1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

21वीं सदी में पड़े "चुड़ैल" के पीछे?

२६ जुलाई २०१५

21वीं सदी में रहते हुए इंसानों को डायन या चुड़ैल की संज्ञा देना और उनकी जान लेना हैरान करता है. डीडब्ल्यू ने भारत की प्रसिद्ध कानून विशेषज्ञ इंदिरा जयसिंह से इसका कारण जानने की कोशिश की.

https://p.dw.com/p/1G4LK
तस्वीर: picture-alliance/dpa

हाल ही में पूर्वोत्तर भारत में एक महिला को चुड़ैल बताकर उसका सिर कलम कर देने की घटना हुई. जादू टोने के खिलाफ कई कड़े कानूनों के होने के बावजूद भारत के कुछ राज्यों से समय समय पर ऐसी वारदातें होती रहती हैं. असम में 63 साल की एक महिला की उसका सिर काट कर हत्या करने का मामला प्रकाश में आने पर डीडब्ल्यू ने भारत के सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह से इस विषय पर खास बातचीत की. जयसिंह का मानना है कि डायन या चुड़ैल बताकर की जा रही हत्याओं के पीछे अंधविश्वासों के अलावा कई बार सामाजिक वर्गों और लिंगों के बीच भेदभाव कारण होता है और लोग बदला लेने के लिए ऐसे तरीकों का इस्तेमाल करते हैं.

डीडब्ल्यू: क्या वाकई भारतीय गांवों में जादू टोने का चलन है?

इंदिरा जयसिंह: माना जाता है कि विचक्राफ्ट (जादू टोना) आज भी भारत में कई जगहों पर होता है, लेकिन मैं इतना तो पक्के तौर पर जानती हूं कि देश में डायन जैसी कोई चीज नहीं है. फिर भी, ऐसे हिंसा और हत्या के अपराधों का शिकार ज्यादातर महिलाएं ही बनती हैं. लोककथाओं में जरूर कई जादुई शक्तियों वाली डायनों के बारे में बताया गया है और अखबारों में छपने वाली रिपोर्टों से पता चलता है कि कुछ लोग अपना इलाज करवाने के लिए डायनों के पास जाते हैं.

Indira Jaising
इंदिरा जयसिंह भारत के सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ अधिवक्ता और लॉयर्स कलेक्टिव नामक गैर सरकारी संगठन की संस्थापक हैं.तस्वीर: Indira Jaising

इस पृष्ठभूमि में खुद को धार्मिक नेता बताने वाले आसाराम बापू के हाल ही के खुलासे उल्लेखनीय है. उनके अनुयायी मानते हैं कि उनके गुरू के पास जादुई शक्तियां हैं और वे उनके पास कई तरह की तकलीफों के इलाज के लिए जाते हैं. वह (आसाराम) फिलहाल ऐसे ही एक हीलिंग सेशन के दौरान एक अवयस्क लड़की का यौन उत्पीड़न करने के मामले में अंडर ट्रायल हैं. लेकिन उन्हें "विच" के तौर पर कलंकित नहीं किया गया.

लोगों को भूत या डायन के रूप बदनाम कर उन पर जुल्म ढाना या हत्या कर देना कितना आम है?

साल 2002 से विच-हंटिंग ने केवल असम में ही करीब 130 जानें ली हैं, इनमें ज्यादातर महिलाएं थीं. राज्य के कुल 27 में से 17 जिले इससे प्रभावित हैं. छत्तीसगढ़ में ऐसे जादू टोने से जुड़े करीब 1,500 ट्रायल हुए, जिनमें से 210 मामले 2001 से 2013 के बीच इससे जुड़ी हत्याओं के थे. अक्सर, यह हमले केवल एक बहाना होते हैं. इसके पीछे असल बात किसी तरह के भेदभाव या अधिकारों के हनन से जुड़े होते हैं.

ओडिशा के माओवादी प्रभावी क्षेत्रों में विच हंटिंग का भारी असर है. यह अपेक्षाकृत ठीकठाक समृद्ध और गैर आदिवासी बेल्ट में भी होता है. इन राज्यों के अलावा नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) ने ऐसी कई घटनाएं झारखंड, हरियाणा और कर्नाटक में भी दर्ज की हैं. यह कुछ ही राज्यों के कुछ खास क्षेत्रों में ही होते हैं और इसे राष्ट्रव्यापी घटना नहीं माना जा सकता. भारत सरकार के ताजा आंकड़े दिखाते हैं कि 2000 से 2012 के बीच जादू टोना करने के आरोप में देश भर में लगभग 2,100 लोगों की हत्या हुई, जिसमें भी ज्यादातर महिलाएं थीं.

इन लोगों को जान से क्यों मारा जाता है?

अधिकतर महिलाओं को ही सूखा, भूखमरी, पानी की कमी जैसी समाज की सभी बुराइयों के लिए बलि का बकरा बनाया जाता है. इसके कई कारण हैं जैसे समाज में व्याप्त पितृसत्तात्मक सोच, निरक्षरता, अंधविश्वास और स्वास्थ्य सेवाओं की कमी है. कई बार यह महिलाओं से संपत्ति के अधिकार छीनने का भी जरिया बनता है. उदाहरण के तौर पर, ऐसे कई मामले हैं जिन में लोगों ने विधवाओं की जमीन और संपत्ति के लिए उन्हें निशाना बनाया है.

कभी कभी ऐसे अपराध पढ़े लिखे और तुलनात्मक रूप से विकसित इलाकों में भी होते हैं. बांझ, अविवाहित या विधवा महिलाओं के इस प्रकार के अपराध का निशाना बनाना ज्यादा आसान होता है. कई बार तो किसी मानसिक रोग या हार्मोनल असंतुलन से पीड़ित महिला को जादू टोने करने वाला घोषित कर दिया जाता है. ऐसी लड़कियों को परिवार वाले इलाज के लिए किसी स्थानीय झाड़फूंक करने वाले के पास ले जाते हैं. यह सब इसका भी नतीजा है कि सरकार अब तक उन सभी लोगों तक स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया करवा पाने में असफल रही है जिन्हें इसकी सबसे अधिक आवश्यकता है. और हां, विच हंटिंग एक जाति आधारित कुरीति भी है, जिसमें उच्च जाति के लोग गरीब और आदिवासियों को डायन के रूप में कलंकित कर देते हैं.

ऐसी हरकतों के खिलाफ बने कानून असरदार क्यों नहीं?

कई राज्यों ने विचक्राफ्ट और दूसरी अपरम्परागत प्रथाओं के विरूद्ध अपने कई कानून बनाए हैं समस्या इनको लागू करने में है. मिसाल के तौर पर, 2008 से असम में दर्ज हुए ऐसे 15 फीसदी मामलों में जांच अंधी गलियों में जाकर खत्म हुई है, जब पुलिस ने कह दिया है कि किसी भी आरोपी की पहचान नहीं की जा सकी. समुदाय के लोगो को और ज्यादा सशक्त बनाने की जरूरत है तभी उनके फायदे के कानूनों को ठीक से लागू किया जा सकेगा.

ऐसे अपराधों को रोकने के लिए क्या किया जाना चाहिए?

"विच-हंटिंग" कोई अलग थलग अपराध नहीं है. बल्कि यह महिलाओं के साथ हो रही तमाम तरह की हिंसाओं का ही एक रूप है. असमानता और लिंग आधारित भेदभाव ऐसे मुद्दे हैं जिन पर कई स्तरों पर ध्यान देने की जरूरत है. ग्रासरूट पर जागरूकता फैलाने से इसकी शुरुआत होनी चाहिए जिससे नीतियां भी बेहतर होंगी.

नागरिकों और सरकार को सबसे निचले स्तर पर भी साथ मिलकर लोगों की मानसिकता बदलने की ओर काम करना होगा. यह सूचना, शिक्षा और संचार के प्रसार के साथ ही हो सकता है. मीडिया भी इसमें एक शक्तिशाली औजार है. ऐसे सामुदायिक संगठन बना सकते हैं जो ऐसी विचहंटिंग को रोकें और इसके शिकार बने लोगों और उनके परिजनों के लिए मुआवजे, पुनर्वास और समाज में सम्मिलित करने की दिशा में काम करें.

इंदिरा जयसिंह भारत के सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ अधिवक्ता और लॉयर्स कलेक्टिव नामक गैर सरकारी संगठन की संस्थापक हैं. लॉयर्स कलेक्टिव मानवाधिकारों को बढ़ावा देने का काम करता है. वह भारत की अतिरिक्त सोलिसिटर जनरल के रूप में नियुक्त की जाने वाली पहली महिला हैं.

इंटरव्यू: गाब्रिएल डोमिंगेज/आरआर