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ये हाल रहा तो कैसे साफ होगी गंगा?

८ जनवरी २०१८

प्रधानमंत्री का पसंदीदा कार्यक्रम होने के बावजूद गंगा की सफाई अभी बहुत दूर की कौड़ी है. जानकार मानते हैं कि अभी साफ सुथरी गंगा के लिए मीलों चलना होगा.

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Indien - Ganges Fluss Verschmutzung
तस्वीर: Getty Images/AFP/S. Kanojia

नरेंद्र मोदी की सरकार ने गंगा की सफाई के लिए राष्ट्रीय मिशन यानी एनएमसीजी नाम का प्रोजेक्ट बनाया है. एनएमसीजी ने पिछले दो सालों में गंगा की सफाई के लिए मिले पैसे का महज चौथाई हिस्सा ही खर्च किया है. 

प्रधानमंत्री ने 2018 तक गंगा की सफाई का लक्ष्य रखा है लेकिन जल संसाधन मंत्रालय का कहना है कि मार्च 2019 तक ही गंगा के पानी में सुधार हो पाएगा. कई पर्यवारणवादी इस पर भी आशंका जता रहे हैं. नई दिल्ली के सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट की सुष्मिता गुप्ता ने कहा, "लक्ष्यों को हासिल करना बहुत मुश्किल है. धरातल पर अब तक कुछ रचनात्मक नहीं हुआ है."

दो हफ्ते पहले संसद में सीएजी की तरफ से इस बारे में रिपोर्ट पेश की गई.  भारत के कम्पट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल यानी सीएजी के मुताबिक गंगा की सफाई के लिए मिले 67 अरब रुपये की रकम में से सरकार ने केवल 16.6 अरब रुपये की रकम खर्च की है. यह आंकड़ा अप्रैल 2015 से मार्च 2017 के बीच का है. इस दौरान जिन 10 शहरों में पानी की गुणवत्ता जांची गई उनमें से आठ शहरों को पानी नहाने लायक भी साफ नहीं है. 

मोदी प्रशासन ने इस प्रोजेक्ट के लिए 2015 में 3 अरब डॉलर की रकम खर्च करने की योजना बनाई. करीब ढाई हजार किलोमीटर लंबी गंगा नदी के आस पास करीब 40 करोड़ लोग बसे हैं जिनकी जरूरतें नदी के जल से पूरी होती हैं. बावजूद इसके यह लगभग हर जगह काफी ज्यादा प्रदूषित है.

शहरों का कचरा

गंगा के घाट पर बसे शहर वाराणसी से प्रधानमंत्री ने संसदीय चुनाव जीता है और 2014 के चुनाव में भी गंगा की सफाई उनके प्रचार का प्रमुख मुद्दा था. दुनिया की सबसे पवित्र मानी जाने वाली नदी होने के साथ ही गंगा दुनिया की सबसे प्रदूषित नदियों में भी है. हिमालय से निकल कर बंगाल की खाड़ी में गिरने तक के सफर में गंगा के पानी में हजारों फैक्ट्रियों का कचरा मिल जाता है. इसके साथ ही उत्तर भारत के सर्वाधिक आबादी वाले शहरों में पैदा होने वाली सीवेज का करीब तीन चौथाई हिस्सा भी गंगा के पानी में डाल दिया जाता है.

Kanpur Ganga Umweltverschmutzung
तस्वीर: DW

समाचार एजेंसी रॉयटर्स के संवाददाता ने जब गंगा के किनारे बसे कानपुर शहर में जा कर देखा तो शहर के ज्यादातर हिस्सों में पानी का रंग काला नजर आया. कानपुर में चमड़े की रंगाई का काम होता है और वहां से निकलने वाला सारा कचरा इस नदी में बहा दिया जाता है. सीएजी की रिपोर्ट में ऐसी तस्वीरें भी हैं जिनमें दिख रहा है कि कई शहरों में फैक्ट्रियों का गंदा पानी बिना साफ किए गंगा में उड़ेला जा रहा है.

सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट

नमामि गंगे परियोजना के तहत पिछले साल ही सभी सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट के लिए ठेके दे दिए जाने थे. रिपोर्ट के मुताबिक अगस्त तक कोई प्रोजेक्ट शुरू नहीं हुआ. जबकि लक्ष्य हर दिन 140 करोड़ लीटर सीवेज के ट्रीटमेंट का है. 1993 से गंगा के लिए बने पर्यावरण संस्थान के प्रमुख राकेश जायसवाल कहते हैं, "सीवेज को गंगा में जाने से रोके बगैर हम स्वच्छ गंगा की कल्पना नहीं कर सकते. यह हमारी सबसे बड़ी प्राथमिकता होनी चाहिए." एनएमसीजी ने ऑडिटर को बताया कि सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट के निर्माण का काम पूरा होने के बाद समस्या सुलझा ली जाएगी लेकिन लक्ष्यों को पूरा करने के बारे में पूछे सवाल पर एनएमसीजी "चुप रहा."

Kanpur Ganga Umweltverschmutzung
तस्वीर: DW

प्रधानमंत्री मोदी गंगा की सफाई के काम में धीमी रफ्तार से चिंतित हैं और पिछले साल अप्रैल में उनके निजी सचिव ने बताया था कि मिशन से जुड़े लोगों को लगातार इस बारे में जानकारी देने के लिए कहा गया है. हालांकि इस वक्त इस बारे में पूछे सवाल का प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर से कोई जवाब नहीं दिया गया.

एनआर/एमजे (रॉयटर्स)