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भारत में विकास दर में भारी कमी

कुलदीप कुमार, नई दिल्ली२७ फ़रवरी २००९

पिछले साल की आख़िरी तिमाही के नतीजों के मुताबिक़ भारतीय अर्थव्यवस्था सिर्फ़ 5.3 प्रतिशत के दर से बढ़ी है. भारत कम से कम सात फ़ीसदी के सालाना विकास दर की बात करता है. विशेषज्ञों का कहना है कि विकास दर तेज़ हो जाएगी.

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खेती में भी गिरावटतस्वीर: AP

वैश्विक मंदी का भारत की अर्थव्यवस्था पर असर साफ़-साफ़ दिखने लगा है. चालू वित्तीय वर्ष की तीसरी तिमाही यानी अक्तूबर-दिसम्बर, 2008 के लिए जारी आंकड़े बताते हैं कि इस दौरान सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 5.3 प्रतिशत की दर से वृद्धि हुई है. एक वर्ष पहले इसी अवधि के दौरान अर्थव्यवस्था में 8.9 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई थी. विकास दर में इस कमी के पीछे कृषि और उत्पादन क्षेत्रों में आयी गिरावट है. जहां उत्पादन में 0.2 प्रतिशत की गिरावट की उम्मीद की जा रही थी, वहीं कृषि क्षेत्र में आयी गिरावट से विशेषज्ञ भी हैरत में हैं.

Produktion des Tata Nano Autos in Indien
वैश्विक मंदी का असरतस्वीर: AP

लेकिन केंद्रीय कृषि सचिव टी नंदकुमार अभी भी आशान्वित हैं. उनका कहना है कि चालू वित्तीय वर्ष के अंत तक कृषि क्षेत्र में चार प्रतिशत की विकास दर की उम्मीद की जा सकती है. दिसम्बर तक भारतीय अर्थव्यवस्था 6.9 प्रतिशत की दर से विकशित हुई है.

आम तौर पर माना जाता है कि अंतिम तिमाही यानी जनवरी से मार्च के बीच में निवेश में बढ़ोतरी होती है जिसका आर्थिक विकास दर पर अच्छा असर पड़ता है. इसलिए अर्थशास्त्रियों ने अभी भी 7.1 प्रतिशत विकास दर की उम्मीद छोड़ी नहीं है.

संसदीय कार्य राज्यमंत्री पवन बंसल ने एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि अभी भी भारतीय अर्थव्यवस्था चीन के बाद दुनिया की सबसे अधिक तेज़ी से विकसित होने वाली अर्थव्यवस्था है. बंसल की बात में दम है क्योंकि इस समय दुनिया के कई देशों में विकास दर शून्य से नीचे चली गयी है.

लेकिन ताज़ा आंकडों को देखकर भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) ने ढांचागत क्षेत्र में अधिक निवेश और ब्याज दरों में कटौती के अपने प्रस्ताव एक बार फिर दोहराए हैं. उधर डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत में अब तक की सर्वाधिक कमी दर्ज की गयी और वह 50.69 रुपये प्रति डॉलर तक गिर गया.