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यूरोप-एशिया सम्मेलन में दक्षिण चीन सागर पर चर्चा

१५ जुलाई २०१६

एशिया-यूरोप सम्मेलन में दक्षिण चीन सागर का मुद्दा अहम रहा. जापानी प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने चीन के प्रधानमंत्री ली केचियांग को अंतरराष्ट्रीय कोर्ट के फैसले का सम्मान करने की सलाह दी.

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Mongolei ASEM Asien-Europa-Gipfel in Ulan Bator
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Russian Government Press Office/Tass/Y. Shtukina

द हेग के अंतरराष्ट्रीय ट्राइब्यूनल ने दक्षिण चीन सागर पर चीन के ऐतिहासिक दावों को खारिज कर दिया है. फिलिपींस ने अंतरराष्ट्रीय कोर्ट में अपील की थी. लेकिन चीन ने कोर्ट के निर्णय को मानने से इंकार कर दिया है. सम्मेलन के पहले पत्रकारों से बातचीत में प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने कहा था कि साउथ चाइना सी के मुद्दे पर "मैं कानून व्यवस्था और शांतिपूर्ण समाधान के महत्व को रेखांकित करुंगा."

दोनों पड़ोसी देशों के बीच पूर्वी चीन सागर के कई द्वीपों पर विवाद है और वे उनपर अपना अपना दावा पेश करते हैं. विश्लेषक बताते हैं कि हेग कोर्ट के निर्णय के कारण जापान ज्यादा मजबूत स्थिति में आ गया है. अंतरराष्ट्रीय अदालत के चीन के दावे को ना मानने से परोक्ष रूप से जापान को फायदा पहुंचा है. चीन ने इस मध्यस्थता कोर्ट की गतिविधियों में हिस्सा लेने से पहले ही इंकार कर दिया था और इसके फैसले को भी वो नहीं मानता.

सम्मेलन की शुरुआत मेजबान देश मंगोलिया के राष्ट्रपति सखिया एलबेगदॉर्ज ने "फ्रांस से आई एक बहुत बुरी खबर" से किया. सभी विश्व नेताओं ने एक संयुक्त बयान जारी कर अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद से निपटने और हमले के दोषियों को सजा दिलाने की प्रतिबद्धता जताई.

शुक्रवार को ही जापानी पीएम आबे ने यूरोपीय परिषद के अध्यक्ष डोनाल्ड टुस्क से मिलकर इस साल के अंत कर आपसी मुक्त व्यापार और कूटनीतिक साझेदारी का समझौता करने पर सहमति बनाई. इस वार्ता में टुस्क ने आबे को भरोसा दिलाया कि ब्रेक्जिट के कारण ईयू अपने सक्रिय और खुली व्यापार एवं विदेश नीति में कोई बदलाव नहीं लाएगा.

एशिया-यूरोप सम्मेलन की शुरुआत 1996 में हुई और दोनों महाद्वीपों के बीच संबंधों को गहरा करने के मकसद से इसे हर दो साल में आयोजित किया जाता है. मंगोलिया की राजधानी उलानबाटर में शुक्रवार से शुरु हुए एशिया-यूरोप सम्मेलन में 51 देश भाग ले रहे हैं. उनमें 34 राष्ट्र व सरकार प्रमुख भी हैं.

आरपी/एमजे (डीपीए)