येरुशलम पर अमेरिका से भिड़ा अरब जगत
५ दिसम्बर २०१७तुर्की के राष्ट्रपति रेचप तैयप एर्दोआन ने अपने देश की संसद को संबोधित करते हुए कहा कि अमेरिका के इस कदम के बाद उनका देश "इस्राएल के साथ कूटनीतिक संबंध तोड़ने की सीमा तक जा सकता है."
फलीस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास के वरिष्ठ सहयोगी के मुताबिक अमेरिका को ऐसी ही चेतावनी अब्बास ने भी दी है. अब्बास के कूटनीतिक सलाहकार माजदी खालदी ने कहा, "अगर अमेरिकी येरुशलम को इस्राएल की राजधानी के रूप में मान्यता देते हैं तो इसका मतलब है कि वे फैसला कर चुके हैं. ऐसे में वे खुद को शांति के प्रक्रिया से दूर कर रहे हैं और इस मुद्दे पर उनकी भूमिका विश्वसनीय नहीं रहेगी."
अमेरिकी अधिकारियों का कहना है कि राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप येरुशलम को इस्राएल की राजधानी के रूप में आधिकारिक रूप से स्वीकार कर सकते हैं. ट्रंप, इस्राएल में मौजूद अमेरिकी दूतावास को येरुशलम शिफ्ट करने की योजना बना रहे हैं. अरब देश अमेरिका की इस योजना से आहत महसूस कर रहे हैं. तीखे विरोध के बाद मध्य पूर्व मामलों में ट्रंप को सलाह देने वाले उनके दामाद जैरेड कुशनर ने बदली बदली बात की. कुशनर के मुताबिक राष्ट्रपति ने अभी येरुशलम के मुद्दे पर कोई फैसला नहीं किया है.
अरब लीग में शामिल दो दर्जन ने ज्यादा देश भी 12 दिसंबर को इस मुद्दे पर बैठक करेंगे. 57 देशों वाला इस्लामी सहयोग संगठन तो पहले ही अमेरिकी योजना को "नग्न आक्रामकता" करार दे चुका है.
इस्राएल ने 1967 के युद्ध के बाद येरुशलम को अपने नियंत्रण में लिया. येरुशलम यहूदियों, ईसाइयों और मुसलमानों का पवित्र केंद्र है. तब से इस्राएल येरुशलम को अपनी राजधानी के रूप में मान्यता दिलाने की कोशिश करता है. वहीं फलीस्तीनी भी येरुशलम पर अपना दावा करते हैं. फलीस्तीनियों को लगता है कि जब भी उनका एक आजाद देश बनेगा, उस दिन येरुशलम ही उसकी राजधानी होगी.
येरुशलम अरब-इस्राएल विवाद की धुरी जैसा है. बेन्यामिन नेतन्याहू से पहले के इस्राएल के दो पूर्व प्रधानमंत्री येरुशलम का बंटवारा करने के पक्ष में थे. वहीं मौजूदा सरकार का कहना है कि येरुशलम कोई मुद्दा ही नहीं है. नेतन्याहू सरकार कहती है कि पूरा येरुशलम इस्राएल की राजधानी है. इस्राएल का प्रधानमंत्री कार्यालय, सुप्रीम कोर्ट और संसद येरुशलम में ही है.
(200 साल बाद खुला ईसा मसीह का मकबरा)
ओएसजे/ (एपी, एएफपी)