डिजिटल भारत में मोबाइल फोन से सुलझती समस्याएं
१० मई २०१७चाहे बेगार में काम लिये जाने की परेशानी हो, या इलाके में हैंडपंप की कमी - ऐसी समस्याओं से निपटने में कई लोगों को मोबाइल से मदद मिल रही है. भारत जैसे विकासशील देशों में एक तरफ तेजी से विकास करते और दूसरी ओर विकास से अलग थलग पड़े देश के दोनों हिस्सों को जोड़ने में मोबाइल तकनीक अहम भूमिका निभा रही है. सीजीनेट स्वरा का काम भी ऐसी ही एक मिसाल है.
यह मोबाइल आधारित रिपोर्टिंग प्लेटफॉर्म है, जिसे एक पूर्व पत्रकार शुभ्रांशु चौधरी ने माइक्रोसॉफ्ट रिसर्च इंडिया के बिल थीस के साथ मिल कर विकसित किया था. सन 2010 में इसके लॉन्च से अब तक इन्हें कोई 575,000 कॉल्स मिल चुकी हैं और यह 7,000 से भी अधिक रिपोर्ट्स प्रकाशित कर चुके हैं. चौधरी को काफी सस्ती हो चुकी मोबाइल इंटरनेट सेवा और नई तकनीकों के आने के कारण इसके और विस्तार की उम्मीद है. चौधरी कहते हैं, "ज्यादातर मेनस्ट्रीम मीडिया और पूरा सोशल मीडिया पढ़े लिखे, शहरी, अंग्रेजी बोलने वाले लोगों पर ही ध्यान देता है. यह प्लेटफॉर्म डिजिटल डिवाइड के दूसरी तरफ के लोगों के लिए है, जिन्हें पहले कभी बोले या सुने जाने का मौका नहीं मिला."
यूजरों के हिसाब से भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मोबाइल फोन मार्केट है. सवा अरब की आबादी वाले देश में एक अरब से अधिक मोबाइल सब्सक्राइबर हैं. सस्ते फोन उपलब्ध हैं और कॉल रेट के हिसाब से भी दुनिया के सबसे सस्ते देशों में आता है. फिर भी लोगों में विभाजन है. वो ऐसे कि जहां 60 फीसदी शहरी भारतीय इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं वहीं देहात के लोगों के पांचवे हिस्से से भी कम लोग इंटरनेट इस्तेमाल करते हैं.
सीजी स्वरा में सीजी का मतलब है सेंट्रल गोंडवाना. मध्य और पूर्वी भारत के इस इलाके में गोंड समुदाय के लोग रहते हैं. ये राज्य हैं मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडीशा, झारखंड और बिहार. देश के यही राज्य सबसे गरीब भी हैं. सीजी स्वरा ऐसे काम करता है कि यूजर इनके सेंट्रल नंबर पर मिस्ड कॉल देता है, जहां से लोगों को उनके नंबर पर वापस कॉल किया जाता है. एक इंटरएक्टिव वॉयस रिस्पॉन्स सिस्टम है जो कॉलर को गाइड करते हुए किसी समस्या को दर्ज करवाने या दूसरों की रिकॉर्ड की हुई बातों को सुनने का विकल्प देता है. एक बार किसी समस्या के रिकॉर्ड हो जाने के बाद उसे सुलझाने के लिए सीजी स्वरा संबंधित अधिकारियों को कॉल करता है. हर दिन ऐसी करीब 900 कॉल आती हैं. जिनमें से ज्यादातर स्कूलों की खराब हालत, खस्ताहाल सड़कों, किसी सरकारी योजना में गड़बड़ या जमीन और जंगल के अधिकारों से जुड़ी होती हैं.
देहाती आबादी में भी विभाजन दिखता है. कॉल करने वालों में अभी महज एक तिहाई ही महिलाएं हैं. ग्रामीण इलाकों में मोबाइल पर भी ज्यादातर पुरुष ही नियंत्रण रखते हैं. ऊपर से महिलाओं के बाहर निकलने, अनजान लोगों से बात करने को लेकर आज भी तमाम पाबंदियां लगायी जाती हैं. ऐसे में फोन पर कॉल कर बात करना अपेक्षाकृत आसान होने के कारण यह माध्यम महिलाओं को भी बेहतर तरीके से शामिल कर पा रहा है. चौधरी इसे "समाज में समावेश और एकीकरण की शक्ति रखने वाला" मानते हैं.
आरपी/एमजे (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)