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युद्ध कैदी 'सिर्फ फाइलों में लिखे नंबर'

११ अक्टूबर २०१२

भारत और पाकिस्तान के बीच हुए युद्ध को कई दशक बीत गए, लेकिन आज भी कई सैनिकों का पता नहीं. सरहद के दोनों ही तरफ परिवार सालों बाद आज भी किसी खबर का इंतजार कर रहे हैं.

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तस्वीर: dapd

कई सालों के इंतजार के बाद किसी ने बी बेगम को बताया कि उनका पति 1965 की भारत और पाकिस्तान के बीच हुई जंग में मारा नहीं गया, बल्कि वह भारत की एक जेल में कैद है. तीन साल पहले बी बेगम की मौत हो गयी. मरते समय वह अपने परिवार से कह गईं कि पति के लौटने पर उनकी आखिरी ख्वाहिश पति को जरूर बता दें. बी बेगम की एक ही आखिरी ख्वाहिश थी कि मरने से पहले वह अपने पति से मिल सकें. बी बेगम के दामाद मुहम्मद आयूब बताते हैं, "वह यह जान कर बेहद खुश थीं कि उनका पति जिंदा है. लेकिन धीरे धीरे जब उन्होंने देखा की हमें ना तो पाकिस्तानी अधिकारियों से कोई खबर मिल रही है और ना ही भारत से तब उनकी आशा निराशा में तब्दील होने लगी."

बी बेगम के पति शेर पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर के पुंछ जिले के ताई गांव से थे. इस गांव से चार नए सिपाहियों को भारत पाक युद्ध के दौरान दारा शेर खान में तैनात किया गया था. बरकत हुसैन, साखी मुहम्मद, बग्गा खान और शेर - यह चारों ही लापता हो गए. उस समय कहा गया कि युद्ध के दौरान उनकी मौत हो गयी है. आयूब का कहना है, "हमें एक चिट्ठी मिली जिस पर 10 नवंबर 1965 की तारीख लिखी थी. यह चिट्ठी 12 आजाद कश्मीर बटालियन से आई थी और इसमें लिखा था कि वे शहीद हो गए हैं."

सरकार का दावा

2006 में एक कश्मीरी चरमपंथी अयूब खोखर ने परिवार को बताया कि 1998 में जब वह जम्मू जेल में कैद था तब उसकी मुलाकात कुछ पाकिस्तानी सिपाहियों से हुई थी. खोखर का कहना है, "यह बस किस्मत की बात है कि मैं एक पाकिस्तानी कैदी से मिला. उसका नाम साखी मुहम्मद था. मैं उस समय मेडिकल जांच के लिए गया था और वहां इंतजार कर रहा था. तभी मेरे पास बैठे व्यक्ति ने बात करनी शुरू की. बाद में पता चला कि वह मेरे ही इलाके का है." खोखर का कहना है कि जेल में उसकी मुलाकात बरकत हुसैन से भी हुई और उसे पता चला कि शेर और बग्गा खान कश्मीर की कथुया और हीरानगर जेलों में कैद हैं.

2011 में भारत के वकील भीम सिंह ने परिवारों की ओर से अदालत में याचिका दायर की. जम्मू और कश्मीर में जेल अधिकारियों ने माना की तीन सिपाहियों को 1965 में ही कैद किया गया था. लेकिन गृह मंत्रालय का कहना था कि किसी भी सैनिक को कभी कैद नहीं हुई. भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार से इस बात पर सफाई मांगी है.

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1971 का युद्धतस्वीर: AP

भारत के हालात

यह कहानी केवल चार सिपाहियों की नहीं बल्कि ऐसे सैंकड़ों सिपाहियों की है जो दोनों देशों की जेलों में कैद हैं और जिनके बारे में सालों से परिवारों को कोई जानकारी नहीं है. भारत में भी कई परिवारों का कहना है कि 1965 और 1971 के युद्ध के दौरान सैनिकों को कैद किया गया जो अब भी पाकिस्तान की जेलों में हैं. भारत सरकार के आंकड़ों के अनुसार 74 सैनिक लापता हैं जिनमें से 54 दशकों से युद्ध बंदी हैं.

दिल्ली की जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में काम करने वाली दमयंती तांबे की शादी हुए अभी कुछ समय ही हुआ था कि 1971 के युद्ध में उनके पति लेफ्टिनेंट विजय वसंत तांबे लापता हो गए. भारतीय वायु सेना का कहना था कि लेफ्टिनेंट तांबे की मौत हो गई है, लेकिन दमयंती ने कभी इस बात पर विश्वास नहीं किया. पाकिस्तान के मीडिया में तांबे की गिरफ्तारी की बात कही गई. 62 साल की दमयंती का कहना है कि वह दोनों देशों की उदासीनता को देख कर हैरान हैं, "ये सब लोग सिर्फ फाइलों में लिखे गए नंबर हैं, इनके साथ इंसानों की तरह बर्ताव ही नहीं किया जाता."

इसी तरह चंडीगड़ की सिम्मी वरैच अपने पिता मेजर जनरल एसपीएस वरैच के लौटने का इंतजार कर रही है. वह भी 1971 से लापता हैं, "अगर वह अब जिंदा नहीं हैं तो कम से कम मुझे इस बारे में बताया जाए. इसे कहीं तो खत्म होना होगा."

सच पर पर्दा

2007 में भारत से कुछ परिवार पाकिस्तान की जेलों में अपने प्रियजनों को ढूंढने गए, लेकिन उन्हें वहां भी कोई सुराग नहीं मिला. भारत की विदेश राज्य मंत्री परिणीत कौर का कहना है कि भारत ने कई बार इस्लामाबाद से कैदियों की रिहाई की मांग की है, लेकिन "पाकिस्तान यह मानने को ही तैयार नहीं है कि उसके पास भारत के युद्धबंदी हैं."

वकील अवैस शेख का कहना है कि दोनों ही देश इस मामले में सच को छिपाते हैं ताकि उन्हें परिवारों को मुआवजा ना देना पड़े और ताकि उन पर जेनेवा समझौते के उल्लंघन का मामला न बने. ऐसे में परिवार निराश होते जा रहे हैं, लेकिन उन्होंने कोशिश करनी नहीं छोड़ी है.

आईबी/एएम (डीपीए)

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