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भारत: शिक्षा सिर्फ पैसे वालों के लिए

२८ मई २०१२

भारत के आईटी एक्सपर्ट, इंजीनियर और डॉक्टर पूरी दुनिया को अचंभे में डाल रहे हैं. उनके हुनर की पूरी दुनिया में मांग है. लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर वाली अच्छी शिक्षा बहुत कम भारतीयों को नसीब होती है.

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तस्वीर: AP

भारत के लिए 4 अप्रैल 2009 ऐतिहासिक दिन था. इस दिन संविधान में लिख दिया गया कि छह साल से चौदह साल के बच्चों के लिए स्कूली शिक्षा मौलिक अधिकार है. इसके साथ स्कूली शिक्षा मुफ्त और अनिवार्य हो गई. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह यह कहते नहीं थकते कि बच्चों को अच्छी शिक्षा के जरिए ही भारत अपना आर्थिक विकास जारी रख पाएगा. "हमें उन्हें अच्छा भविष्य देना होगा, तभी हमारी आबादी हमारा सबसे बड़ा हथियार बन पाएगी."

सारे अच्छे संकल्पों के बावजूद भारत की हकीकत कुछ और कहती है. देहाती इलाकों में 80 फीसदी स्कूल सरकारी हैं. नियमित रूप से होने वाली जांच में अक्सर सामने आता है कि पिछड़े प्रांतों में 40 फीसदी शिक्षक ड्यूटी पर ही नहीं जाते. समस्या कई हैं. उनकी कम तनख्वाह है. सुविधाओं का अभाव है. हजारों गांव इतने पिछड़े हुए हैं कि वहां शिक्षक अपने परिवार के साथ नहीं रह सकते.

निराशाजनक तस्वीर

देहाती इलाकों में शिक्षकों की कमी के कारण बहुत से स्कूलों में कई क्लास के बच्चों को एक साथ पढ़ाया जाता है. एक एक क्लास में 50 से 80 बच्चे होते हैं. बच्चों को सिखाने के बदले रटाया जाता है. मुंबई की विख्यात शिक्षाशास्त्री इंदु शाहनी पिछले तीस सालों से शिक्षा में सुधार की कोशिशों में लगी हैं. धीमे विकास के बावजूद वे निराश नहीं हैं, "भारतीय बच्चे सीखना चाहते हैं, भले ही उनकी राह में कोई भी बाधा क्यों न हो."

Unterricht in einer Dorfschule
तस्वीर: DW

भारत में शिक्षा स्टेटस सिंबल है. इसलिए माता-पिता अपने बच्चे को अच्छी शिक्षा देने और इसके लिए प्राइवेट स्कूल में भेजने में कोई कसर नहीं छोड़ते. भले ही उनकी अपनी आय कम क्यों न हो, भले ही उन्हें खुद कोई शिक्षा न पाई हो. शिक्षा को बेहतर भविष्य की सीढ़ी समझा जाता है. बहुत से लोग कर्ज लेकर भी बच्चों को पढ़ाते हैं.

भारत सरकार को पता है कि सारी आबादी को पढ़ाना बहुत बड़ी चुनौती है. अक्सर उसकी इस बात के लिए आलोचना होती है कि शिक्षा का बजट बहुत कम है. वर्तमान बजट में शिक्षा का हिस्सा लगभग 480 अरब रुपये है जो कुल बजट का चार फीसदी भी नहीं है. सवा अरब की आबादी में हर व्यक्ति की शिक्षा पर साल में सिर्फ 400 रुपये का खर्च. फिर भी विकास हो रहा है. पिछले दस सालों में भारत में साक्षरों की संख्या 65 फीसदी से बढ़कर 74 फीसदी हो गई है.

शिक्षाशास्त्री इंदु शाहनी नहीं मानती की शिक्षा पर ज्यादा खर्च करने से भारत की बहुआयामी समस्याओं का हल हो पाएगा. वे कहती हैं, "इसमें कोई शक नहीं कि शिक्षा और स्वास्थ्य भारत की सबसे जरूरी समस्या है. लेकिन उसमें पैसा डालने मात्र से कुछ नहीं होगा. रणनीतियों को समय के अनुरूप बदलना होगा."

प्रतिस्पर्धी हैं कुछ संस्थान

लंबे समय तक बेहतरीन यूनिवर्सिटियों में पैसा लगाया गया. जैसे कि इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी में, जहां हर साल 8,000 छात्रों को इंजीनियरिंग में विश्वस्तरीय शिक्षा मिलती है. केंद्र सरकार भारत भर में सिर्फ दो दर्जन यूनिवर्सिटी को पैसा देती है. प्रांतीय सरकारें 200 यूनीवर्सिटी और 20,000 कॉलेज चलाती हैं. यह बहुत ही कम है क्योंकि स्कूल पास करने वाले दस फीसदी बच्चों को भी वहां पढ़ने की जगह नहीं मिलती. छात्रों पर परिवार की उम्मीदों का इतना दबाव रहता है कि परीक्षा के महीनों में अखबार युवा छात्रों की आत्महत्या की खबरों से भरे रहते हैं.

Indien Billig Tablet Computer
तस्वीर: picture-alliance/dpa

हर साल यूनिवर्सिटी की पढ़ाई पूरी करने वाले लोगों को सचमुच भारत के चोटी के लोगों में गिना जा सकता है. उनमें से बहुत से लोग आगे की पढ़ाई के लिए अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया या कनाडा चले जाते हैं और काम करने के लिए वहीं रह जाते हैं. इस प्रतिभा पलायन को रोकने के लिए स्वास्थ्य मंत्री गुलाम नबी आजाद ने एक योजना बनाई है. इसके अनुसार अमेरिका में उच्चशिक्षा के लिए जाने वाले भारतीय डॉक्टरों को वापस भारत लौटना होगा. आजाद कहते हैं, "पिछले तीन सालों में हमने करीब 3,000 डॉक्टर अमेरिका में खो दिए हैं."

लड़कियों की शिक्षा

हालांकि इंदिरा गांधी के रूप में 1970 के दशक में ही एक महिला भारत की प्रधानमंत्री बनी थीं, लेकिन सार्वजनिक जीवन के अधिकांश इलाकों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व न के बराबर है. स्कूली शिक्षा के समय से ही भेदभाव शुरू हो जाता है. अधिक बच्चे वाले परिवारों में लड़कों की शिक्षा के लिए लड़कियों की शिक्षा की बलि दे दी जाती है.

भारत जैसे पितृसत्तात्मक समाज में यह पूर्वाग्रह जड़ें जमाए बैठा है कि बेटे ही बूढ़े मां-बाप की देखभाल कर सकते हैं. लड़कियां शादी के बाद दूसरे घरों में चली जाती हैं, वे परिवार का हिस्सा नहीं रह जाती. इंदु शाहनी के पास इसका जवाब है, "हमें बार बार यह बताना होगा कि यदि आप एक लड़के को पढ़ाते हैं तो एक व्यक्ति में निवेश करते हैं. यदि आप लड़की को स्कूल भेजते हैं तो आप एक परिवार में निवेश करते हैं और अक्सर एक पूरे गांव में."

रिपोर्ट: प्रिया एसेलबॉर्न/मझा

संपादन: ओंकार सिंह जनौटी

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