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मालदीव में बगावत, राष्ट्रपति नशीद हटे

७ फ़रवरी २०१२

भारत के दक्षिण में बसे छोटे से देश मालदीव में बगावत के बीच राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद ने इस्तीफा दे दिया. जलवायु परिवर्तन की मार झेल रहे देश मालदीव में नशीद लोकतांत्रिक ढंग से चुने गए पहले राष्ट्रपति हैं.

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मोहम्मद नशीदतस्वीर: dapd

लगातार विरोध प्रदर्शन के बाद 44 साल के नशीद ने टेलीविजन पर छोटा सा संदेश दिया, "देश के लिए यह बेहतर होगा अगर मैं इस्तीफा दे देता हूं. मैं सख्ती से देश का नेतृत्व नहीं करना चाहता हूं. मैं इस्तीफा दे रहा हूं." तीन हफ्तों से राजधानी माले में सरकार विरोधी प्रदर्शन हो रहे थे और पिछले दिनों पुलिस भी प्रदर्शनकारियों के साथ हो गई.

मालदीव की सेना के प्रवक्ता अब्दुल रहीम अब्दुल लतीफ का कहना है कि सेना ने आंसू गैस और रबर की गोलियां चला कर प्रदर्शनकारियों को तितर बितर किया. वे लोग सेना के मुख्यालय के बाहर भी जमा हो गए थे. लतीफ का कहना है, "वहां हिंसक झड़प आधी रात के बाद शुरू हो गई थी, जो सुबह आठ बजे तक चलती रही." पुलिस ने बाद में राष्ट्रीय टेलीविजन चैनल पर कब्जा कर लिया और वहां विपक्षी पार्टी का चैनल प्रसारित किया जाने लगा.

नशीद से गुस्सा

पिछले कुछ दिनों से नशीद से इस्तीफे की मांग की जा रही थी क्योंकि उन्होंने आपराधिक अदालत के चीफ जस्टिस अब्दुल्ला मोहम्मद की गिरफ्तारी के आदेश दे दिए थे. नशीद का आरोप है कि मोहम्मद विपक्षी पार्टियों का साथ दे रहे थे. सरकार की वेबसाइट पर एक बयान जारी किया गया है, जिसमें कहा गया है कि सभी सरकारी प्रतिष्ठानों के साथ मिल कर सरकार देश में शांति स्थापित करने की कोशिश करेगी.

मालदीव की घटना पर अंतरराष्ट्रीय नजर भी थी. संयुक्त राष्ट्र की एक टीम गुरुवार को माले पहुंचने वाली है, जो वहां के राजनीतिक हालात पर चर्चा करेगी. मालदीव के विदेश मंत्री अहमद नसीम ने संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार शाखा को एक चिट्ठी लिख कर इस मामले में फौरन हस्तक्षेप करने की मांग की है.

मालदीव का हीरो

मोहम्मद नशीद मालदीव के युवा हीरो के तौर पर देखे जाते हैं, जिन्होंने 2008 में हुए पहले लोकतांत्रिक चुनाव में शानदार कामयाबी पाई थी. इससे पहले मालदीव में तीस साल तक मामून अब्दुल गय्यूम की सरकार थी, जो निरंकुश शासक के तौर पर जाने जाते थे. हालांकि उनकी सरकार के खिलाफ भी एक बार सैनिक बगावत की कोशिश हुई थी लेकिन भारत सरकार की मदद से उसे दबा दिया गया था.

मोहम्मद नशीद खुद एक राजनीतिक कैदी थे, जिन्होंने कई साल मालदीव के बाहर बिताए. लेकिन सरकार बनाने के बाद वे बड़ी तेजी से लोकप्रिय हुए और उन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी अलग पहचान बनाई. 2008 में मालदीव लौटने के बाद नशीद ने मालदीवियन डेमोक्रैटिक पार्टी का गठन किया, जिसने चुनावों में 54 प्रतिशत वोट हासिल किया. उस वक्त देश की जनता ने सड़क पर नाचते गाते उनका स्वागत किया था.

जलवायु परिवर्तन की मार

मालदीव 1192 द्वीपों का देश है, जो जलवायु परिवर्तन से बुरी तरह प्रभावित हुआ है. नशीद ने अपने देश की इस समस्या को दुनिया के सामने अलग अंदाज में रखा और जलवायु परिवर्तन पर होने वाले अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों में उन्हें बुलाया जाने लगा. उन्होंने इस ओर ध्यान आकृष्ट करने के लिए एक बार पानी के अंदर कैबिनेट की बैठक आयोजित की. एक अनुमान के मुताबिक इस शताब्दी के अंत तक देश के सभी हिस्से पानी में समा जाएंगे. राष्ट्रपति नशीद ने इस समस्या को बढ़ चढ़ कर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रखा है.

मालदीव की कुल आबादी महज सवा तीन लाख है, जो सभी सुन्नी मुस्लिम हैं. सबसे ज्यादा करीब दो लाख लोग राजधानी माले में रहते हैं. यहां धेवेली भाषा बोली जाती है, जो सिंहली से मिलती जुलती है. मालदीव को छुट्टियां बिताने की शानदार जगह के तौर पर जाना जाता है और देश के लिए राजस्व का सबसे बड़ा जरिया भी यही है. जानकारों का कहना है कि राजनीतिक उथल पुथल के बाद मालदीव के पर्यटन उद्योग पर असर पड़ सकता है.

रिपोर्टः एएफपी, एपी/ए जमाल

संपादनः महेश झा

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