियों को वापस भेजना सुरक्षित नहीं"
५ फ़रवरी २०१८अंतरराष्ट्रीय सहायता समूहों ने सीरिया शरणार्थियों की वापसी को लेकर एक रिपोर्ट पेश की है. रिपोर्ट में शरणार्थियों पर वापसी का दबाव बना रहे मध्य पूर्व और अन्य पश्चिमी देशों को चेतावनी दी गई है. नॉर्वेजियन रिफ्यूजी काउंसिल (एनआरसी) और केयर इंटरनेशनल ने इस रिपोर्ट में डिपोर्टेशन के ट्रेंड पर विस्तार से चर्चा की है. रिपोर्ट में कहा गया है कि कई देशों ने सीरियाई शरणार्थियों की वापसी का समय साल 2018 तक तय किया है. रिपोर्ट के मुताबिक यह नीति जोखिम भरी है क्योंकि अब भी सीरिया के कई क्षेत्रों में हिंसा, बमबारी जारी है.
रिपोर्ट "डेंजर्स ग्राउंड" में कहा गया है कि शरणार्थियों को वापस भेजने की नीति मेजबान देशों के एजेंडे में अहम है. सीरिया में तनाव कायम है लेकिन दुनिया भर में शरणार्थियों के खिलाफ बढ़ते अंसतोष के चलते साल 2017 में मेजबान देशों ने इनकी वापसी पर जोर देना शुरू कर दिया. रिपोर्ट में दिए आंकड़ों में कहा गया है कि जो शरणार्थी सीरिया वापस लौटे थे उनमें से तमाम लोगों को संघर्ष का सामना करना पड़ा. इस विवाद और संघर्ष के चलते साल 2011 तक करीब 3.40 लाख लोग मारे गए थे. लेकिन साल 2017 तक मरने वालों की संख्या 7.21 लाख हो गई. इसमें कहा गया है कि साल 2018 में करीब 15 लाख सीरियाई लोगों के विस्थापित होने की आशंका है.
एनआरसी के महासचिव जान एगलैंड ने कहा कि युद्ध और हिंसा के माहौल से भागे लोगों के लिए वापसी न तो सुरक्षित होगी और न ही स्वैच्छिक. उन्होंने कहा कि कई क्षेत्रों में अब भी खून-खराबा जारी है. इन क्षेत्रों में स्कूलों, अस्पतालों को निशाना बनाया जा रहा है. रिपोर्ट में यूरोपीय देश मसलन डेनमार्क, जर्मनी की शरणार्थियों को वापसी भेजने की नीति पर चिंता जताई गई है. रिपोर्ट मुताबिक फिलहाल महज तीन फीसदी सीरियाई शरणार्थी ही अमीर देशों में जाकर बसे हैं. अधिकतर ने तो सीरिया के पड़ोसी देशों मसलन लेबनान, जॉर्डन और तुर्की में जगह ली है. लेकिन अब इन देशों में भी शरणार्थी विरोधी भावनाएं पनपने लगीं हैं.
ब्रिटिश चैरिटी संस्था, "सेव द चिल्ड्रन" ने चेतावनी देते हुए कहा है कि कई बच्चों को खतरे और जोखिम के बीच सीधे भेजा जा रहा है. संस्था का कहना है किसी बच्चे को तब तक उसके घर नहीं भेजा जाना चाहिए जब तक वह सुरक्षित न हो.
एए/एनआर (एएफपी)