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विसर्जन और ताजिए पर गरमाती बंगाल की राजनीति

प्रभाकर मणि तिवारी
२२ सितम्बर २०१७

पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार ने बीते साल की तरह इस साल भी मुहर्रम के दिन दुर्गा प्रतिमाओं के विसर्जन पर रोक लगा दी थी. लेकिन कलकत्ता हाईकोर्ट ने सरकार को करारा झटका देते हुए उसके आदेश को खारिज कर दिया है.

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Schlange Festival
तस्वीर: DW/ S. Bandopadhyay

कलकत्ता के उच्च न्यायालय ने मुहर्रम के दिन भी विसर्जन जारी रखने का निर्देश दिया है. उसने पुलिस को इसके लिए सुरक्षा इंतजाम करने और दोनों तबकों के जुलूसों के लिए अलग अलग रूट तय करने को कहा है. हाईकोर्ट ने सरकार से सवाल किया है कि आखिर वह हिंदू और मुस्लिम तबके में विभाजन की लकीर क्यों खींचना चाहती है? अदालती फैसले और विपक्षी राजनीतिक दलों के तुष्टिकरण के आरोपों से तिलमिलाई ममता ने कहा है कि अगर कोई उनका गला भी काट दे तो वह अपने सिद्धांतों से कोई समझौता नहीं करेंगी.

क्या है पूरा मामला

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बीते महीने पूजा आयोजन समिति के पदाधिकारियों के साथ एक बैठक के बाद दशमी के दिन शाम छह बजे के बाद दुर्गा प्रतिमा के विसर्जन पर पाबंदी लगा दी थी. उन्होंने अपने एक ट्वीट में कहा था कि एक अक्टूबर को मुहर्रम होने की वजह से उस दिन विसर्जन बंद रहेगा. उसके बाद दो से चार अक्तूबर तक विसर्जन जारी रहेगा.

विसर्जन पर पाबंदी का बीजेपी और संघ समेत कई संगठनों ने विरोध किया था. अदालत में सरकार के फैसले के खिलाफ तीन जनहित याचिकाएं दायर हुई थीं. जनहित याचिकाओं में कहा गया है कि कुछ साल पहले तक विसर्जन व मुहर्रम के जुलूस एक साथ निकलते थे. लेकिन हाल के वर्षों में सरकार मुहर्रम के मौके पर विसर्जन करने पर पाबंदी लगाती रही है. अदालत में सुनवाई के दौरान ही सरकार ने विसर्जन की समयसीमा बढ़ा कर रात 10 बजे कर दी थी.

इससे पहले बीते साल भी संघ और सरकार में इस मुद्दे पर काफी तनातनी रही थी. हाईकोर्ट ने भी सरकार के फैसले को एकतरफा और एक वर्ग के तुष्टिकरण का प्रयास करार देते हुए उसकी खिंचाई की थी. बावजूद इसके ममता ने इस साल भी वैसी ही पाबंदी लगा दी. अदालत ने इस मामले की सुनवाई के दौरान सरकार से सवाल किया कि आखिर दोनों तबके के लोग एक साथ अपना त्योहार क्यों नहीं मना सकते?

हाईकोर्ट की खंडपीठ ने सरकार से कहा कि जब उसे राज्य में सांप्रदायिक सद्भाव होने का पक्का भरोसा है तो वह दोनों तबकों के बीच दरार क्यों पैदा कर रही है ? खंडपीठ ने सरकार के पाबंदी के फैसले को एकतरफा करार देते हुए सवाल उठाया कि बिना किसी आधार के सिर्फ सत्ता में होने की वजह से वह ऐसा एकतरफा फैसला कैसे कर सकती है? हाईकोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश राकेश तिवारी ने कहा कि सरकार महज विजयादशमी और मुहर्रम के आसपास पड़ने की वजह से यह मान कर कोई फैसला नहीं कर सकती कि इससे कानून व व्यवस्था की स्थिति बिगड़ सकती है. अदालत ने सरकार को याद दिलाया कि नियमन और पाबंदी में फर्क होता है. लोगों को अपनी धार्मिक आस्था का पालन करने का पूरा अधिकार है. उसने कहा कि सरकार को किसी ठोस वजह के बिना किसी नागरिक के अधिकारों में बाधा पहुंचाने का कोई अधिकार नहीं है.

इससे पहले इस मामले की सुनवाई के दौरान खंडपीठ ने सरकार से कहा था कि वह हिंदुओं और मुस्लिमों को सद्भाव से रहने दे. उनके बीच विभाजन की कोई लकीर नहीं खींचे. हाईकोर्ट ने दशमी के बाद रोजाना रात 12 बजे तक विसर्जन जारी रखने और पुलिस को मुहर्रम और विसर्जन के जुलूसों के लिए अलग अलग रूट तय करने और सुरक्षा का माकूल इंतजाम करने को भी निर्देश दिया है.

ममता सरकार को झटका

अदालत के इस फैसले से मुख्यमंत्री ममता बनर्जी तिलमिला गयी हैं. उन्होंने इस फैसले पर सीधे तो कोई टिप्पणी नहीं की है. लेकिन विसर्जन को लेकर उपजी मौजूदा परिस्थिति के लिए भी केंद्र की बीजेपी सरकार की साजिश को जिम्मेदार ठहराया है. उन्होंने खुद पर लगने वाले तुष्टिकरण के आरोपों को निराधार ठहराते हुए कहा है कि अगर यह तुष्टिकरण है तो वह आजीवन ऐसा करती रहेंगी. मुख्यमंत्री का सवाल है कि आखिर गणेश या दुर्गा पूजा के उद्घाटन के समय उन पर तुष्टिकरण के आरोप क्यों नहीं लगते हैं? ऐसा उसी समय क्यों होता है जब वे ईद की नमाज में हिस्सा लेती हैं?

मुख्यमंत्री का आरोप है कि बीजेपी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और उससे जुड़े संगठन त्योहारों की अहमियत कम करने की साजिश कर रहे हैं. ऐसे लोगों को बंगाल की संस्कृति के बारे में जानकारी नहीं है. ममता का कहना है कि कानून व व्यवस्था की स्थिति को ध्यान में रखते हुए ही उन्होंने पाबंदी का फैसला किया था. मुख्यमंत्री ने बीजेपी,  आरएसएस और उससे जुड़े संगठनों को चेतावनी देते हुए कहा है कि दुर्गापूजा और मुहर्रम के दौरान सांप्रदायिक हिंसा फैलाने का कोई प्रयास बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. ममता कहती हैं, "सरकार बीते पांच वर्षों से दुर्गापूजा और मुहर्रम के एक साथ होने वाले आयोजनों को बखूबी संभालती रही है. लेकिन बीते कुछ वर्षों से कुछ राजनीतिक दल इस मुद्दे पर गंदी राजनीति करने का प्रयास कर रहे हैं."

विपक्ष की दलील

दूसरी ओर, विपक्षी राजनीतिक दलों ने भी पाबंदी के ममता के फैसले की आलोचना की है. प्रदेश भाजपा अध्यक्ष दिलीप घोष कहते हैं कि मुख्यमंत्री को शायद खुद पर ही भरोसा नहीं है. उन्होंने कहा कि राज्य सरकार को दुर्गापूजा के प्रतिमा विसर्जन की तारीख व समय तय करने का कोई अधिकार नहीं है. वह महज विसर्जन जुलूसों का रास्ता तय कर सकती है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दक्षिण बंगाल शाखा के सचिव जिष्णु बासु कहते हैं कि शस्त्र पूजा दुर्गापूजा का अभिन्न हिस्सा है. लेकिन शायद मुख्यमंत्री को इस बात की जानकारी नहीं है. संघ पूजा के मौके पर शस्त्र पूजा के फैसले पर अडिग है.

सीपीएम नेता सुजन चक्रवर्ती कहते हैं, "विसर्जन पर पाबंदी का फैसला ममता की संकीर्ण राजनीतिक सोच का परिचायक था. अदालती फैसले से उनको करारा झटका लगा है." कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अधीर चौधरी कहते हैं, "राज्य में लंबे अरसे से पूजा और मुहर्रम एक साथ मनते रहे हैं. जब आम लोगों को दिक्कत नहीं है तो ममता क्यो परेशान हैं?" विपक्ष का सवाल है कि क्या ममता को अपनी पुलिस व प्रशासन पर भरोसा नहीं है ? विपक्षी दलों का आरोप है कि तुष्टिकरण की नीति के चलते ही तृणमूल कांग्रेस सरकार दुर्गापूजा और मुहर्रम के मुद्दे पर बेवजह विवाद पैदा कर रही है.

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि अदालती फैसले और ममता बनर्जी के रुख से इस साल भी त्योहारों के दौरान गड़बड़ी का अंदेशा पैदा हो गया है. बीते साल भी राज्य के कई इलाकों में सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएं हो चुकी हैं. ऐसे में इस बार भी उनकी पुनरावृत्ति के अंदेशे से इनकार नहीं किया जा सकता. खासकर जबकि अदालती फैसले के बाद ममता कह चुकी हैं कि हिंसा होने की स्थिति में उनकी सरकार जिम्मेदार नहीं होगी.