भारत में नया ट्रेंड: साझा दफ्तर
भारत के सॉफ्टवेयर उद्योग ने तीन दशक पहले दुनिया को चौंका दिया. अब भारत में एक और नया कॉन्सेप्ट देखने को मिल रहा है. को-वर्किंग स्पेस यानि साझा दफ्तर.
सोशल
दिल्ली के हौज खास विलेज में सोशल नाम की एक इमारत है. इसमें अलग अलग पेशों से जुड़े युवा आते हैं और एक ही छत के नीचे बैठकर काम करते हैं. भारत के अलग अलग शहरों में इस वक्त 12 से ज्यादा ऐसे साझा दफ्तर हैं.
बड़े काम की चर्चा
सोशल को अपना दफ्तर बनाने वालों में फ्रीलांस पत्रकार, फोटोग्राफर, वेब डेवलपर, ग्राफिक डिजायनर और स्टार्ट अप शुरू करने वाले युवा है. एक दूसरे से बात करके उन्हें अपना आइडिया बेहतर करने में भी मदद मिलती है.
कैसे हुई शुरुआत
सोशल के मालिक रियाज अलमानी के मुताबिक दिल्ली के अहम इलाके में सस्ते ऑफिस की जरूरत कई लोग महसूस कर रहे थे. उन्होंने इसे अपने रेस्तरां के कॉन्सेप्ट से जोड़ा और को-वर्किंग स्पेस बना दिया. इसका किराया 100 डॉलर प्रतिमाह से भी कम है.
युवाओं की पसंद
को-वर्किंग स्पेस युवाओं को आकर्षित करने वाला है. भारत के ज्यादातर स्टार्ट अप ऐसे युवाओं ने शुरू किये हैं जो 28 साल से छोटे हैं. इनमें से ज्यादातर बड़े शहर के कामकाजी इलाकों में महंगा ऑफिस नहीं ले सकते हैं. उनके लिए ऐसी जगहें बेस्ट हैं.
कोई बंदिश नहीं
सोशल उन गिने चुने दफ्तरों में है जहां लोग अपनी पंसद के कपड़े पहनकर जा सकते है. बॉस आदि का कोई चक्कर नहीं. मन किया तो बार से एक ड्रिंक भी लिया जा सकता है.
कई और फायदे
इस को-वर्किंग स्पेस में अलग अलग क्षेत्र के लोगों से मुलाकात और बातचीत का मौका तो मिलता ही है, साथ में मुफ्त इंटरनेट और नेटवर्किंग इवेंट्स में जाने का न्योता भी मिलता है.
दफ्तर में मिलते साझेदार
कई युवाओं को ऐसे को-वर्किंग स्पेस में बातचीत के दौरान ही कारोबार के लिए सहयोगी भी मिले. यहां मिलने वाले कुछ युवा आज कुछ कंपनियों के संस्थापक और सहसंस्थापक हैं.
काम खत्म और पार्टी शुरू
हर वीकेंड में सोशल में पार्टी भी होती है. इमारत के भीतर म्यूजिक और डीजे का भी पूरा इंतजाम है.
भारत का नया चेहरा
वीकेंड पर रात को एक बजे तक डांस फ्लोर खुला रहता है. इस दौरान युवा डांस का लुत्फ भी उठाते हैं. रविवार रात हर चीज की सफाई होती है और सोमवार से इमारत फिर दफ्तर और रेस्तरां बार में बदल जाती है.