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मुश्किल है मैर्केल के लिए गठबंधन की खिचड़ी

महेश झा
२० अक्टूबर २०१७

जर्मनी में संसदीय चुनावों के करीब एक महीने बाद गठबंधन वार्ताएं शुरू हुई हैं. गठबंधन सरकारें यूरोपीय लोकतंत्र को व्यापक आधार देती हैं, लेकिन सहमति आसान नहीं होती. चांसलर अंगेला मैर्केल के लिए भी ये चुनौती है.

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Deutschland Jamaika-Sondierungen zwischen CDU und Grüne starten
तस्वीर: picture alliance/dpa/B. V. Jutrczenka

यूरोप के बाहर के लोगों के लिए समझना मुश्किल है कि जर्मनी में चुनाव के 25 दिन बाद गठबंधन की संभावना तलाशने की बातचीत हो रही है. अभी ही नीदरलैंड में 209 दिनों की बातचीत के बाद चार पार्टियों का गठबंधन तय हुआ है. आखिर क्या करती हैं साथ मिलकर सरकार बनाने की कोशिश करने वाली पार्टियां गठबंधन वार्ताओं में?

जर्मनी का उदाहरण लें तो चुनावों ने जो नतीजे दिए उनमें दो संभावनाएं थीं. एक तो मौजूदा गठबंधन जारी रहे या फिर दो अन्य छोटी पार्टियों के साथ गठबंधन सीडीयू का बने. चांसलर अंगेला मैर्केल की सीडीयू-सीएयू संसद में सबसे बड़ी पार्टी है, इसलिए सर्वमान्य है कि सरकार बनाने का जनादेश उन्हें ही मिला है और उन्हें ही दूसरी पार्टियों को अपने साथ आने के लिए मनाना होगा. चुनावों में मौजूदा गठबंधन में शामिल एसपीडी को भारी नुकसान हुआ, जिसकी वजह पार्टी का सत्ता में रहना भी है. पार्टी ने नयी सरकार में शामिल होने का फैसला किया ताकि वह पुनर्जीवन पा सके और अपने को सरकार की जिम्मेदारी लेने के लिए फिर से तैयार कर सके.

लेकिन इस फैसले ने चांसलर मैर्केल के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी. पुराने साथी के साथ नयी सरकार चलाना उनके लिए निश्चित तौर पर ज्यादा आसान होता, लेकिन देश में आर्थिक विकास के बावजूद शरणार्थी मुद्दे पर बढ़ते असंतोष ने ऐसी स्थिति पैदा कर दी जिसमें दोनों ही बड़ी पार्टियों को नुकसान हुआ और देश का झुकाव उग्र दक्षिणपंथ की ओर हो गया है. इसकी एक बड़ी वजह लोगों की चिंताओं पर ध्यान न दे पाने के अलावा सार्वजनिक जीवन में विभिन्न राजनीतिक मुद्दों पर बहस के अभाव को माना जा रहा है. एसपीडी के विपक्ष में जाने से नीतिगत बहसों का स्तर बढ़ेगा और लोगों की हिस्सेदारी भी बढ़ेगी.

Deutschland Bundestagswahl 2017 Wahlplakate
तस्वीर: picture-alliance/ROPI/A. Pisacreta

लेकिन सबसे मुश्किल होगी सीडीयू-सीएसयू के साथ ग्रीन और लिबरल पार्टी एफडीपी को साथ लाने की. चांसलर अंगेला मैर्केल के नेतृत्व में सीडीयू मध्यमार्ग की ओर बढ़ी है जबकि बवेरिया में सक्रिय उसकी सहोदर पार्टी सीएसयू चुनावों में भारी नुकसान के बाद अति दक्षिणपंथी रुख अपना रही है. एसडीपी को उद्यमों की समर्थक पार्टी माना जाता है और ग्रीन पार्टी पर्यावरण संरक्षण पर जोर देने वाली पार्टी है जिसके हित उद्यमों के हित से नहीं मिलते.

शुरुआती बातचीत के बाद एफडीपी के नेता क्रिस्टियान लिंडनर ने कहा भी है कि फिलहाल 85 प्रतिशत मुद्दों पर मतभेद हैं. इन मतभेदों को पाटना आसान नहीं है क्योंकि गठबंधन की हर पार्टी अपने मुद्दों को मनवाने के लिए जीजान का जोर लगायेगी, खासकर छोटी पार्टियां, सरकार में जाना उनकी मजबूरी नहीं है. सरकार बनाने की जिम्मेदारी मैर्केल की है और उनकी चुनौती मतभेदों को कम करने और अगले चार साल के लिए साझा कार्यक्रम बनाने की है जिसके आधार पर देश प्रगति कर सके और सरकार स्थिर नेतृत्व दे सके.

जर्मन लोकतंत्र की खासियत ये है कि यहां की पार्टियां एक दूसरे को खत्म करने को नहीं बल्कि एक दूसरे से आगे बढ़ने को प्राथमिकता देती हैं और सरकारी खजाने से पैसा पाने वाले सांसद राष्ट्रहित को सर्वोपरि मानते हैं. अब चुनावों के बाद देश को स्थिर सरकार देना भी उनकी जिम्मेदारी है. गठबंधन तय करने में इतना समय इसलिए लगता है कि परस्पर विरोधी रुखों को साथ लाने में कई बार महीनों लग जाते हैं.