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मीडिया से मुखातिब मनमोहन

२ जनवरी २०१४

आम तौर पर खबरें प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद बनती हैं लेकिन बहुत कम बोलने वाले भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की प्रेस कॉन्फ्रेंस ही सुर्खियां बटोर रही है. सबसे बड़ा कयास यह है कि क्या वे अपना दूसरा कार्यकाल पूरा करेंगे.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

हालांकि इससे पहले मनमोहन सिंह के संभावित इस्तीफे की अटकलों वाली रिपोर्टें भी चल निकली थीं, जिसे प्रधानमंत्री कार्यालय को रोकनी पड़ी. कहा जा रहा था कि कांग्रेस उस नेता को आगे कर सकती है, जिसे अगले चुनाव में प्रधानमंत्री के तौर पर प्रोजेक्ट किया जाने वाला है. हालांकि प्रधानमंत्री कार्यालय के बयान में कहा गया, "प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अपना कार्यकाल पूरा करेंगे." सूचना और प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी ने कहा, "रिपोर्टें बेनुनियाद हैं. मीडिया कहती रहती है कि वे (प्रधानमंत्री) उनसे बात नहीं करते, अब जब उन्होंने 2014 के शुरू में बात करने का फैसला किया, तो इस पर भी कयासबाजी शुरू हो गई."

शब्दों को बेहद किफायत से खर्च करने वाले 81 साल के मनमोहन सिंह यूं तो विदेश दौरों में मीडिया से मुखातिब होते हैं और विशेष विमान में उनके साथ ही सफर करते हैं. लेकिन इसके अलावा वह आम तौर पर मीडिया से दूरी बनाए रखते हैं. दो बार के कार्यकाल में उन्होंने सिर्फ दो बार प्रेस कॉन्फ्रेंस की है.

हजारों सवाल...

यहां तक कि उन्हें संसद में भी कम बोलने वाला प्रधानमंत्री कहा जाता है. ऐसे ही एक मौके पर जब भ्रष्टाचार के मुद्दे पर उनसे सवाल पूछा गया, तो अगस्त 2012 में उन्होंने जवाब कुछ ऐसे दिया, "हजारों जवाबों से अच्छी है मेरी खामोशी, न जाने कितने सवालों की आबरू रखी."

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कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधीतस्वीर: picture-alliance/dpa

यूपीए का पहला कार्यकाल 2004 में शुरू हुआ और मीडिया और विपक्षी पार्टियों ने उन्हें शुरू से ही एक कमजोर प्रधानमंत्री के तौर पर प्रोजेक्ट करने की कोशिश की. हालांकि उन्होंने मीडिया के साथ पहली भेंट में 2006 में जवाब दिया, "पुडिंग के खाने से ही इसके स्वाद का पता चलता है. मैंने ऐसा कुछ नहीं किया है कि मुझ पर ऐसे आरोप लगें. आडवाणीजी के बयान पर नहीं, बल्कि मेरे काम पर मुझे आंका जाए."

घोटाले पर घोटाला

यूपीए की पहली पारी तो अच्छी रही और इसी बुनियाद पर 2009 में भारत की जनता ने उसे दूसरा मौका दिया. लेकिन दूसरी पारी की शुरुआत ही भ्रष्टाचार के मामले से हुई, जब भारत के बड़े नेताओं के नाम 2010 के दिल्ली कॉमनवेल्थ गेम्स में आने लगे. सुरेश कलमाड़ी जैसे नेताओं को जेल भी जाना पड़ा. बाद में टेलीकॉम घोटाला, आदर्श स्कैम और कोयला घोटाला भी सामने आया.

इस बीच, बीजेपी ने नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया, जिससे कांग्रेस पर बड़ा दबाव बन गया है. भ्रष्टाचार और महंगाई के खिलाफ जंग की बात कर रही बीजेपी को पिछले साल तीन राज्यों में जबरदस्त कामयाबी भी मिली. इसके बाद कांग्रेस पर भी प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार की घोषणा का दबाव बन गया. पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी ने चुनाव परिणामों के बाद कहा, "एक सही फैसला सही वक्त पर लिया जाएगा."

आम आदमी से दिक्कत

लेकिन कांग्रेस की सबसे बड़ी दिक्कत हाल में दिल्ली में सत्ता में आई आम आदमी पार्टी से है, जिसने दिल्ली विधानसभा में 15 साल से राज कर रही कांग्रेस को धूल चटा दी और जिसकी पूरी राजनीति भ्रष्टाचार के खिलाफ टिकी है. आप का कहना है कि वह लोकसभा चुनाव में भी अपने उम्मीदवार खड़ा करना चाहती है.

कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने तो यहां तक कहा कि कांग्रेस को आप से सीखने की जरूरत है. इसके बाद राहुल गांधी ने कुछ क्रांतिकारी कदम उठाए, जिसमें लोकपाल बिल को संसद से पास कराना और आदर्श स्कैंडल में अपनी ही राज्य सरकार के खिलाफ बयान जारी करना भी शामिल है. कांग्रेस के कई नेता उन्हें प्रधानमंत्री के पद के लिए आगे करने की मांग करते आए हैं. समझा जाता है कि मनमोहन सिंह के प्रेस कॉन्फ्रेंस में इस बारे में भी कोई एलान हो सकता है. यूपीए सरकार के वरिष्ठ मंत्री पी चिदंबरम भी कह चुके हैं कि कांग्रेस को ऐसा करना चाहिए, "मेरे विचार से पार्टी को एक ऐसे व्यक्ति को आगे बढ़ाना चाहिए, जो पार्टी की जीत होने पर प्रधानमंत्री बन सकता है. यह मेरा विचार है लेकिन फैसला पार्टी को ही करना है."

हालांकि राहुल गांधी के लिए भी प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी कांटे की सेज साबित हो सकती है. आप पार्टी के अहम नेता और कवि कुमार विश्वास ने उनके गढ़ अमेठी से चुनाव लड़ने की चुनौती दी है, "उनकी पूरी राजनीति में उनके गांधी के उपनाम के अलावा कोई उपलब्धि नहीं रही है. सबको अमेठी की स्थिति के बारे में पता है."

वैसे कांग्रेस का सालाना अधिवेशन भी 17 जनवरी को होना है और प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार का एलान तब भी किया जा सकता है. लेकिन राहुल को वंशवाद के नाम पर दूसरी पार्टियों के हमले भी झेलने पड़ते हैं. बीजेपी की निर्मला सीतारमन का कहना है, "अगर हम अटकलों पर जाएं, तो उन्हें यह तय करना है कि उनकी पसंद क्या होगी. लेकिन अगर राहुल गांधी को लाया जाता है, तो इससे वंशवाद की राजनीति आगे बढ़ेगी."

एजेए/एमजे (एजेंसियां)

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