विद्रोहियों के हाथ लगा रेगिस्तान का मोती
१ अप्रैल २०१२रेगिस्तानी शहर टिमबुकटू के एक व्यक्ति ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया, "हां, विद्रोही टिमबुकटू पहुंच चुके हैं. मैं उन्हें शहर में घुसते हुए देख चुका हूं." कई अन्य लोगों ने भी विद्रोहियों के टिमबुकटू में घुसने की पुष्टि की है.
विद्रोही शनिवार शाम ही टिमबुकटू के बाहर जम चुके थे. रविवार सुबह तक उन्होंने पूरे शहर को घेर लिया. सरकारी बलों और विद्रोहियों के बीच भारी गोलाबारी हुई. एक स्थानीय निवासी ने बताया कि उसने टिमबुकटू के सैन्य अड्डे पर जोरदार धमाका सुना. धमाके के वक्त वहां पर सैनिक नहीं दिखाई पड़े. माना जा रहा है कि सरकारी बल भाग गए हैं.
चश्मदीदों के मुताबिक कई सैनिक अपनी पोस्ट से भाग गए हैं. सैनिकों ने अपनी वर्दी भी फेंक दी है ताकि उन्हें पहचाना न जा सके. टिमबुकटू उत्तरी माली का आखिरी बड़ा शहर है, जो अब तुरेग विद्रोहियों और इस्लामी चरमपंथियों के नियंत्रण में है.
टिमबुकटू में करीब 50,000 लोग रहते हैं. संयुक्त राष्ट्र की सूची में टिमबुकटू विश्व धरोहर है. शहर को 'रेगिस्तान का मोती' कहा जाता है.
22 मार्च को तख्तापलट
माली में पिछले महीने बागी सेना ने राष्ट्रपति अमादो तोमानी तोर का तख्ता पलट दिया. राष्ट्रपति को सत्ता से हटाने वाले सैन्य अधिकारी कैप्टन एमाडोउ सानोगो का कहना है कि देश में जल्द ही संविधान स्थिति बहाल होगी. सानोगो को सत्ता जनता के हाथ में देने का एलान भी कर चुके है.
राजधानी बमाको की अस्थिरता ने विद्रोहियों को हमले का मौका दिया. विश्लेषकों के मुताबिक सत्ता संघर्ष के बीच तुरेग विद्रोहियों ने तेज कार्रवाई की और बड़े हिस्से को अपने नियंत्रण में ले लिया. विद्रोहियों को इस्लामी चरमपंथियों का समर्थन भी मिल रहा है. यही वजह से किदाल और गाओ के बाद टिमबुकटू भी सरकार के हाथ से निकल गया.
तख्तापलट का इतिहास
पश्चिम अफ्रीकी देश माली बुर्किना फासो, नाइजर, अल्जीरिया, गिनी, सेनेगल और मॉरिशियाना से घिरा हुआ है. 14,517,176 की आबादी वाले देश में आधे लोग गरीबी रेखा के नीचे हैं. सरकार विरोधी प्रदर्शनों के लंबे दौर के बाद माली में 1991 में भी तख्तापलट हो चुका है. जनवरी 1991 में छात्रों के शांतिपूर्ण प्रदर्शन को जनरल मूसा ट्राओरे ने बर्बर तरीके से दबाने की कोशिश की. लेकिन प्रदर्शन जारी रहे. मार्च 1991 में सेना ने शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे लोगों पर फायरिंग करने से इनकार कर दिया और 26 मार्च को तख्तापलट ही हो गया.
21 साल बाद माली ने फिर तख्तापलट का इतिहास दोहराया है. इस बार भी मार्च में ही सेना ने राष्ट्रपति की छुट्टी कर दी. सैनिकों का कहना है कि सरकार विद्रोहियों के खिलाफ कड़ी नीति नहीं अपना रही है.
रिपोर्ट: एएफपी, रॉयटर्स/ओ सिंह
संपादन: ए जमाल