यूपी में योगी के खिलाफ 22 साल पुराना मामला बंद
२७ दिसम्बर २०१७भारतीय अखबार इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक 21 दिसंबर को विधानसभा में उत्तर प्रदेश क्रिमिनल लॉ (कंपोजिशन ऑफ ऑफेंसेज एंड एबेटमेंट ऑफ ट्रायल) बिल पेश किया गया. बिल पेश करने से एक दिन पहले 20 दिसंबर को यूपी सरकार ने योगी आदित्यनाथ के खिलाफ 1995 में दर्ज मुकदमा वापस लेने का आदेश दिया.
योगी आदित्यनाथ के साथ ही यूपी सरकार मंत्री शिव प्रताप शुक्ला, बीजेपी विधायक शीतल पांडे और 10 अन्य लोगों के खिलाफ निषेधाज्ञा उल्लघंन करने का मामला दर्ज है. मामले की सुनवाई के दौरान गोरखपुर में तारीख के दौरान अदालत में पेश न होने पर योगी आदित्यनाथ के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी किया गया था. गोरखपुर कोर्ट के अभियोजन अधिकारी बीडी मिश्रा के मुताबिक, "कोर्ट ने इन सब के खिलाफ एनबीए (नॉन बेलेबल वारंट) का आदेश दिया था लेकिन वारंट कभी जारी ही नहीं हुआ."
सचमुच जरूरी हैं भारत में पुलिस सुधार
पुलिस रिकॉर्ड के मुताबिक 27 मई 1995 को योगी आदित्यनाथ समेत 14 लोगों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 188 के तहत मामला दर्ज किया गया. पुलिस ने इन लोगों पर लोक सेवक द्वारा दिये गए आदेशों का उल्लंघन करने का मुकदमा दर्ज किया. प्रशासन के प्रतिबंध के बावजूद इन लोगों ने पीपीगंज में बैठक की.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक 20 दिसंबर 2017 को यूपी सरकार ने गोरखपुर के डीएम को एक खत लिखकर इस केस को वापस लेने की अर्जी लगाने का आदेश दिया. गोरखपुर के एडीएम रजनीश चंद्रा ने विड्रॉल एप्लीकेशन दाखिल करने की पुष्टि भी की है.
विधानसभा में उत्तर प्रदेश क्रिमिनल लॉ (कंपोजिशन ऑफ ऑफेंसेज एंड एबेटमेंट ऑफ ट्रायल) बिल, 2017 पर सदन को संबोधित करते हुए योगी आदित्यनाथ ने कहा कि पूरे राज्य में "राजनीति से प्रेरित" करीब 20,000 हजार मुकदमे हैं. इनमें से ज्यादातर केस धरने और प्रदर्शन के हैं. नए बिल के तहत 31 दिसंबर 2015 तक दर्ज किए गए ऐसे मुकदमे खत्म हो जाएंगे.
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