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लंबे सफेद बादलों वाला देश

१० अक्टूबर २०१२

इस साल फ्रैंकफर्ट बुक फेयर में न्यूजीलैंड खास मेबमान बन कर आया है. वहां के साहित्य में आदिवासियों की पौराणिक कहानियों से लेकर काले सफेद लोगों के पूर्वाग्रह तक नजर आती हैं.

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तस्वीर: DW/Ulrike Sommer

न्यूजीलैंड में रह रहे मोओरी आदिवासी समुदाय ने अपने देश को एक बेहद खूबसूरत नाम दिया है, आओतेयारोआ. इसका मतलब है लंबे सफेद बादलों का देश. इस वक्त न्यूजीलैंड के केवल पांच से दस प्रतिशत लोग ते माओरी भाषा बोलते हैं. इन आदिवासियों ने कई पुश्तों से कहानियों के जरिए अपनी संस्कृति को जिंदा रखा है. ईसाई मिशनरी संगठनों ने इनमें से कुछ कहानियों को करीब 20 साल पहले लिखकर छापना करना शुरू किया. सेलीना तुसीताला मार्श न्यूजीलैंड के ऑकलैंड विश्वविद्यालय में पढ़ाती हैं. मार्श माओरी और प्रशांत क्षेत्र में साहित्य की विशेषज्ञ हैं. उनके पूर्वज समोआ, तुवालू और यूरोप से हैं, जो प्रवासियों से बने देश न्यूजीलैंड के लिए आम बात है.

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लेखक सेलीना मार्शतस्वीर: DW/Ulrike Sommer

मार्श ने पैसिफिका पोएट्री नाम की एक वेबसाइट चलाई है. 2009 में उन्होंने कविताओं की किताब फास्ट टॉकिंग पीआई रिलीज की. पीआई यानी पैसिफिक आईलैंडर, वह लोग जो न्यूजीलैंड की आबादी में करीब सात फीसदी हैं. किताब के साथ एक सीडी भी है क्योंकि यह कविताएं बोली जाती हैं. स्पोकन पोएट्री एक मशहूर शैली है और इसके जरिए पॉलिनीशिया में आ रहे प्रवासियों की कहानी बताई जाती है. मार्श के मुताबिक यह उन लोगों के लिए भी है जो वैसे कभी कोई किताब नहीं पढ़ेंगे.

किताब की पहली कविता में उन्होंने इन द्वीपों में रहने वाले लोगों के खिलाफ पूर्वाग्रहों के बारे में लिखा है. लोग आम तौर पर इन्हें चोर मानते हैं लेकिन मार्श ने इनके बारे अच्छी बातें लिखी हैं. उनका कहना है कि एक अलग तरह का गीत गाने का वक्त आ गया है. स्थानीय मीडिया ने कभी भी यह बात नहीं मानी कि पैसिफिक के लोगों में भी कई अलग समुदाय हैं. टू न्यूड्स ऑन ए टाहीटियन बीच में उन्होंने मशहूर फ्रेंच कलाकार पॉल गॉगा की तस्वीर के बारे में लिखा है. यह तस्वीर 19वीं शताब्दी में उपनिवेशिक यूरोपीय देशों से आ रहे लोगों के लिए एक सपना जैसा था. यह तस्वीर इतना सुंदर है कि कवि अपनी आलोचना के बावजूद इसकी खूबसूरती को निहारती हैं.

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गॉगां की बनाई तस्वीरतस्वीर: Exhibitor: Dickinson

हवा में अपने बालों को उड़ाते हुए मार्श माओरी समुदाय की कहानियां सुनाती हैं. गॉगां की कल्पना शायद इस छवि से चार चांद छू लेती लेकिन कुछ ही देर बाद मार्श बॉक्सिंग रिंग पर आ जाती हैं. अपनी मां की मौत के बाद दुख को संभालने के लिए सेलीना मार्श ने बॉक्सिंग की तकनीक अपनाई है. अपने शरीर के जरिए, बिलकुल उसी तरह जैसे पॉलीनीशिया के द्वीपों में आदिवासी करते हैं. इस तरह की कसरत के बारे में उन्होंने और कविताएं लिखी हैं. कविता को उन्हें इस तरह के असामान्य जगहों में लाना पसंद है.

न्यूजीलैंज में पहली किताब 1861 में छपी और 100 साल बाद पहला माओरी उपन्यास बाजार में आया. माओरी उपन्यासकारों में विती इहिमेरा सबसे मशहूर हैं. 1987 में उनकी किताब व्हेल राइडर एक माओरी लड़की काहू की कहानी है जो व्हेल मछलियों को बचाने की कोशिश कर रही है. इस किताब का 20 भाषाओं में अनुवाद हो चुका है. माओरी और पाकेहा लोगों की जिंदगी केरी हम्स की किताब द बोन पीपल में पढ़ी जा सकती हैं. हम्स के पिता स्कॉटलैंज के थे और उनकी मां माओरी थीं. इस उपन्यास में उन्होंने ओकारीतो नाम के तट के बारे में लिखा है जहां वे खुद कई सालों रहीं.

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ओकारीतो समुद्री तटतस्वीर: DW/Ulrike Sommer

इस किताब को 1985 में बुकर पुरस्कार दिया गया. न्यूजीलैंड के लॉयड जोन्स की किताब मिस्टर पिप बहुत मशहूर हुई. जोन्स ने कई दिनों तक पत्रकार के तौर पर काम किया और पैसिफिक द्वीप बूगेनविल में ग्रहयुद्ध का भी अनुभव किया. इस किताब के मुख्य अभिनेता एक स्कूल के अध्यापक हैं जो इस द्वीप में एकमात्र श्वेत मूल के व्यक्ति हैं. जोन्स की किताब में लड़ाई में विनाश और कल्पना की ताकत का वर्णन किया गया है. इस पर बनाई हई फिल्म को टोरंटो फिल्म महोत्सव में भी दिखाया गया है. जोन्स की दूसरी किताब हैंड मी डाउन वर्ल्ड में उन्होंने ईनेस नाम की लड़की की कहानी सुनाई है जो उत्तर अफ्रीका की है और एक होटल में काम करती है. वह गैरकानूनी तौर पर अपने बच्चो को ढूंढने इटली पहुंचती है जिसे उसके पिता ने अगवा किया है.

जोन्स को यह कहानी बर्लिन में सूझी. एक अखबार में उन्होंने अफ्रीका के शरणार्थियों के बारे में पढ़ा जिन्हें यूरोपीय तट पर आने नहीं दिया जाता. इससे उन्होंने ईनेस की कहानी रची. लेकिन ईनेस की कहानी वह खुद नहीं बल्कि उसके साथ सफर कर रहे लोग बताते हैं और इसी के साथ लेखक श्वेत और काले रंग के लोगों की आपसी पूर्वाग्रहों को भी सामने लाते हैं. यह गैर कानूनी प्रवासियों की एक मार्मिक कहानी है जो यूरोप के समाज से कुछ अलग थलग रहते हैं.

रिपोर्टः उलरीके सॉमर/एमजी

संपादनः एन रंजन

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