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भारत थ्री डी फिल्मों का बड़ा बाजार: भट्ट

७ मई २०११

गुलाम और आवारा पागल दीवाना जैसी मुख्यधारा की फिल्मों से अपनी पहचान बनाने वाले जाने माने निर्देशक विक्रम भट्ट का कहना है कि भारतीय दर्शक अब धीरे धीरे थ्री डी फिल्मों को पसंद कर रहे हैं और भारत ऐसी फिल्मों का बड़ा बाजार है

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Vikram Bhattतस्वीर: DW

विक्रम भट्ट मानते हैं कि थ्री डी फिल्मों का निर्माण आम फिल्मों के मुकाबले कठिन है. लेकिन सिनेमा की यह नई तकनीक शहरी ही नहीं, ग्रामीण इलाके के दर्शकों को भी लुभाने में कामयाब रहेगी. अपनी ताजा थ्री डी फिल्म हांटेड की रिलीज से पहले उन्होंने थ्री डी फिल्मों, इनकी तकनीक और दूसरे पहलुओं पर विस्तार से बातचीत की. यह फिल्म छह मई को भारत के सिनेमाघरों में रिलीज होगी. पेश हैं उस बातचीत के प्रमुख अंश:

डॉयचे वेले: 'गुलाम' और 'आवारा पागल दीवाना' जैसी मुख्य धारा की फिल्मों के साथ कामयाबी के बाद आप हॉरर फिल्मों की और कैसे आकर्षित हुए?

विक्रम भट्ट: मुझे हॉरर फिल्में बहुत पसंद हैं. डेविड धवन, करण जौहर और मधुर भंडारकर जैसे निर्देशक अपनी कहानियों में हास्य, प्रेम और सामाजिक विषयों को उठाते हैं. ठीक उसी तरह मैं लोगों को डराना पसंद करता हूं. हर फिल्मकार की एक विधा होती है. आज फिल्में भी एक ब्रांडेड दुनिया में तब्दील हो गई हैं और हर फिल्मकार या तो अपने ब्रांड को प्रस्तुत करता है अथवा दर्शक उसे किसी खास ब्रांड में शामिल कर देते हैं. मेरा झुकाव थ्रिलर और हॉरर विधा के प्रति रहा है.

Flash-Galerie Internationales Trickfilm Festival Stuttgart 2011
तस्वीर: Internationales Trickfilm-Festival Stuttgart

डॉयचे वेले: एक आम आदमी की भाषा में 3डी को कैसे परिभाषित करेंगे?

विक्रम भट्ट: 3डी के शुरुआती दिनों में फिल्मों को 2डी से परिवर्तित किया जाता था. गहराई के भ्रम को सृजित करने के लिये उसे विशेष चश्मों से देखा जाता था, जो 3डी की विशेषता होती है. 3डी की नई तकनीक के जरिए बायीं और दायी आंख के दो परिदृश्यों से एक दृश्य को ध्रुवीकृत प्रकाश के इस्तेमाल से देखा जाता है और इन स्टीरियोस्कोपिक आकृतियों को सुपरइंपोज कर गहराई का भ्रम उत्पन्न किया जाता है. इस समय 3डी फिल्में स्पेशल 3डी स्टीरियोस्कोपिक डिजिटल मोशन पिक्चर कैमरा से शूट की जाती हैं और विशेष रुप से डिजाइन की गई रिग्स हाई डेफिनीशन डिजिटल इमेजेज की फिल्मिंग के बजाय स्पेशल सेंसर्स का इस्तेमाल करती हैं. जब फिल्म को देखा जाता है तब इसमें स्पेशल प्रोजेक्शन इक्विप्मेंट और स्पेक्टेकल्स का इस्तेमाल होता है, जो गहराई के भ्रम का सृजन करते हैं. इस नई तकनीक को इस प्रकार विकसित किया गया है कि इसमें चश्मों की जरुरत नहीं पड़ती और इसमें प्लाज्मा स्क्रीन्स का एक आधार शामिल होता है.

Flash-Galerie Internationales Trickfilm Festival Stuttgart 2011
तस्वीर: Internationales Trickfilm-Festival Stuttgart

डॉयचे वेले: राज और 1920 की सफलता के बाद हांटेड में क्या अलग है?

विक्रम भट्ट: मैं अपनी फिल्मों के जरिए दर्शकों को आकर्षित करने और उनको डराने में सफल रहा हूं. हॉरर अत्यंत मूल भावना की बिक्री करता है, जो डर का प्रतीक है. हॉरर और 3डी का एक साथ होना सबसे डरावना संयोजन है. मेरी फिल्में कमजोर दिल वाले लोगों के लिए नहीं हैं. पिछली तीन फिल्मों की कामयाबी के बाद लोग चाहते थे कि मैं एक और फिल्म बनाऊं. लेकिन मैं अपनी पहले बनी फिल्मों की तरह नई फिल्म नहीं बनाना चाहता था। मुझे 3डी का प्रारुप काफी आकर्षित लगा, जो कि कुछ अलग हट कर था.

डॉयचे वेले: क्या हांटेड को 3डी में बनाना सुविधाजनक था?

विक्रम भट्ट: 3डी फिल्म एक ऐसी चीज है जिसके बारे में सोचना काफी रोमांचक और आनंददायक होता है. लेकिन इसे बनाना आप के किसी सबसे भयावह दुःस्वप्न के सच होने के समान है. हॉलीवुड से यह तकनीक विकसित होने के दो साल बाद यहां आई है. यहां पर 3डी अब भी काफी नया है और यह सनसनी फैलाने के लिये बेताब है. इसे बनाने में काफी मेहनत करनी पड़ी. लेकिन इसका अंत काफी संतोषजनक था. हमारी मेहनत कामयाब रही है.

Hannover Messe 2011 Flash-Galerie
तस्वीर: Deutsche Messe Hannover

डॉयचे वेले: एक 3डी फिल्मों के निर्माण की प्रक्रिया कितनी चुनौतीपूर्ण है?

विक्रम भट्ट: यह बेहद चुनौतीपूर्ण है. पहले दिन हम केवल दो शॉट्स ही ले सके. इस माध्यम को समझना बहुत मुश्किल था, क्योंकि 3डी एडिटिंग में फ्रेमिंग काफी मुश्किल है। 3डी कैमरा काफी बड़ा होता है, इसलिये इसे जिमी जिब अथवा स्टीडी कैम पर नहीं लगाया जा सकता है. इसमें जूम लेंस का इस्तेमाल नहीं कर सकते, यहां तक कि इसमें स्लो मोशन का भी बहुत कम इस्तेमाल संभव हो पाता है. इसका संपादन भी काफी अलग है. लेकिन आप को इसे सीखने के लिये केवल एक दिन लगेगा. जब आप अपने काम को जान जाते हैं, तब आप उसे तकनीकी तरीके से करने में सक्षम होते हैं. लेकिन जो निर्देशक तकनीकी रूप से बेहतर नहीं हैं, उन्हें यह मुश्किल होगा.

डॉयचे वेले: ज्यादातर लोग अब भी एनिमेशन और बच्चों की फिल्मों के लिये ही 3डी से सरोकार रखते हैं. आप इस छवि को बदलने का प्रयास कैसे कर रहे हैं?

विक्रम भट्ट: हर दर्शक के अंदर एक बालक होता है. आपकी उम्र अधिक भी हो तो भी आप फिल्म देखते समय मनोरंजन पसंद करते हैं. इसलिए मैंने सोचा कि क्यों न वयस्कों के लिए एक मनोरंजक फिल्म बनाई जाए? मैं तो कहता हूं कि भविष्य में सभी फिल्में 3डी में बनेगीं. मुझे अच्छी तरह से यह याद है कि अग्निपथ के निर्माण के दौरान जब मैं मुकल आनंद का सहायक था तब फोरट्रैक स्टीरियो का इस्तेमाल किया गया था. और लोगों ने कहा कि आप ऐक्शन फिल्म में इसका इस्तेमाल कर रहे हैं. लेकिन आज सभी फिल्में डोल्बी स्टीरियो में रेकार्ड हो रही हैं. जब हम किसी चीज को स्वीकार करते हैं तो वह हमारे क्रियाकलापों का एक हिस्सा बन जाती है.

डॉयचे वेले: बॉलीवुड में आजकल चर्चा है कि क्या दूसरे फिल्मकार भी 3डी तकनीकी अपनाएंगे?

विक्रम भट्ट: अगर आप एक 3डी फिल्म बना रहे हैं तो वास्तव में इसका निर्माण काफी मुश्किल और भिन्न होता है। ढ़ेर सारे लोग कन्वर्जन 3डी का निर्माण करते हैं. लेकिन यह दर्शकों को वास्तविक 3डी अनुभव नहीं करा पाती और इसकी क्वालिटी काफी खराब होती है. हांटेड 3डी में आधुनिकतम 3डी तकनीक का इस्तेमाल हुआ है, जैसा ‘अवतार' में किया गया था. असली 3डी के टेक में काफी धैर्य तथा मेहनत की जरूरत होती है. 110 मिनट की फिल्म बनाने के लिए हमें 86 दिनों तक शूटिंग करनी पड़ी.

डॉयचे वेले: क्या भारत में 3डी फिल्में कामयाब होंगी और क्या भारतीय दर्शक इसे स्वीकार करेंगे?

विक्रम भट्ट: भारतीय दर्शकों ने 3डी फार्मेट में पहले रिलीज हुई फिल्मों को काफी पंसद किया था. उन फिल्मों ने भारत में काफी अच्छा व्यवसाय भी किया था. भारत में 3डी स्क्रीन की तादाद काफी तेजी से बढ़ी है. पहले यह लगभग 50 थी. अब इसकी तादाद दो सौ से ऊपर पहुंच गई है. मुझे भरोसा है कि यह वृद्धि अतीत की तरह सिर्फ शहरी क्षेत्रों में सीमित न रह कर कस्बों और ग्रामीण इलाकों में तेज होगी.

वार्ताकार: प्रभाकर, कोलकाता

संपादन: उभ