राजा ने महल को अलविदा कहा
११ जून २००८अटकलें हैं कि ज्ञानेन्द्र अब भारत में निर्वासित जीवन बिताएंगे. फिलहाल वे काठमान्डु के बाहर एक दूसरे महल नागर्जुन में रहेंगें. ये निवास वैसे तो विशाल है लेकिन शहर की चकाचौंध से दूर.
"एक उदास पल"
नेपाल को 28 मई को गणतंत्र घोषित किया गया था और तब ज्ञानेन्द्र को महल खाली करने के लिए 15 दिन की समयसीमा दी गई थी. नेपाल के वरिष्ठ पत्रकार, कनक मणि दिश्रित राजशाही के अंत की समीक्षा करते हुए कहते हैं,
"नेपाल दुनिया के सबसे पुराने देशों में से एक है. 240 साल पहले नेपाल के पहले नरेश प्रिथवी नारायण शाह ने देश का एकीकरण किया था. ज्ञानेन्द्र नेपाल के 12वे नरेश रहे हैं. अब वहां राजशाही हमेशा के लिए खत्म हो गई है. इस लिहाज़ से यह एक उदास पल है. एक ऐसा समय जब हम राजशाही के बीते हुए सुनहरे पलों को याद कर रहे हैं."
ज्ञानेन्द्र की अलोकप्रियता
ज्ञानेन्द्र ने 2001 में हुए शाही परिवार नरसंहार के बाद गद्दी संभाली थी. कनक मणि दिक्षित ज्ञानेन्द्र के राजकाल के बारे में कहते हैं.
"उनकी ग़लतियों की वजह से राजशाही का अंत हुआ है. उन्होंने 1 फरवरी 2005 में नरेश की गद्दी संभाली, नेपाली लोगों की आकांक्षा समझे बगैर, समय की मांग से बेखबर. वे परिस्थितियों को समझ ही नहीं पाए. शायद इसी लिए लोगों को लगा कि वे उनके शुभचिंतक नहीं हैं. इसीलिए अप्रैल 2006 के लोक संघर्ष के बाद राजशाही का अंत लगभग तय था."
नारायणहिती संग्रहालय में तबदील
नेपाल के नोटो और सिक्कों से ज्ञानेन्द्र की तस्वीर हटा दी गई है. देश के राष्ट्र गान को फिर से लिखा जा रहा है. नए राष्ट्र गान में राजशाही का ज़िक्र नहीं किया जाएगा.
नारायनहिती पैलेस में राजशाही के दौरान काम कर रहे 600 कर्मचारी अब सरकार के लिए कार्यरत होंगे जिनमें सैक्रेटेरी, गार्डनर, कुक और सफ़ाई कर्मचारी शामिल हैं. इसके अलावा नारायणहिती शाही महल को एक संग्रहालय बनाया जायेगा.