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यूरोपीय चर्चा या मुक्केबाजी

१९ अक्टूबर २०१२

यूरोपीय संघ में 27 देश हैं. हर मुद्दे पर हर देश की अपनी राय है, अपने हित हैं, लेकिन साझा फैसला समझौते का फैसला होता है. वैसे लेकिन हर देश उसे अपनी सफलता बताता है. सरकार प्रमुख न सही, सदस्य देशों की मीडिया तो यही करती है.

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तस्वीर: Reuters

ब्रसेल्स की शिखर भेंट इस मामले में अनूठी नहीं है. वहां भी वित्तीय संकट, कर्ज संकट और भविष्य में बजट संकट को रोकने के लिए साझा कोष बनाने या यूरोपीय बैंक नियामक बनाने से जैसे मुद्दों पर चर्चा हुई, जो सदस्य देशों के अपने हितों के हिसाब से विवादास्पद मुद्दे हैं.

शिखर भेंट के लिए जाने से पहले जर्मन संसद में चांसलर अंगेला मैर्केल ने कहा कि वे हड़बड़ी में जनवरी से ही बैंक नियामक बनाने के खिलाफ हैं. "तेजी से ज्यादा जरूरी है गुणवत्ता".  इसके विपरीत फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांसोआ ओलांद जनवरी से ही नियामक के पक्ष में थे ताकि मुश्किल में फंसे बैंकों को यूरोपीय बचाव कोष से सीधे मदद मिल सके. वित्तीय संकट की शुरुआत बैंकों के संकट से हुई है और अभी भी बहुत से बैंक खस्ताहाल हैं.

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मैर्केल और ओलांदतस्वीर: dapd

जर्मनी और फ्रांस के मतभेदों के बीच शिखर बैठक में फैसला जनवरी से नियामक बनाने के बदले पूरी तैयारी कर एक समय सारिणी के साथ नियामक बनाने का हुआ. जर्मन मीडिया ने इसे चांसलर मैर्केल की जीत बताया तो फ्रेंच मीडिया ने ओलांद की. और लक्जेमबर्ग के प्रधानमंत्री जां-क्लोद युंकर ने इसे हास्यास्पद बताया.

यूरो जोन के 6000 बैंकों के लिए नियामक संस्था अगले साल के मध्य काम करना शुरू करेगी. यूरोपीय केंद्रीय बैंक के अंतर्गत काम करने वाले इस साझा नियामक के लिए कानूनी ढांचा इस साल के आखिर तक तैयार होगा. यूरोपीय नियामक इसे सुनिश्चित करेगा कि राष्ट्रीय नियामक संस्थाएं अपने बैंकों का कड़ाई से नियंत्रण करें, ताकि वित्तीय संकट की स्थिति में वे यूरोपीय बैंकों को मुश्किल में न डाल सकें.

यूरो जोन के देशों की अध्यक्षता करने वाले युंकर से जब पत्रकारों ने साझा बैंक नियामक बनाने के मुद्दे पर जीत जर्मनी की हुई या फ्रांस की, तो उन्होंने कहा कि वे इस सवाल को बेतुका मानते हैं,  "यह कोई हास्यास्पद सवाल नहीं, लेकिन हमेशा किया जाने वाला सवाल है." उन्होंने कहा, "मैंने सुबह में जर्मन टेलीविजन समाचार देखे, फ्रेंच, ब्रिटिश और कुछ दूसरे भी. फिर से सब की जीत हुई है. हम अपने को हास्यास्पद बना रहे हैं."

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युंकर और मैर्केलतस्वीर: Reuters

यह एक छोटे देश के प्रधानमंत्री की टिप्पणी थी. यूरोपीय संघ के बड़े देशों की मीडिया पर, जो समाचारों को राष्ट्रीय हितों और देश के नेताओं के रुतबे के हिसाब से पेश करते हैं. इस तरह से यूरोपीय नजरिया विकसित करने के बदले राष्ट्रीय अहम और चिंताओं को ध्यान में रखने की कोशिश की जाती है.

लक्जेमबर्ग के प्रधानमंत्री जां-क्लोद युंकर प्रेस रिपोर्टिंग को विचित्र बताते हुए कहते हैं, "यहां कोई जर्मनी और फ्रांस के बीच मुक्केबाजी का मुकाबला नहीं हो रहा. यह 27 सदस्य देशों के बीच एक गंभीर बहस थी." युंकर ने बताया कि तीन बजे सुबह तक चली बैठक में वक्ता 120 बार बोले और उनमें सिर्फ जर्मनी और फ्रांस के नेता नहीं थे.

यूरोपीय संघ की बैठकों में 27 छोटे बड़े सदस्य देशों के नेता बहस कर सहमति पर पहुंचने का प्रयास करते हैं, और अक्सर पहुंचते भी हैं. हर देश तभी हामी भरता है जब वह उसके हित में हो, या कम से कम नुकसान न कर रहा हो, या और कोई समझदार रास्ता न हो. लेकिन सदस्य देशों की मीडिया के बीच अभी ऐसा सहयोग विकसित होना बाकी है.

रिपोर्ट: महेश झा (डीपीए)

संपादन: अनवर जमाल अशरफ

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