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मुश्किल में फंसा भारत का कपड़ा उद्योग

१३ अप्रैल २०११

भारत का कपड़ा उद्योग फिलहाल एक बड़े संकट से जूझ रहा है. पूरे देश में इस बार कपास की फसल अच्छी नहीं हुई. रही सही कसर सरकार के निर्यात का कोटा बढ़ाने के फैसले ने पूरी कर दी है. कपास की कीमतें आसमान पर हैं.

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तस्वीर: DW

कपास की कीमतों में 70 फीसदी तक इजाफा हुआ है. ऐसी हालत में कपड़ा बनाने वाली कंपनियों की हालत खराब हो गई है. टैक्सटाइल उद्योग के एक प्रमुख केंद्र तिरुपुर की हालत तो हाईकोर्ट के एक आदेश के बाद और बिगड़ गई है. कोर्ट ने यहां के कपड़ों को रंगने वाली कंपनियों को बंद करने के आदेश दिए हैं.

Krise Textilindustrie Indien Tirupur
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निर्यातक अब इस आशंका से डरे हुए हैं कि वो अमेरिका और यूरोप से मिले कम से कम 50 करोड़ यूरो के निर्यात का ऑर्डर पूरा नहीं कर पाएंगे. इतना ही नहीं उन्हें चीन और बांग्लादेश के कपड़ा उद्योग के हाथों अपना धंधा गंवाने का भी डर सता रहा है. कपड़ा बनाने वाली कई कंपनियों बंद होने की कगार पर हैं और अगर ऐसा हुआ तो स्थानीय स्तर पर हजारों लोगों को अपनी नौकरी से भी हाथ धोना पड़ेगा.

Krise Textilindustrie Indien Tirupur
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संगीता वेंकटेश सिर्फ घर के कामकाज में ही नहीं जुटे रहना चाहतीं. बावजूद इसके उन्हें नौकरी छोड़नी पड़ी हैं क्योंकि दक्षिण भारत के तिरुपुर में कपड़ों को रंगने वाली कई कंपनियां बंद हो गई हैं. चार साल पहले पहले उनका परिवार काम की तलाश में इस शहर में आया. संगीता और उसके पति कपड़े की फैक्टरी में काम करते रहे. संगीता के ससुर प्रभु भी कपड़ा रंगने वाली कंपनी में काम करते हैं. संगीता काम पर जाते वक्त अपने छह साल के बच्चे को देखभाल के लिए अपनी सास के पास छोड जातीं. फैक्टरी बंद होने के बाद संगीता अपने पति के साथ काम ढूंढने अपने गांव चली गई. लेकिन उसके बच्चे की देखभाल करने वाला नहीं तो अब उसे घर पर ही रहना पड़ रहा है. संगीता कहती हैं, "पहले परिवार में कमाने वाले तीन लोग थे अब केवल मेरे पति के पास नौकरी है. उन्हीं को पूरे परिवार का खर्च उठाना पड़ रहा है. अब बच्चे की पढ़ाई के साथ ही हर खर्चे के पहले सोचना पड़ता है.''

Krise Textilindustrie Indien Tirupur
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संगीता का परिवार उन 50 हजार परिवारों में से एक है जो काम की तलाश में भारत के अलग अलग हिस्सों से तिरुपुर आए. पिछले कुछ ही दशकों में तिरुपुर में कपड़ा उद्योग से जुड़ी हजारों फैक्ट्रियां खड़ी हो गईं. इनमें सूत कातने से लेकर, तैयार करने, कपड़ा बुनने, सिलने, रंगने और उनसे जुड़ी दूसरी फैक्ट्रियां शामिल हैं. देखते ही देखते तिरुपुर कपड़ा निर्यात का एक बड़ा केंद्र बन गया.

Krise Textilindustrie Indien Tirupur
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निर्यात करने लायक उच्च स्तर के कपड़े का निर्माण केंद्र बनने की एक बड़ी कीमत भी चुकानी पड़ी है. कपड़ों को रंगने में इस्तेमाल होने वाले रसायन पर्यावरण के लिए खतरनाक हैं. कई सालों से उद्योग जगत इन रसायनों को यहां से गुजरने वाली नदी में उड़ेलता रहा. आज ये नदी पूरी तरह से प्रदूषित हो चुकी है जिसके पानी से न तो सिंचाई हो सकती है न ही इसे पिया जा सकता है.

हाईकोर्ट के आदेश पर राज्य के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने यहां की 750 डाई फैक्ट्रियों को बंद करने का आदेश दिया. इससे निर्यात उद्योग पर बुरा असर पड़ा जो पहले से ही कपास की बढ़ी कीमतों से परेशान है. सेंचुरी अपैरल्स के मालिक रॉयबेन स्वामीदॉस कहते हैं, "इससे बड़ी अनिश्चितता हो गई है. ये हमारे लिए ऑर्डर लेने का सबसे अच्छा वक्त है लेकिन हमें नहीं पता कि इन सबका क्या उपाय निकलने वाला है. इसका असर बड़े उद्योग से जुड़े छोटे उद्योगों पर होगा जैसे कि बुनाई, रंगाई."

2005 में भी हाईकोर्ट ने रंगाई करने वाली फैक्ट्रियो को बंद करने का आदेश दिया था. तब यहां के उद्योगों ने सरकार को भरोसा दिया कि वो ऐसी तकनीक में निवेश करेंगे जिससे कि खतरनाक रसायन न निकले. कुछ कंपनियों ने इस तरह की तकनीक अपने यहां लगाई भी लेकिन ज्यादातर कंपनियों अपने पुराने ढर्रे पर ही चलती रहीं. अब सरकार इस निवेश में सब्सिडी देने के लिए भी तैयार है लेकिन फैक्ट्री मालिक कह रहे हैं कि पूरी तरह से रसायनों पर रोक लगा पाना मुमकिन नहीं है. जो अभी भी धंधे में जुटे हुए हैं उनका कहना है कि उन्हें अपनी फैक्ट्री की क्षमता से कम पर काम चलाना पड़ रहा है. कपड़ा रंगने की फैक्ट्री चलाने वाले भारत बालू कहते हैं, "बहुत सी कंपनियों ने बैंक से कर्ज लेकर नई तकनीक में निवेश किया है. अब उन्हें कर्ज चुकाने में बहुत पैसा खर्च करना पड़ रहा है. इसलिए उनका धंधा मुनाफे का नहीं रहा वो ज्यादा दिनों तक कर्ज की किस्तें चुकाने के काबिल नहीं रहेंगे."

रंगाई उद्योग चाहता है कि सरकार उन्हें फैक्ट्रियों को चलाने की अनुमति दे. लंबे समय के लिए इसका कोई उपाय अब तक नहीं ढूंढा जा सका है ऐसे में भारतीय कपड़ा निर्यात उद्योग से जुड़े कर्मचारियों का भविष्य भी अधर में है.

रिपोर्टः पिया चंदावरकर/एन रंजन

संपादनः ओ सिंह

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