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येरुशलम पर अकेला पड़ा, फिर भी अड़ा है अमेरिका

२२ दिसम्बर २०१७

येरुशलम के मुद्दे पर अमेरिका को संयुक्त राष्ट्र में मुंह की खानी पड़ी है. संयुक्त राष्ट्र में 128 देशों ने उस प्रस्ताव के पक्ष में वोट दिया जिसमें अमेरिका से येरुशलम पर अपने ताजा फैसले को वापस लेने की मांग की गई है.

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USA UN-Generalversammlung  Abstimmung zu Jerusalem-Resolution
तस्वीर: Getty Images/S. Platt

अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने उन देशों की सहायता रोकने की धमकी दी थी जो संयुक्त राष्ट्र में अमेरिका के खिलाफ जाने वाले थे. हालांकि इसकी परवाह किए बगैर संयुक्त राष्ट्र में सदस्य देशों ने भारी संख्या में प्रस्ताव के पक्ष में वोट दिया. संयुक्त राष्ट्र में इस वक्त अमेरिका इस मुद्दे पर अकेला पड़ गया. भारत ने भी इसमें उसका साथ नहीं दिया और प्रस्ताव के पक्ष में वोट दिया.

भारत के रुख को लेकर कई मुस्लिम देशों में थोड़ी बेचैनी थी, क्योंकि वोटिंग से पहले भारत ने इस मामले पर कोई बयान नहीं दिया था. कई मुस्लिम देशों के राजदूतों ने भारत सरकार से इस मामले में अपना रुख साफ करने की मांग की थी. 

USA UN Botschafterin der USA Nikki Haley
तस्वीर: picture alliance/dpa/AAM. Elshamy

अमेरिका के पश्चिमी सहयोगियों के साथ ही अरब देशों ने भी उसके खिलाफ जाने का फैसला किया. इनमें मिस्र, जॉर्डन और इराक जैसे देश भी शामिल हैं जिन्हें अमेरिका से हर साल भारी रकम सहायता में मिलती है. 21 देश इस दौरान अनुपस्थित रहे.

वोटिंग में 35 देशों ने हिस्सा नहीं लिया. इनमें अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, कोलंबिया, चेक रिपब्लिक, हंगरी, मेक्सिकी, फिलीपींस, पोलैंड, रवांडा, दक्षिणी सूडान और यूगांडा है. हालांकि इनमें से कई देशों ने यह भी कहा है कि वे अमेरिकी कदम के साथ नहीं हैं लेकिन इसलिए वोटिंग में शामिल नहीं हो रहे क्योंकि इस प्रस्ताव से परिस्थिति में कोई बड़ा फर्क नहीं आएगा. प्रस्ताव का विरोध करने वाले 9 देशों में अमेरिका और इस्राएल के अलावा ग्वाटेमाला, होंडुरास, मार्शल आइलैंड्स, मिक्रोनेशिया, नाउरु, पलाउ और टोगो शामिल हैं.

वोटिंग के बाद संयुक्त राष्ट्र में अमेरिकी राजदूत निक्की हेली ने कहा, "अमेरिका इस दिन को याद रखेगा जब आमसभा में उसे अपने संप्रभु राष्ट्र के अधिकार का उपयोग करने के लिए अकेला और हमले का शिकार बनने के लिए छोड़ दिया गया." निक्की हेली ने यह भी कहा, "हम इसे तब याद रखेंगे जब हमसे फिर संयुक्त राष्ट्र के लिए सबसे ज्यादा सहयोद दने की बात होगी और तब भी जब बहुत सारे देश हमसे और ज्यादा पैसा देने या फिर अपने प्रभाव का इस्तेमाल उनके फायदे के लिए करने को कहेंगे." बाद में निक्की हेली ने उन 64 देशों का आभार जताया जिन्होंने इस प्रस्ताव का विरोध किया या फिर वोटिंग या आम सभा में शामिल नहीं हुए.

USA UN-Generalversammlung vor Abstimmung zu Jerusalem-Resolution
तस्वीर: picture alliance/dpa/AP/M. Lennihan

वोटिंग के बाद इस्राएल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने कहा, "येरुशलम हमारी राजधानी है, हमेशा थी और हमेशा रहेगी. लेकिन मैं इस बात की तारीफ करूंगा कि ऐसे देशों की तादाद बढ़ रही है जो इस बेतुके नाटक में शामिल होने से इनकार कर रहे हैं."

फलस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास के प्रवक्ता नबील अबू ने कहा, "यह वोट फलस्तीन की जीत है. हम संयुक्त राष्ट्र और दूसरे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इस कब्जे के खिलाफ और पूर्वी येरुशलम के साथ फलस्तीन राष्ट्र को स्थापित करने की कोशिश करते रहेंगे." प्रस्ताव के पक्ष में देशों को लामबंद करने में तुर्की की भी बड़ी भूमिका रही है. वोटिंग के बाद तुर्की के राष्ट्रपति रेजेप तेईप एर्दोवान ने कहा, "मि. ट्रंप आप तुर्की की लोकतांत्रिक इच्छाशक्ति को अपने डॉलरों से नहीं खरीद सकते. डॉलर वापस आ सकते हैं लेकिन इच्छाशक्ति एक बार बिक जाए तो वापस नहीं आ सकती."

अमेरिका ने इस वोटिंग पर काफी नाराजगी जताई है हालांकि फिलहाल उसने किसी देश का नाम अलग से नहीं लिया है. अमेरिका ने यह भी कहा है कि येरुशलम में अमेरिकी दूतावास को ले जाने का फैसला अटल है और इसमें कोई तब्दीली नहीं आएगी.

येरुशलम अरब इस्राएल विवाद की एक प्रमुख धुरी है. अंतरराष्ट्रीय समुदाय पूरे शहर पर इस्राएल के अधिकार को मान्यता नहीं देता. संयुक्त राष्ट्र में फ्रांस के राजदूत फ्रांसोआ डेलात्रे ने कहा, "जो प्रस्ताव पास हुआ वह येरुशलम से संबंधित कानून के प्रावधानों की पुष्टि भर करता है."

एनआर/एके (रॉयटर्स)