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भारत में हिन्दी सीखते जर्मन

८ अप्रैल २०१३

साठ साल की मारियॉन, 16 साल की नाजली, 28 साल के माथियास. ये सभी जर्मनी से भारत के जयपुर शहर पहुंचे हैं. वो देखना और समझना चाहते हैं कि भारत के लोग अपनी मातृभाषा कैसे बोलते हैं.

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तस्वीर: DW/Jasvinder Sehgal

बर्लिन में बॉलीवुड डांस सिखाने वाली जारा और उनकी बेटी नाजली को भारत की होली से बहुत प्यार है. नाजली आठ सदस्यों वाले जर्मन दल में सबसे छोटी हैं. वह नौवीं कक्षा में पढ़ती हैं. उन्होंने हिन्दी सीखना तो शुरू नहीं किया लेकिन उन्हें ये भाषा बहुत पसंद है. वो इसे सीखना चाहती हैं ताकि बॉलीवुड के गाने और मां का डांस समझ सकें.

नाजली को हिन्दी फिल्में बेहद पसंद हैं. बॉडीगार्ड वह चार बार देख चुकी हैं और प्रियंका चोपड़ा वाली दोस्ताना फिल्म के कुछ डायलॉग उन्हें रटे हुए हैं. आजा नचले गाना भी उन्हें अच्छे से याद है. और खाने में वह तंदूरी चिकेन पसंद करती हैं. इतना ही नहीं, मां बेटी ताजमहल देश की सबसे सुंदर जगह और होली को सबसे शानदार त्योहार बताती हैं.

भारत की पहल

आठ सदस्यों वाला जर्मन दल अंजना सिंह की अगुवाई में भारत आया है. सिंह बर्लिन में 2001 से हिन्दी पढ़ा रही हैं. अलग अलग उम्र के लोगों की इच्छा और लक्ष्य एक ही है हिन्दी में महारत हासिल करना.
60 साल की मारियॉन ने बातचीत के दौरान, "हम तो हैं परदेस में देस में निकला होगा चांद", गजल अपने अंदाज में सुनाई. तो वाल और फ्रांस दंपती ने कहा कि वह अपनी गोद ली हुई बेटी नेहा को समझने के लिए हिन्दी सीख रहे हैं. दोनों बनारस में अनाथ नेहा की पढ़ाई और भरण पोषण का खर्चा उठा रहे हैं.

Mariyon und Maire in Jaipur
भारतीय पोशाकों में मारियॉन और माइरेतस्वीर: DW/Jasvinder Sehgal

बर्लिन के टेक्निकल यूनिवर्सिटी में समाज विज्ञान और अर्थशास्त्र की पढ़ाई कर रहे 28 साल के माथियास ग्रैजुएशन के बाद भारत में पढ़ना चाहते हैं और हिन्दी सीखना चाहते हैं. उनका सपना है दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से मास्टर्स और भारतीय चैंबर ऑफ कॉमर्स में ट्रेनिंग लेना.

हालांकि हिन्दी के लिए कहा जाता है कि "जैसा बोलते हैं वैसा ही लिखना" है. लेकिन माथियास का अनुभव कुछ अलग लगता है. उनकी सबसे बड़ी परेशानी है कि जैसा बोलते हैं वैसा ही लिखते क्यों नहीं. उन्हें थ्री इडियट्स, धूम फिल्म बहुत पसंद हैं. इतना ही नहीं भारतीय लड़कियां भी उन्हें बहुत भाती हैं और इनमें वह अपना जीवन साथी देखते हैं.

माइरे का सपना माथियास से बिलकुल अलग है. माइरे कृषि वैज्ञानिक हैं और गोएटिंगन में रहती हैं. वह तीसरी बार भारत आई हैं और किसानों से बातचीत कर पाने के लिए हिन्दी सीख रही हैं. माइरे ने बताया कि पांच साल पहले उन्होंने हिन्दी का प्रारंभिक कोर्स किया लेकिन अब वह और पढ़ना चाहती हैं. अपने भारत अनुभव के बारे में वह बताती हैं कि देहरादून के एक खेत में वह किसानों की कोई बात नहीं समझ पाईं. इसके बाद उन्होंने तय किया कि वह हिन्दी सीखेंगी. वह दक्षिण भारत के ग्रामीण इलाकों का भी दौरा कर चुकी हैं. उन्हें हिन्दी किसी धुन जैसी लगती है. हिन्दी सुनने पर उन्हें ऐसा लगता है जैसे कहीं सुरीला वाद्य यंत्र बज रहा हो. भारतीय पोशाक और रंग बिरंगी चूड़ियां पहनी माइरे को भारत तनाव रहित लगता है जहां सब कुछ आसानी से हो जाता है.

Nazli und ihre Mutter Zara
नाजली और उनकी मां जारातस्वीर: DW/Jasvinder Sehgal

वहीं 60 साल की मारियॉन भाषा वैज्ञानिक हैं. वह चेक, रूसी, इतालवी, फ्रेंच, जर्मन, फारसी और हिन्दी बोलती हैं. तीन साल से वह हिन्दी सीख रही हैं और उन्हें बोलना, लिखने पढ़ने से ज्यादा मुश्किल लगता है. वह कहती हैं कि बर्लिन में हिन्दी बोलने वाले ज्यादा लोग नहीं है इसलिए हिन्दी सुनने और समझने वह भारत आई हैं. मारियॉन शाकाहारी हैं और कहती हैं कि भारतीय भोजन स्वादिष्ट और स्वस्थ दोनों है.

Wal und Franz aus Deutschland
पति पत्नी वाल और फ्रांसतस्वीर: DW/Jasvinder Sehgal

इन सभी जर्मनों के साथ उनकी गुरु अंजना सिंह भी हैं. वह उन्हें भारत भ्रमण करवा रही हैं और हिन्दी की कक्षाएं भी ले रही हैं. चार हजार जर्मनों को हिन्दी पढ़ा चुकी अंजना जर्मनी के तीन विश्वविद्यालयों में हिन्दी पढ़ाती हैं. उनके मुताबिक जर्मनी में हिन्दी सीखने वालों की संख्या तो बहुत है लेकिन अधिकतर को कारक चिह्नों का प्रयोग मुश्किल लगता है. एक घटना के बारे में वह बताती हैं कि एक जर्मन ने भारतीय रेस्तरां के मालिक को शुभकामना में आपका रेस्तरां खूब चले की जगह आपका रेस्तरां खूब जले लिख कर दिया. अंजना सिंह भारतीय पत्रकारों की संस्था इंडियन मीडिया सेंटर फॉर जर्नलिस्ट के लिए भी काम करती हैं.

रिपोर्टः जसविंदर सहगल, जयपुर

संपादनः आभा मोंढे

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