भारत से रिश्तों में अपार संभावनाएं: जर्मन राष्ट्रपति
२६ मार्च २०१८बनारस में अग्नि के साथ शाम की गंगा आरती. जर्मन राष्ट्रपति फ्रांक वाल्टर श्टाइनमायर वीआईपी पोडियम में बैठकर गंगा में बहते हजारों दीपकों को देख रहे थे. इससे पहले वह बौद्ध उपासना स्थल सारनाथ गए. गंगा आरती देखने के बाद जर्मन राष्ट्रपति नई दिल्ली में भारत की सबसे बड़ी मस्जिद, जामा मस्जिद पहुंचे.
जर्मन राष्ट्रपति ने भारत में अपनी यात्रा के पड़ाव बहुत सोच समझकर चुने. ये पड़ाव बता रहे थे कि भारत विविधता से भरा देश है और इस विविधता का सम्मान होना चाहिए. वाराणसी के जरिए जर्मन राष्ट्रपति ने अपने देशवासियों को भी धार्मिक विविधता का संदेश दिया. जर्मनी में इस वक्त इस्लाम को लेकर राजनीतिक बहस छिड़ी हुई है. जर्मनी के कुछ अहम नेता इस्लाम को जर्मन संस्कृति का हिस्सा मानने से इनकार कर रहे हैं. बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी (बीएचयू) में छात्रों के सेमिनार में हिस्सा लेने वाले जर्मन राष्ट्रपति ने कहा, "हम भारत से सीख सकते हैं."
बीएचयू के 25 छात्रों ने जर्मन राष्ट्रपति को अपना संदेश देते हुए कहा, "भारत में हम अपनी विविधता को न सिर्फ जीते हैं, बल्कि इसका उत्सव मनाते हैं." छात्रों से बातचीत के बाद श्टाइनमायर ने कहा, "छात्र भारत के बेहद विविध समाज को साथ रखने की कोशिश कर रहे हैं, इसे पक्का करने के लिए वे कुछ करना चाहते हैं." वाराणसी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चुनाव क्षेत्र है और इससे पहले भी वे जापानी प्रधानमंत्री शिंजो आबे और फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों को लेकर वहां जा चुके हैं.
लेकिन क्या भारत में पेश किए जाने वाले संदेशों में और वहां दिखने वाली सच्चाई में फर्क है? जर्मन राष्ट्रपति एक ऐसे वक्त पर भारत गए जब वहां धार्मिक अहिष्णुता बढ़ रही है. भारत में करीब 18 करोड़ मुस्लिम रहते हैं. इंडोनेशिया के बाद भारत में सबसे ज्यादा मुसलमान रहते हैं. लेकिन इसके बावजूद उन्हें अल्पसंख्यक का दर्जा मिला हुआ है. भारत में 2014 में नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली सरकार बनी. तब से ही देशभर में कट्टरपंथी हिंदू संगठनों की दंबगई और हिंसा के कई मामले सामने आ रहे हैं.
जर्मनी की हाइडेलबर्ग यूनिवर्सिटी में भारत विद्या के प्रोफेसर आक्सेल मिषाएल्स को लगता है कि मोदी की हिंदू राष्ट्रवादी पार्टी से जुड़े प्रभावशाली समूह भारत में हिंदू धर्म का दबदबा देखना चाहते हैं, लेकिन इससे देश की विविधता कमजोर होगी, "और, अक्सर, प्रधानमंत्री मोदी उन्हें ऐसा करने देते हैं."
जर्मन राष्ट्रपति की यात्रा बताती है कि भारत के पास विविधता के रूप में कितनी बड़ी ताकत है और जर्मनी समेत बाकी देश इससे क्या सीख ले सकते हैं. भारत को करीब से जानने का फायदा जर्मन समाज के साथ साथ उद्योगों को होगा. हाल के समय में भारत और जर्मनी के कारोबारी रिश्ते काफी बेहतर हुए हैं. जर्मन राष्ट्रपति के मुताबिक इस वक्त भारत में करीब 1,800 जर्मन कंपनियां काम कर रही हैं. इन कंपनियों में 4,00,000 भारतीय काम कर रहे हैं.
जर्मनी यूरोप में भारत का सबसे बड़ा और दुनिया में नई दिल्ली का छठा बड़ा कारोबारी साझेदार हैं. 2016-17 में दोनों देशों के बीच 19 अरब डॉलर का कारोबार हुआ. जर्मन राष्ट्रपति को लगता है कि अभी भी दोनों देशों के पास पारस्परिक सहयोग बढ़ाने की अपार संभावनाएं हैं, "हमें जर्मनी और भारत के कारोबार को नए आयाम देने चाहिए, तकनीक विकसित करनी चाहिए और जर्मनी व भारत के बीच संवाद विकसित करना चाहिए."
भारतीय युवाओं को अच्छी रोजगार परक शिक्षा देने के लिए जर्मनी वोकेशनल ट्रेनिंग भी दे रहा है. भारत को इस ट्रेनिंग की सख्त जरूरत हैं. भारतीय विदेश मंत्रालय के मुताबिक, "भारत की मौजूदा प्राथमिकताएं जर्मनी की एक्सपर्टीज से मेल खाती हैं, मसलन अक्षय ऊर्जा, कौशल विकास, जल और कूड़ा प्रबंधन, नदियों की सफाई, रेलवे, इत्यादि. बेहतर ट्यूनिंग से स्पष्ट और फलदायक परिणाम हासिल किए जा सकते हैं.""
पांच दिवसीय दौरे के आखिरी पड़ाव में जर्मन राष्ट्रपति आईआईटी मद्रास जा रहे हैं जो जर्मनी के सहयोग से स्थापित हुआ था. चेन्नई में वह डायमलर इंडिया कर्मशियल व्हीकल्स के प्रोडक्शन और ट्रेनिंग सेंटर का भी दौरा करेंगे. ऐसे सेंटर दोनों देशों के बीच आधुनिक तकनीकी सहयोग को दर्शाते हैं. जर्मनी में 14 मार्च 2018 को नई सरकार बनने के बाद यह जर्मनी के राष्ट्रपति का पहला विदेशी दौरा है.
रिपोर्ट: कातारीना क्रॉल/डीपीए