मैनेजरों की बेलगाम तनख्वाह पर नकेल
२३ फ़रवरी २०१७हालत इतनी गंभीर हो गई है कि जर्मनी में सरकार में शामिल सोशल डेमोक्रैटिक पार्टी ने मैनेजरों की तनख्वाह और भत्ते की सीमा तय करने का फैसला किया है. कर्मचारियों की आय के घटते औसत और मैनेजरों के बढ़ते औसत की खाई पाटने के लिए न्यूनतम वेतन और अधिकतम वेतन का अनुपात तय करने का प्रस्ताव है. इसके अलावा एक निर्धारित आय से ज्यादा वेतन राशि को कंपनी टैक्स छूट के लिए इस्तेमाल नहीं कर पाएगी. आय के उचित बंटवारे की दिशा में एक शुरुआत हो रही है.
जिस तेजी से दुनिया भर में आय की खाई बढ़ रही है, उसने सामाजिकता विषमता के अलावा अशांति का भी खतरा पैदा कर दिया. भारत जैसे विकासशील देशों की बात छोड़ भी दें तो यूरोप के विकसित देश भी इस समस्या से अधूते नहीं. अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने आय में विषमता के मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र में अपने भाषण में उठाया था. लेकिन पूंजी का संकेंद्रन बढ़ता ही जा रहा है.
दुनिया के सबसे असमान देशों में भारत का नंबर दूसरा है जहां 57 अरबपतियों के पास उतना धन है जितना 70 प्रतिशत सबसे गरीब लोगों के पास. और ये खाई लगातार बढ़ रही है. पहले नंबर पर रूस है जहां 1 प्रतिशत अमीरों ने 74.5 प्रतिशत धन जमा कर रखा है.
आय की यह विषमता जर्मनी जैसे देशों को भी परेशान कर रही है जिसे सालों से अपने सामाजिक कल्याण वाले पूंजीवाद पर गर्व रहा है. आयकर के नियमों और सामाजिक कल्याण सब्सिडी के जरिये जर्मनी अब तक अपेक्षाकृत कामयाबी के साथ आय का समतामूलक बंटवारा करता रहा था. लेकिन हाल के सालों में भूमंडलीकरण का दबाव जर्मन उद्योग पर भी पड़ा है. एक और उद्यमों के खर्च में कटौती करने के नाम पर कर्मचारियों की संख्या घटी है तो उन पर पर्याप्त क्षतिपूर्ति के बिना काम का बोझ भी बढ़ा है. दूसरी ओर मैनेजरों की तनख्वाह अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा के नाम पर लगातार बढ़ती गई है.
इस बढ़ती सामाजिक विषमता का एक नतीजा उग्र राष्ट्रवाद और उग्रदक्षिणपंथी पार्टियों के उत्थान में दिख रहा. अमेरिका में डॉनल्ड ट्रंप की जीत इस विकास का नतीजा है जबकि ब्रिटेन के यूरोपीय संघ से बाहर निकलने का फैसला भी इसी भावना से प्रेरित है. इस साल चुनाव का सामना कर रहे जर्मनी में सोशल डेमोक्रैटिक पार्टी ने अब मैनेजरों की तनख्वाह और भत्ते पर लगाम लगाने का प्रस्ताव दिया है.