भारत में छटपटाती क्षेत्रीय भाषाएं
३ अप्रैल २०१८अगले 50 वर्ष में भारत में 400 क्षेत्रीय भाषाएं लुप्त हो सकती हैं. सबसे ज्यादा खतरा छोटे छोटे आदिवासी समुदायों की भाषा पर मंडरा रहा है. ऐसी कई भाषाएं हैं जो सिर्फ बोली जाती हैं. उन्हें अभी तक लिपिबद्ध नहीं किया गया है. ऐसी ही एक भाषा है गोंडी. छह राज्यों में करीब 1.2 करोड़ लोग इसे बोलते हैं. लेकिन अभी तक गोंडी के लिए कोई मानक लिपि नहीं है, इसी वजह से भाषा भी लुप्त होने का खतरा झेल रही है.
अब गोंडी को बचाने के लिए दक्षिण भारतीय राज्य तेलंगाना में आम नागरिकों ने पहले की है. उन्होंने गोंडी के लिए एक मानक डिक्शनरी तैयार की है. इस डिक्शनरी के जरिए शिक्षा, पत्रकारिता और प्रशासनिक काम से जुड़े गोंडी के शब्द लोगों के सामने लाए जाएंगे. डॉयचे वेले से बात करते हुए गैर सरकारी संगठन सीजीनेट स्वरा के शुभ्रांशु चौधरी कहते हैं, "कई साल के काम के बाद, हम गोंडी की डिक्शनरी तैयार करने के करीब है और मानक लिपि पर भी काम कर रहे हैं."
गोंडी को पुनरजीवित करने के प्रोजेक्ट से जुड़े लेक्चरर निलांजन भौमिक के मुताबिक अगर लोग मानक भाषा पेश करेंगे तो राज्य सरकार भी आधिकारिक रूप से उसे मान्यता देने के लिए विवश होगी. भौमिक को लगता है कि भाषा के विकास के लिए यह एक बड़ा कदम होगा. लेकिन सब कुछ इतना आसान भी नहीं है. भौमिक कहते हैं, "बेरोजगारी के चलते बड़ी संख्या में छात्रों ने स्कूल छोड़ा है और समुदाय में अकेलेपन की भावना भी घर कर गई है."
बेरोजगारी और पिछड़ेपन के चलते कई गोंड युवा माओवाद की राह पर निकल पड़े. माओवादी विद्रोही, गोंड समुदाय के आर्थिक और राजनीतिक कटाव का फायदा उठाते रहे हैं. भाषा मामलों के सलाहकार महेंद्र कुमार मिश्रा कहते हैं, "गोंड लोगों को किसी ऐसे सिस्टम की जरूरत है जो उनकी समस्याएं उन्हीं की भाषा में सुने. और इसीलिए हमने भाषा को पुनरजीवित करने का अभियान छेड़ा है. गोंड समुदाय की अपनी संस्कृति और राजनीतिक पहचान है, जिसे उनकी भाषा से जोड़ा जा सकता है."
आदिवासियों तक पहुंचने की सरकार की कोशिशों को अक्सर भाषा की परेशानी से गुजरना पड़ता है. मानक भाषा न होने की वजह से संवाद में अक्सर अधूरापन या असमंजस बाकी रह जाता है. अब गोंडी भाषा की डिक्शनरी को मानव संसाधन विकास मंत्रालय में जमा कराने की योजना बन रही है. उम्मीद है कि अधिकारी जल्द ही 1.2 करोड़ लोगों की भाषा को आधिकारिक रूप से भाषा का दर्जा देंगे.
भारत की शिक्षा प्रणाली में बगैर मानक लिपि वाली भाषा की कोई जगह नहीं है. गोंडी, भिली, संथाली समेत सैकड़ों क्षेत्रीय भाषाओं को बोलने वाले लोग भी कई राज्यों में फैल चुके हैं. पलायन कर शहर में बसी पहली पीढ़ी अपनी क्षेत्रीय मातृभाषा बोल लेती है, लेकिन दूसरी पीढ़ी तक आते आते भाषा का प्रवाह सूख सा जाता है. यही वजह है कि भारत की सैकड़ों भाषाएं आज अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही हैं.
मुरली कृष्णन/ओएसजे