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भारत में लाखों टन अनाज की बर्बादी

२७ जून २०१२

भारत को दुनिया के उन देशों में गिना जाता है जहां आज भी हर साल लाखों लोग भुखमरी का शिकार होते हैं. ऐसे देश में सरकार लाखों टन अनाज जाया कर रही है. लोगों का पेट भरने से ज्यादा सरकार को बाजार की चिंता सता रही है.

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तस्वीर: AP

मेक्सिको में एक कहावत है, रईस के लिए खाना खाने का सही वक्त तब होता है जब उसे भूख लगती है और गरीब के लिए तब, जब उसे खाने के लिए कुछ मिल जाता है. भारत के हालात देखें तो यह कहावत बिलकुल सही बैठती है. यह हालात तब हैं जब देश में अनाज की कोई किल्लत नहीं है, बल्कि इतना अनाज है कि उसे संभालने की जगह ही नहीं है और वह गोदामों में पड़ा पड़ा सड़ रहा है.

कुपोषण का भारत

इस साल जून में अनाज का रिकॉर्ड तोड़ स्टॉक इकट्ठा हुआ है. भारतीय खाद्य निगम के अनुसार इस साल 7.5 करोड़ टन अनाज जमा किया गया. यह पिछले साल की तुलना में एक लाख टन ज्यादा है. अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति और शोध संस्थान आईएफपीआरए के अनुसार पोषण के स्तर में भारत पाकिस्तान, श्रीलंका और चीन से भी पीछे है. 2011 में 81 देशों पर किए गए सर्वेक्षण में भारत का स्थान 67वां रहा. ऐसे में भारत में आनाज की पैदावार में बढोतरी खुशी की बात तो है, लेकिन उनका गरीबों तक पहुंच ही न पाना चिंता का विषय है. बरसात इस चिंता को और बढ़ा रही है. भारत में मानसून का मौसम शुरू हो गया है. ऐसे में गोदामों में रखे अनाज के खराब होने का भी खतरा बढ़ रहा है.

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कीमत न किसान की न अनाज कीतस्वीर: AP

जानकारों ने इस बात पर भी सवाल उठाए हैं कि क्या अनाज की बढ़ोतरी का कारण बेहतर पैदावार है या फिर देश में आयात बढ़ गया है. वजह जो भी हो, जरूरतमंदों तक यह पहुंच नहीं पा रहा. जानकारों का यह भी मानना है कि सरकार इस अनाज को गरीबों में बांट सकती है, लेकिन ऐसा कर के वह बाजार में कोई हलचल नहीं मचाना चाहती.

बाजार की खातिर

कुछ समय पहले ऐसी रिपोर्ट भी आई कि भारतीय खाद्य निगम ने केंद्र सरकार से अपील की है कि अतिरिक्त अनाज को उन लोगों में बांट दिया जाए जो गरीबी रेखा से नीचे हैं. डॉयचे वेले से बातचीत में हिन्दू अखबार के पत्रकार पी साईनाथ ने कहा, "भारत सरकार चाहती तो अतिरिक्त अनाज को बांट सकती थी या फिर पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशान सिस्टम के तहत उसे कम दाम पर बेच सकती थी. लेकिन उसके लिए दोनों ही विकल्प अर्थव्यवस्था के नजरिए से सही नहीं होते. भूखे लोगों का पेट भर कर सरकार पर आर्थिक सहायता का बोझ आ गया होता. "गैर सरकारी संस्था कैम्पेन फॉर सरवाइवल एंड डिग्निटी के शंकर गोपालकृष्णन का कहना है, "यह इस बात का बेहतरीन उदाहरण है कि सरकार खाद्य सुरक्षा को ले कर नहीं, बल्कि बाजार और आर्थिक स्थिति को ले कर ज्यादा वचनबद्ध है. वे खुद दावा करते हैं कि वे इसलिए अनाज नहीं बांटना चाहते क्योंकि उससे बाजार पर बुरा असर पड़ेगा."

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कुपोषण का शिकार भारततस्वीर: AP

साईनाथ कहते है कि सरकार सालों से इस बात को अनदेखा करती आई है कि अनाज को रखने के लिए नई इमारतों की जरूरत है. ऐसा हाल उस देश का है जिसके सर्वोच्च न्यायलय ने कभी कहा था, "जिस देश में लोग भूख से मर रहे हों, वहां अनाज के एक भी दाने को व्यर्थ करना अपराध है."

रिपोर्ट: तनुश्री शर्मा संधू / ईशा भाटिया

संपादन: मानसी गोपालकृष्णन

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