मेघालय में वोट मांग रहे हैं नेहरू और केनेडी
२३ फ़रवरी २०१८मेघालय में लोगों के नाम अक्सर देश-विदेश की मशहूर हस्तियों और शहरों के नाम पर रखे जाते रहे हैं. ऐसे नाम भारत के किसी भी दूसरे राज्य में सुनने को नहीं मिलेंगे. इन नामों की वजह से ही 27 फरवरी को होने वाले विधानसभा चुनावों में नेहरु से लेकर कैनेडी और इयान बाथम तक सब लोग वोट मांग रहे हैं. यह लोग अलग-अलग राजनीतिक दलों के टिकट पर मैदान में हैं. उम्मीदवारों में से किसी का नाम काबुल है तो किसी का पोलैंड. इससे पहले नेपोलियन और हिटलर भी यहां चुनाव लड़ चुके हैं. अब उम्मीदवारों के नाम ऐसे हैं तो वोटरों के नाम भी कम दिलचस्प नहीं हैं. यहां अबकी इटली से अर्जेंटीना तक अनूठे नामों वाले कई लोग वोट डालेंगे.
अनूठे उम्मीदवार
लगभग 30 लाख की आबादी वाले ईसाई-बहुल मेघालय में गारो, खासी व जयंतिया भाषाएं बोली जाती हैं जबकि अंग्रेजी यहां संपर्क भाषा है. राज्य के खासकर आदिवासी तबके में अजीबोगरीब नाम रखने की परंपरा है. यहां सैकड़ों लोगों के नाम देश-विदेश की मशहूर हस्तियों के नाम पर रखे जाते हैं. इस बार इयान बाथम के. संगमा नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) के टिकट पर सलमानपाड़ा सीट से मैदान में हैं. बाथम राजनीति के नए खिलाड़ी हैं. लेकिन उनकी पार्टी के ही फ्रैंकेंस्टीन डब्ल्यू मोमिन इस क्षेत्र के पुराने खिलाड़ी हैं. मेंदीपाथर सीट से मैदान में उतरे फ्रैंकेंस्टीन वर्ष 2008 में कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर चुनाव जीत चुके हैं. वहां से कुछ किलोमीटर दूर मावफलांग सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार केनेडी कार्नेलियस खैरिम अपनी सीट बचाने के लिए जूझ रहे हैं. उससे कुछ दूर स्थित पाइनूरसला सीट पर यूनाइटेड डेमोक्रेटिक पार्टी (यूडीपी) उम्मीदवार नेहरु सूतिंग अपनी किस्मत आजमा रहे हैं. लेकिन अबकी वह अकेले नेहरु उम्मीदवार नहीं हैं. गामबेगरी सीट पर एक निर्दलीय उम्मीदवार नेहरु डी. संगमा भी मैदान में हैं.
अबकी चुनाव मैदान में उतरे पीपुल्स डेमोक्रेटिक फ्रंट (पीडीपी) उम्मीदवार बोस्टन मराक, कांग्रेस के होलैंडो लेमिन, भाजपा के पोलैंडिंग सोहपोह, यूडीपी के क्रिस काबुल ए.संगमा और दिल्लीराम जी. मराक के नाम सुनकर राज्य में किसी को हैरत नहीं होती है. पिछले चुनावों में तो यहां हिटलर व मुसोलिनी भी मैदान में थे. इनके अलावा कुछ उम्मीदवारों के नाम सुनने में खतरनाक भी लग सकते हैं. उनमें बाम्बर सिंग हाइनिता औऱ माफियारा टी. संगमा शामिल हैं.
पुरानी परंपरा
दरअसल, राज्य में अलग नजर आने के लिए लोगों में अजीबोगरीब नाम रखने की परपंरा बहुत पुरानी है. कोई देश-विदेश की मशहूर हस्तियों के नाम पर अपने नाम रखता है तो कोई दुनिया के प्रमुख शहरों के नाम पर. शिलांग स्थित नार्थ ईस्ट हिल यूनिवर्सिटी (नेहू) में इतिहास के प्रोफेसर एस.एन.लामरे कहते हैं, "माता-पिता अपने बच्चों के नाम महाम नेताओं के नाम पर रखना पसंद करते हैं. लेकिन इस चक्कर में कई बार ऐसे नाम हास्यास्पद हो जाते हैं. बड़े होने पर बच्चों को जब अपने नाम के अर्थ का पता लगता है तो कई बार उनको काफी शर्मिंदगी उठानी पड़ती है."
इन नामों से कई बार अजीब स्थिति पैदा हो जाती है. मिसाल के तौर पर एक चुनाव में नामांकन पत्रों की जांच के दौरान एक उम्मीदवार के नाम पर सवाल उठे. इसकी वजह यह थी कि उसके नाम से पहले डाक्टर लगा था. विपक्षी उम्मीदवारों ने उसे पीएचडी या एमबीबीएस की डिग्री से संबंधित कागजात पेश करने की चुनौती दी. लेकिन उसकी दलील थी कि डाक्टर उसकी डिग्री नहीं बल्कि नाम का हिस्सा है. वैसे, राज्य में कई लोगों के नाम साइंटिस्ट (वैज्ञानिक) भी हैं.
इसी तरह के एक दिलचस्प मामले में एक व्यक्ति अपना फेसबुक अकाउंट नहीं खोल पा रहा था. इसकी वजह यह थी कि उसका नाम ‘हेल्प मी' था और फेसबुक बार-बार इसे फर्जी नाम बता रहा था. यह व्यक्ति जाना-माना स्तंभकार है. एच.एच. मोहरमीन नामक इस व्यक्ति के नाम का पहला अक्षर उसके पिता के नाम से लिया गया है तो दूसरा अक्षर एच उसके नाम हेल्प मी का संक्षिप्त रूप है.
खासी जनजाति के लोगों में तो न्यूयार्क, हालैंड, चेलेसा, स्पेन, स्विट्जरलैंड और पेरिस नाम वाले सैकड़ों लोग मिल जाएंगे. कई परिवार तो ऐसे हैं जहां हर सदस्य का नाम अलग-अलग महाद्वीपों के नाम पर हैं. हालांकि अंग्रेजी में अजीबोगरीब नाम रखने की यह परंपरा कब से है, इसका कोई विस्तृत इतिहास नहीं मिलता. नेहू में राजनीति विज्ञान पढ़ाने वाले अपूर्व बरूआ कहते हैं, "राज्य के लोगों में ऐसे नाम रखने की परंपरा बहुत पुरानी है. अगंर्जी शभ्दों के प्रति आकर्षण ही इसकी प्रमुख वजह है." वह कहते हैं कि नाम से किसी व्यक्ति के सही चरित्र का पता नहीं चलता. हिटलर नाम होने का मतलब यह नहीं कि वह व्यक्ति तानाशाह होगा.
चुनाव
मेघालय में अजीबोगरीब नामों वाला मामला चुनावों के समय ही सामने आता है. इस बार 27 फरवरी को होने वाले विधानसभा चुनावों में अगर उम्मीदवारों के नाम दिलचस्प हैं तो वोटरों के नाम भी कम रोचक नहीं हैं. ईस्ट खासी हिल्स जिले के शेला विधानसभा क्षेत्र के एक गांव के वोटरों के नाम सुन कर तो कोई भी हैरत में पड़ सता है. यहां अबकी इटली, अर्जेंटीना, स्वीडन और इंडोनेशिया जैसे लोग भी अपने मताधिकार का इस्तेमाल करेंगे. इलाके में 850 पुरुष वोटर हैं 916 महिलाएं. लेकिन यहां अनूठे नामों वाले वोटरों की रिकार्ड तादाद है.
भारत-बांग्लादेश सीमा पर स्थित इस गांव के आधे से ज्यादा लोगों के नाम देश-विदेश के प्रमुख शहरों और मशहूर हस्तियों के नाम पर हैं. एलाका गांव के सरपंच प्रीमियर सिंह कहते हैं, "खासी नामों को सुन कर आपको हंसी आ सकती है. लेकिन इस गांव में तो ऐसे सैकड़ों नाम हैं जिनको सुन कर हैरत होगी." मिसाल के तौर पर गांव के कुछ लोगों के नाम सप्ताह के विभिन्न दिनों के नाम पर हैं तो कई लोगों के नाम त्रिपुरा व गोवा भी हैं. ग्रहों व समुद्रों के नाम वाले लोग भी यहां अक्सर टकरा जाएंगे. प्रीमियर सिंह कहते हैं, "अंग्रेजी के शब्दों के प्रति बढ़ते आकर्षिण ने इस गांवों को अजीब नामों वाले लोगों का गांव बना दिया है." इस गांव में रहने वाले अप्रैल व फील्डमार्शल भी 27 फरवरी को होने वाले चुनावों में वोट डालेंगे.
स्तंभकार एच.एच.मोहरमीन बताते हैं, "ज्यादातर मामलों में माता-पिता को इन नामों का मतलब तक पता नहीं होता. महज अंग्रेजी शब्दों के प्रति आकर्षण की वजह से ऐसे अजीबागरीब नाम रखे जाते हैं. ऐसे बच्चों के बड़े होने पर उनके समक्ष कई बार हास्यास्पद स्थिति पैदा हो जाती है. देश के दूसरे हिस्सों में उनका मजाक उड़ाया जाता है." मोहरमीन के मुताबिक, देश के दूसरे हिस्सों में पढ़ाई व नौकरी के लिए जाने वाले ऐसे कई युवक अब हलफनामे के जरिए अपने नाम बदल रहे हैं. वह मानते हैं कि बावजूद इसके राज्य के आदिवासी तबकों में अनूठे नामों के प्रति आकर्षण कम नहीं होगा और राज्य की भावी पीढ़ियों को भी ऐसे भारी-भरकम और अनूठे नामों से जूझना पड़ेगा.
रिपोर्टः प्रभाकर