क्रायो माइक्रोस्कोपी खोजने वालों को रसायन का नोबेल पुरस्कार
४ अक्टूबर २०१७यह माइक्रोस्कोप किसी तरल में बायोमॉलिक्यूल की हाई रिजॉल्यूशन संरचना दिखा सकती है. नोबेल पुरस्कार विजेता जाक डुबोशे स्विट्जरलैंड की लूसान यूनिवर्सिटी से जुड़े हैं जबकि योआखिम फ्रैंक न्यूयॉर्क की कोलंबिया यूनिवर्सिटी से. रिचर्ड हेंडरसन का नाता कैंब्रिज के एमआरसी लैबोरेट्री ऑफ मॉलिक्यूलर बायोलॉजी से है.
नोबेल कमेटी का कहना है कि इन वैज्ञानिकों की खोज के बलबूते जीवन की जटिल रचनाओं की ज्यादा विस्तृत तस्वीरें इंसान हासिल कर पायेगा. क्रायो इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी बायोमॉलिक्यूल की ज्यादा बेहतर तस्वीरें हासिल कर सकता है. इस तरीके ने बायोकेमेस्ट्री को एक नये युग में पहुंचा दिया है.
नोबेल कमेटी ने अपने बयान में कहा है कि इन वैज्ञानिकों की खोज की बदौलत, "रिसर्चर अब बायोमॉलिक्यूल की त्रिआयामी तस्वीरें हासिल कर सकते हैं.
लंबे समय तक माना जाता था कि इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप केवल मृत चीजों की तस्वीर लेने के लिए ही कारगर है क्योंकि इसकी ताकतवर इलेक्ट्रॉन किरणें जैविक पदार्थों को नुकसान पहुंचा सकती हैं. 1990 में रिजर्ड हेंडर्सन ने इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप का इस्तेमाल कर एक प्रोटीन का एटोमिक रिजॉल्यूशन पर त्रिआयामी चित्र तैयार करने में कामयाबी पाई. इसी सफलता ने इस तकनीक की सबसे बड़ी ताकत रही है.
योआखिम फ्रांक ने इस तकनीक को सब जगह इस्तेमाल करने लायक बनया. 1975 से 1986 के बीच उन्होंने चित्र तैयार करने का एक ऐसा तरीका विकसित किया जिसमें इलेक्ट्रॉम माइक्रोस्कोप के द्वीआयामी चीत्रों का विश्लेषण कर उन्हें एक तीक्ष्ण त्रिआयामी संरचना में ढाल दिया जाता है.
जैक्स डुबोशेट ने इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी में पानी को जोड़ दिया. तरल पानी इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप के वाष्पित हो जाता है जिससे बायोमॉलिक्यूल टूट जाते हैं. 1980 के दशक के शुरुआती शालों में डुबोशेट ने पानी को कांच जैसा बना देने में सफलता पाई. वह पानी को इतनी तेजी से ठंडा कर देते थे जिससे यह जैविक पदार्थ के चारों ओर तरल से ठोस में बदल जाता था. इस वजह से बायो मॉलिक्यूल निर्वात में भी अपने प्राकृतिक स्वरूप को बनाए रख पाता है.
इन खोजों के बाद इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप के पुर्जे पुर्जे तैयार किये गये. आखिरकार 2013 में वह एटोमिक रिजॉल्यूशन तैयार हुआ और रिसर्चर अब नियमित रूप से बायो मॉलिक्यूल की त्रिआयामी संरचना बना पाते हैं. पिछले कुछ सालों में विज्ञान से जुड़े साहित्य में प्रोटिन से लेकर जिका वायरस की सतह तक हर चीज की तस्वीरें भर गई हैं. बायोकेमिस्ट्री अब बहुत विकसित हो गयी है और यह एक शानदार भविष्य के लिए तैयार है.
एनआर/एमजे (एएफपी)