येरुशलम दीवारों के बगैर क्या होता?
प्राचीन काल से ही कवि येरुशलम की दीवारों पर गीत लिखते रहे हैं. दशकों पुराने अरब-इस्राएल के विवाद पर इसका साया नजर आता है. इन तस्वीरों में देखिए येरुशलम के दीवारों की कहानी.
3000 साल के इतिहास में येरुशलम के पुराने शहर पर कई लोगों का कब्जा रहा. पारसियों और बेबिलोनियाई से लेकर आधुनिक दौर में जॉर्डन और इस्राएल तक. जितने तरह के शासन रहे उतनी ही तरह की दीवारें भी हैं. कुछ दीवारें जंग में खत्म हुई तो कुछ भूकंप में लेकिन इनके इर्द गिर्द की दुनिया लंबे समय से लगभग एक जैसी ही है.
16वीं सदी में ओटोमन सुल्तान सुलेमान द मैग्नीफिसेंट ने 1517 में येरुशलम को अपने अधीन करने के बाद अपने पिता के नाम पर इस ऐतिहासिक दीवार को बनावाने का आदेश दिया.
पूरे शहर को घेरने वाली चूने पत्थर से बनी इन प्राचीन दीवारों की लंबाई करीब 4,018 मीटर है और औसत उंचाई करीब 12 मीटर जबकि औसत मोटाई 2.5 मीटर है.
इन दीवारों पर 34 वॉचटावर बने हैं और सात मुख्य दरवाजे हैं जिनसे हो कर सारा ट्रैफिक शहर में आता जाता है. पुरातत्वविदों ने दो छोटे छोटे दरवाजों को दोबारा खोला है.
400 साल तक येरुशल ओटोमन राजाओं के ही अधीन रहा. 11 दिसंबर 1917 को ब्रिटिश जनरल एडमंड एलेनबाइ जाफा गेट से इस शहर में दाखिल हुए और इसके साथ ही 30 साल लंबे ब्रिटिश शासन की शुरुआत हुई.
आज पुराने शहर के चारों और करीब चार किलोमीटर की परिधि में जो दीवार है उसके घेरे में दुनिया भर के यहूदी, मुसलमान, ईसाई, अरब, अर्मेनियाई, स्त्री और पुरुष एक दूसरे का सामना करते हैं. कोई यहां का बाशिंदा है तो कोई सैलानी.
इस्राएल में 2017 में बारिश नहीं के बराबर हुई है और सूखा पड़ने का अंदेशा है. इस्राएल के दो प्रमुख रब्बियों के साथ 2000 से ज्यादा लोगों ने इसी दीवार के पास जमा हो कर बारिश के लिए ईश्वर से प्रार्थना की. इस कार्यक्रम का आयोजन कृषि मंत्री उरी एरियल ने किया था.
पुराना शहर, इसकी दीवारें और यहां के धार्मिक स्थलों को लेकर एक बार फिर तनाव बढ़ गया है. इस्राएल और फलस्तीन दोनों दीवारों से घिरे 215 एकड़ के इलाके पर अपना अधिकार जताते हैं.
1967 की जंग के बाद इस्राएल ने पूरे येरुशलम पर कब्जा कर लिया लेकिन फलस्तीनी इसके पूर्वी हिस्से को भविष्य में बनने वाले अपने राष्ट्र की राजधानी बनाना चाहते हैं. इस हिस्से में बहुसंख्यक आबादी फलस्तीनी लोगों की है.
दीवारों के साए में ही रोजमर्रा की जिंदगी चलती रहती है. परिवार पिकनिक मनाते हैं, आस्थावान लोग प्रार्थना करते हैं, फेरीवाले सामान और खाने-पीने की चीजें बेचते है, और कलाकार इन दीवारों को अपना कैनवस बनाते हैं.