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विवाह की जगह करियर को तरजीह

प्रभाकर, कोलकाता२२ जनवरी २०१६

कभी कम उम्र में लड़कियों की विवाह के लिए बदनाम रहे भारत में अब तस्वीर बदल रही है. अब युवतियां कम उम्र में विवाह करने की बजाय अपनी शिक्षा और वित्तीय आत्मनिर्भरता को तरजीह दे रही हैं.

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तस्वीर: Narinder Nanu/AFP/Getty Images

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) के ताजा अध्ययन में इसका खुलासा हुआ है. इससे एक और दिलचस्प बात सामने आई है कि उल्टे कुछ पुरुष ही अब शीघ्र विवाह कर रहे हैं.

सर्वेक्षण

एनएफएचएस का यह चौथा सर्वेक्षण देश के 13 राज्यों और दो केंद्रशासित प्रदेशों में किया गया था. ऐसा पिछला सर्वेक्षण वर्ष 2005-06 के दौरान हुआ था. पिछले सर्वेक्षण में गोवा में जहां 25-29 उम्र वर्ग के 7.2 फीसदी युवकों ने 21 साल की उम्र से पहले ही शादी कर ली थी, वहीं ताजा सर्वेक्षण में यह आंकड़ा बढ़ कर 10.6 फीसदी हो गया है. तमिलनाडु और त्रिपुरा में ऐसा ही देखने में आया है. 10 साल पहले तमिलनाडु में जहां 21 साल से कम उम्र वाले 14 फीसदी लोग विवाहित थे, वहीं अब यह तादाद 17 फीसदी पहुंच गई है. पूर्वोत्तर राज्य त्रिपुरा में भी यह आंकड़ा पिछले सर्वेक्षण के मुकाबले तीन फीसदी बढ़ कर 22 फीसदी तक पहुंच गया है. यानी इन राज्यों में 21 की उम्र से पहले विवाह करने वाले पुरुषों की तादाद कुछ बढ़ी है. पश्चिम बंगाल और मध्यप्रदेश जैसे राज्यों में ऐसे मर्दों की तादाद में गिरावट आई है, लेकिन 18 साल की उम्र से पहले विवाह नहीं करने वाली युवतियों में आई गिरावट के मुकाबले यह दर कुछ कम है.

Symbolbild Hochzeit Ehe Indien Pakistan
तस्वीर: Fotolia/davidevison

बिहार मध्यप्रदेश में हालत बेहतर

सर्वेक्षण रिपोर्ट के मुताबिक, कभी बेहद पिछड़े समझे जाने वाले बिहार ने इस मामले में आश्चर्यजनक प्रगति की है. दस साल पहले जहां राज्य में 18 साल से कम उम्र में विवाह करने वाली युवतियों की तादाद 60 फीसदी थी, वहीं यह अब घट कर 40 फीसदी से भी कम हो गई है. राज्य में कम उम्र में विवाह करने वाले पुरुषों की तादाद में भी गिरावट दर्ज की गई है और यह पिछली बार के 47 फीसदी के मुकाबले 40 फीसदी है. मध्यप्रदेश में 18 से कम उम्र में शादी करने वाली युवतियों और 21 साल से कम उम्र में विवाह करने वाले युवकों की तादाद क्रमशः 30 और 40 फीसदी है, जबकि पिछले सर्वेक्षण में यह क्रमशः 53 और 60 फीसदी थी.

हरियाणा में भी पिछली बार के मुकाबले हालत सुधरी है. 10 साल पहले जहां राज्य की 40 फीसदी युवतियां 18 साल की उम्र से पहले ही विवाह कर लेती थीं, वहीं यह तादाद घट कर अब 19 फीसदी से भी कम रह गई है. पहले ऐसे पुरुषों की तादाद भी 42 से घट कर 31 फीसदी तक पहुंच गई है.

यूनिसेफ की रिपोर्ट

वर्ष 2013 में यूनिसेफ की ओर से जारी एक रिपोर्ट में कहा गया था कि बाल विवाह वैसे तो भारत की तमाम जातियों में प्रचलित है. लेकिन ग्रामीण इलाकों और पिछड़े लोगों में यह समस्या काफी गंभीर है. उसने कहा था कि भारत में आधी लड़कियों का विवाह 18 साल की उम्र से पहले हो जाता है और बिहार, राजस्थान व मध्यप्रदेश जैसे राज्यों में यह दर काफी अधिक है. रिपोर्ट में इसके लिए गरीबी, दहेज प्रथा और पारिवारिक प्रतिष्ठा जैसी वजहों को जिम्मेदार बताया गया था.

और सुधार जरूरी

समाजविज्ञानियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इन आंकड़ों पर खुशी जताई है, लेकिन साथ ही कहा है कि कम उम्र में युवतियों की शादी रोकने के लिए अभी और ठोस उपाय करना जरूरी है. एक सामाजिक कार्यकर्ता सोहिनी घोष कहती हैं, "बाल विवाह में आई गिरावट से पता चलता है कि युवतियों में जागरुकता बढ़ रही है और वह पहले के मुकाबले अपनी शिक्षा व करियर के प्रति ज्यादा सचेत हैं." घोष कहती हैं कि यह आंकड़े बताते हैं कि अब युवतियां कम उम्र में विवाह के खिलाफ समाज के सामने बेझिझक मुंह खोलने लगी हैं. उनकी इस जागरुकता की वजह से अब कई राज्यों में सामाजिक नियम और परंपराएं भी बदलने लगी हैं.

एक महिला कल्याण संगठन की संयोजक देवलीना गोस्वामी कहती हैं, "हालात पहले के मुकाबले बेहतर जरूर हुए हैं. लेकिन इस दिशा में अभी और बहुत कुछ करना बाकी है. इसके लिए सरकारों और गैर-सरकारी संगठनों को मिल कर साझा कोशिश करनी होगी."

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