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येरुशलम पर विरोध से झुंझलाए अमेरिका की धमकी

२० दिसम्बर २०१७

येरुशलम पर अमेरिकी रुख का विरोध करने वाले प्रस्ताव का समर्थन करने वाले देशों को अमेरिका ने धमकी दी है. संयुक्त राष्ट्र में अमेरिकी राजदूत निकी हेली ने कहा है कि वह उन देशों का नाम राष्ट्रपति को बताएंगी.

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UN-Sicherheitsrat in New York zu Situation in Nahost | Veto USA
तस्वीर: Reuters/B. McDermid

अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव को वीटो कर दिया. इसके बाद पैदा हुई परिस्थितियों में संभावित उपायों पर चर्चा के लिए गुरुवार को संयुक्त राष्ट्र आमसभा की एक आपात बैठक बुलाई गई है. इस बीच निकी हेली ने पत्र लिख कर कहा है, "राष्ट्रपति इस मामले पर होने वाली वोटिंग पर बारीकी से नजर रखे हुए हैं और उन्होंने मुझे उन देशों की रिपोर्ट करने को कहा है जिन्होंने हमारे खिलाफ वोट दिया."

समाचार एजेंसी एएफपी के संवाददाता ने इस पत्र की कॉपी देखी है. निकी हेली ने संयुक्त राष्ट्र में कई देशों के राजदूतों को लिखे इस पत्र में कहा है, "हमारी हर उस देश पर नजर है जिन्होंने इस मामले पर वोट दिया." निकी हेली ने ट्विटर पर भी कहा है कि 193 देशों की सभा में "अमेरिका वोटिंग के दौरान उन सभी के नाम लेगा."

तुर्की और यमन ने अरब देशों के समूह और इस्लामी सहयोग संगठन की तरफ से इस आपात बैठक के लिए अनुरोध किया है. इन दोनों देशों ने मंगलवार को प्रस्ताव का ड्राफ्ट बांटा जिसमें कहा गया है कि येरुशलम की स्थिति को बदलने वाले किसी भी फैसले का कानूनी तौर पर कोई असर नहीं होगा और इसे वापस लिया जाना चाहिए. मिस्र के प्रस्ताव की तरह ही असेंबली के लिए तैयार किए गए प्रस्ताव में भी डॉनल्ड ट्रंप का नाम नहीं लिया गया है. हालांकि इसमें "येरुशलम की स्थिति पर हाल ही में लिए गए फैसले" पर अफसोस जाहिर किया गया है.

सोमवार को मिस्र ने सुरक्षा परिषद में एक प्रस्ताव का ड्राफ्ट पेश किया था जिसे सुरक्षा परिषद के सभी 14 सदस्यों ने सोमवार को हुई वोटिंग में समर्थन दिया. लेकिन इस प्रस्ताव को अमेरिका ने वीटो कर दिया. इस मामले पर अकेला पड़ने से अमेरिका झुंझला गया है.

फलस्तीनी राजदूत रियाद मनसौर ने कहा है कि उन्हें इस मुद्दे पर "भारी समर्थन" मिलने की उम्मीद है. उनका कहना है कि येरुशलम एक मुद्दा है जिसे "फलस्तीन और इस्राएल के बीच बातचीत के जरिए" सुलझाया जाना चाहिए. मनसौर ने पत्रकारों से कहा, "आम सभा वीटो से डरे बगैर यह कहेगी कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय एकतरफा अमेरिकी रुख को नामंजूर करती है."

Libanon Beirut Proteste gegen Jerusalem-Entscheidung von Trump
तस्वीर: DW/Anchal Vohra

आम सभा में किसी भी देश का वीटो नहीं है जबकि सुरक्षा परिषद में पांच स्थायी सदस्यों अमेरिका, ब्रिटेन, चीन, फ्रांस और रूस को वीटो का अधिकार है और ये देश किसी भी प्रस्ताव को रोक सकते हैं. 6 दिसंबर को ट्रंप के लिए फैसले ने अंतरराष्ट्रीय सहमति में दरार पैदा कर दी है और पूरे मुस्लिम जगत ने इसकी कड़ी निंदा की है.

अमेरिका के प्रमुख सहयोगी देश ब्रिटेन, फ्रांस, इटली, जापान और यूक्रेन भी 15 देशों वाली सुरक्षा परिषद में शामिल हैं जिसके 14 सदस्यों ने ट्रंप के कदम का विरोध किया है. वोटिंग के बाद हेली ने 14-1 से मिली शिकस्त को "अमेरिका का अपमान" बताते हुए कहा है कि इसे "भूला नहीं जाएगा." हेली ने ट्वीट पर यह भी कहा, "संयुक्त राष्ट्र में हमसे हमेशा ज्यादा कहने, ज्यादा देने को कहा जाता है. जब हम अमेरिकी लोगों की इच्छा पर फैसले करते हैं कि हमें हमारा दूतावास कहां रखना है तो, हमें ये अपेक्षा नहीं रहती कि जिन लोगों की हमने मदद की है वे हमें निशाना बनाएंगे."

संयुक्त राष्ट्र में इस तनातनी के बाद व्हाइट हाउस ने कहा है कि वह अमेरिकी उपराष्ट्रपति माइक पेंस के इस हफ्ते होने वाले मध्यपूर्व दौरे को टाल रहा है.

इस्राएल ने येरुशलम के पूर्वी हिस्से को 1967 की मध्यपूर्व जंग में अपने कब्जे में ले लिया था और वह पूरे येरुशलम को अपनी अविभाजित राजधानी के रूप में देखता है. उधर फलस्तीन पूर्वी हिस्से को भविष्य में बनने वाले अपने देश की राजधानी बनाना चाहता है. इस्राएल को पूर्वी हिस्से से हटाने के लिए कई प्रस्ताव संयुक्त राष्ट्र में पारित हो चुके हैं.

एनआर/एके (एएफपी)