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युद्ध पर भारतीयों की राय

५ अक्टूबर २०१२

भारत और चीन के बीच युद्ध के 50 साल बाद भी लोग इसे भुला नहीं पाए हैं. आजादी के बाद भारत का यह पहला युद्ध था, जिसमें उसे बुरी तरह हार देखनी पड़ी. जंग के पांच दशक बाद क्या सोचते हैं भारतीयः

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तस्वीर: Getty Images

युद्ध डरावना होता है
भारत चीन युद्ध के वक्त शायद मैं तीन बरस का था. याद है मुझे सर्दियों की वे लंबी रातें जब ब्लैकआउट के दौरान जैसे ही खतरे का सायरन बजता, मैं मां की गोद में दुबक जाता.

उन्हीं दिनों एक और आवाज से भय लगता था. वह थी उस हरकारे की आवाज जो साइकिल पर लाउडस्पीकर टांगे संकरी सड़कों पर बोला करता, "सावधान, सावधान. दुश्मन का जहाज आ रहा है. दुश्मन का जहाज आ रहा है." सर्दियों की रात थी, तो सन्नाटे में यह आवाज ऐसी सुनाई देती मानो हरकारा आंगन में ही खड़ा होकर बोल रहा हो. बाद में पता चला कि जोधपुर जेल पर गिराए गए बमों में से एक के फटने से वह शहर को चेताने वाला हरकारा मारा गया. उस जमाने में मात्र एक रुपया रोज कमाने के लिए जान पर खेल जाने वाले उस हरकारे को नमन!
आज चीन ने भले ही तरक्की कर ली हो. लेकिन वह ड्रैगन वाली आसुरी ताकत पर इतराते हुए दुनिया पर राज का भरम पाले हुए है. भारत को इस पड़ोसी से कभी सच्ची मित्रता की उम्मीद नहीं करनी चाहिए.

- दिनेश जोशी, जोधपुर, राजस्थान

बदल रहे हैं रिश्ते

भारत और चीन दोनों प्राचीन सांस्कृतिक देश हैं. दोनों का लंबा इतिहास और संस्कृति है. भारत और चीन दोनों नई उभरती अर्थव्यवस्था हैं और विकास दोनों की सामान अभिलाषा है. पिछले 62 वर्षों में हालांकि चीन और भारत के बीच विवाद भी हुए, फिर भी अच्छे पड़ोसी जैसे मैत्रीपूर्ण सहयोग हमेशा ही प्रमुख धारा रही है. खास कर 21 वीं सदी में प्रवेश के बाद दोनों का तेज विकास हुआ. भारत चीन संबंध घनिष्ठ सहयोग और चतुर्मुखी विकास के नए दौर में प्रवेश कर चुके हैं. दोनों के बीच संपर्क निरंतर मजबूत हो रहा है और आपसी राजनीतिक विश्वास भी स्थिर रूप से प्रगाढ़ हो रहा है. अलग अलग क्षेत्रों में सहयोग का निरंतर विस्तार किया जाता है.

- चुन्नीलाल कैवर्त, बिलासपुर, छत्तीसगढ़

चीन से सतर्क रहें

चीन भारत का पड़ोसी देश है. पड़ोसी से अच्छे संबंध रखना एक अपरिहार्य आवश्यकता होती है. तनावपूर्ण संबंध बनाए रखने में तो कितनी ही ऊर्जा, धन और संसाधन व्यर्थ खर्च होंगे. इस नाते भारत और चीन, जो दुनिया की उभरती हुई ताकतें हैं, दोनों को देखना होगा कि कितने मुद्दों पर सहमति बनाई जा सकती है. यहां भारत के आगे अनेक मुश्किलें हैं. भारत चीनी सीमा विवाद, पाकिस्तान को चीन का समर्थन और गलत तरीके से हथियार उपलब्ध कराना. भारत के कुछ अलगाववादी और आतंकवादी संगठनों को सहायता पहुंचाने को लेकर चीन पर संदेह, भारत और नेपाल के माओवादियों को चीन द्वारा चोरी छिपे समर्थन दिए जाने का संदेह, यह सब भारत के लिए बड़ी चुनौतियां हैं, जिनका सामना बड़े ही कूटनीतिक तरीके से भारत को करना होगा.

यह स्पष्ट है कि भारत चीन का एक बड़ा प्रतिद्वंदी बनकर उभर रहा है और चीन अकसर संयुक्त राष्ट्र में भी भारत का विरोध करता है. भारत के लिए चीन के साथ द्विपक्षीय संबंधों को अच्छा रखने के प्रयास के साथ साथ अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए पूरी प्रतिबद्धता और मजबूती से अपने पक्ष को रखना आवश्यक है. लेकिन इस विषय में कई बार भारत के प्रतिनिधि कमजोर दिखते हैं. भारत की एक कठिनाई और इसकी विदेश नीति की एक कमजोरी यह है कि वह संबंधों को मजबूत करने की मजबूरी में राष्ट्रीय हितों से समझौता करता दिखता है. जबकि चीन अपने राष्ट्रीय हितों को सर्वोपरि रखता है और भारत की इस कमजोरी को शायद समझता भी है, जिसका कई बार उसे लाभ मिलता है. चीन से संबंध और भारत के राष्ट्रीय हित, इन दोनों में यदि विरोधाभास है तो भारत को कोई बीच का रास्ता तलाशना होगा जिससे दोनों बातों की पूर्ति हो या इनमें सामंजस्य स्थापित हो.

और यदि फिर भी कठिनाई हो, तो भारत को अपने राष्ट्रीय हित ही सर्वोपरि रखने चाहिए, चाहे परिणाम जो भी हो. तभी भारत का स्वाभिमान बना रहेगा. साथ ही विश्व को चाहिए कि चीन की अवसरवादिता की नीति को समझे और भविष्य के लिए भुलावों से बचने का प्रयास करे.

- अरुण सिंह, दिल्ली

चीन से सीखिए

पिछली बातें छोड़ें तो आज चीन ने अपने देश की जो उन्नति की है, वह सीखने लायक है. चीन ने जिस प्रकार बढ़ती जनसंख्या को नियंत्रण में लाया है और साथ में कड़ी कानून व्यवस्था को देश में स्थापित किया है, ये भारत देश को चीन से सीखने की जरूरत है.

आज भारत के राजनयिक भारत के बहुत से शहरों को सिर्फ शंघाई बनाने का सपना देखते हैं. चीन और भारत दोनों पर ब्रिटिशों ने राज किया. जापान के साथ युद्ध में चीन ने नुकसान झेला लेकिन जो प्रगति उसने कर दिखाई है उसमें भारत थोड़ा पिछडा हुआ लगता है.

- संदीप जावले, परली बैजनाथ, महाराष्ट्र

आर्थिक रूप से टकराएं भारत-चीन

चीन के साथ भारत का अगला युद्ध अब आर्थिक जगत में होना है. विकास दर के बैरोमीटर पर. यह 50 साल की सबसे अच्छी सीख होगी.

- महेश आनंद झा, पुणे, महाराष्ट्र

संकलनः विनोद चड्ढा

संपादनः अनवर जे अशरफ