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भारत-चीन संबंध

२२ जनवरी २०१०

हमारे कार्यक्रमों तथा अन्य जानकारियों के लिए श्रोता अक्सर हमारी वेबसाइट देखते हैं, आइए जानते हैं उनके विचार. क्या सोचते हैं हमारे श्रोता.

https://p.dw.com/p/Le2y
तस्वीर: AP

कल ही पहली बार नज़र पड़ी. जिज्ञासा थी तो हो लिए एंटर. ख़बरों का तेवर और कलेवर बिल्कुल अलग. भाषा भी बेहद सटीक और प्रभावी. जानिए जर्मनी को सैक्शन पर क्लिक किया तो जर्मनी के बारे में काफी कुछ देखा. हालांकि कुछ खास पढ़ नहीं पाए हैं फिर भी डॉयचे वेले का हमारी ऑनलाइन फैमली में स्वागत है.

संदीप गुप्ता, बिज़नस रिपोर्टर, नफा नुकसान हिंदी डेली, जयपुर

सिंफनी कार्यक्रम में अवतार फिल्म की चर्चा आयी. फिल्म की रिकॉर्ड कमाई हुई है मगर कल्पना सत्य तो नहीं हो सकती. मान लीजिये किसी ग्रह पर मानव जीवन मिल भी जाए तो उससे मानवता का क्या भला होगा. अपनी पृथ्वी पर ही भूख, ग़रीबी, बीमारियों जैसी अनेकों समस्यायें हैं उन्हें दूर करने के स्थान पर करोड़ों रूपयों की योजनायें दूसरे ग्रहों की जानकारियां प्राप्त करने के लिये बर्बाद किया जाना तर्क संगत नहीं. पृथ्वी व ब्रहमांड कैसे बने इस जानकारी का भी कोई सार्थक उपयोग समझ नहीं आता.

कमलेश कुमार सक्सेना, गाड़ीघाट, कोटद्वार, उत्तराखंड

वेबसाइट पर प्रेस समीक्षा काफी प्रेरणादायी और सार्थक लगी. भारत का चीन के साथ लंबा सीमा विवाद अभी तक सुलझा नही है. भारत-चीन सीमा पर तनाव बना रहता है. जिसका प्रभाव दोनों देशों के आपसी संबंधों पर पड़ता है. 1950 के दशक में चीन औऱ भारत के संबंध इतिहास के सब से अच्छे काल में थे. दोनों देशों के शीर्ष नेताओं ने तब एक-दूसरे के यहां की अनेक यात्राएं की और उनकी जनता के बीच भी खासी आवाजाही रही. दोनों देशों के बीच तब घनिष्ठ राजनीतिक संबंध थे लेकिन, 1960 के दशक में चीन व भारत के संबंध अपने सब से शीत काल में प्रवेश कर गये. इस के बावजूद दोनों के मैत्रीपूर्ण संबंध कई हजार वर्ष पुराने हैं इसलिए, यह शीतकाल एक ऐतिहासिक लम्बी नदी में एक छोटी लहर की तरह ही था. 70 के दशक के मध्य तक वे शीत काल से निकल कर फिर एक बार घनिष्ठ हुए. चीन-भारत संबंधों में शैथिल्य आया, तो दोनों देशों की सरकारों के उभय प्रयासों से दोनों के बीच फिर एक बार राजदूत स्तर के राजनयिक संबंधों की बहाली हुई. 1980 के दशक से 1990 के दशक के मध्य तक चीन व भारत के संबंधों में गर्माहट आ चुकी थी. हालांकि वर्ष 1998 में दोनों देशों के संबंधों में भारत द्वारा पांच मिसाइलें छोड़ने से फिर एक बार ठंडापन आया. पर यह तुरंत दोनों सरकारों की कोशिश से वर्ष 1999 में भारतीय विदेशमंत्री की चीन यात्रा के बाद समाप्त हो गया. अब चीन-भारत संबंध कदम-ब- कदम घनिष्ठ हो रहे हैं.

इधर के वर्षों में चीन-भारत संबंधों में निरंतर सुधार हो रहा है. चीन व भारत के वरिष्ठ अधिकारियों के बीच आवाजाही बढ़ी है. वर्ष 2003 में भारतीय प्रधानमंत्री वाजपेई ने चीन की यात्रा की. उन्होंने चीनी प्रधानमंत्री वन चा पाओ के साथ चीन-भारत संबंधों के सिद्धांत और चतुर्मुखी सहयोग के घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किये. इस घोषणापत्र ने जाहिर किया कि चीन व भारत के द्विपक्षीय संबंध अपेक्षाकृत परिपक्व काल में प्रवेश कर चुके हैं. दोनो के बीच का कथित सामान्य संबंध इन संबंधों पर मंडराते अविश्वास को मिटा नहीं सकता.चीन का बढ़ता आर्थिक और राजनैतिक प्रभाव इस बात का संकेत है कि भारत भी अपनी आर्थिक व सामरिक क्षमताओं का विस्तार करे आने वाले समय में हिन्द महासागर पर नियंत्रण के लिए विश्व महाशक्तियों के बीच शक्ति संघर्ष होना निश्वित जान पड़ता है भारत को विश्व में और विशेषतौर पर एशिया में अपने मित्रों की संख्या बढ़ानी पड़ेगी. वैसे भारत की नीती चीन के साथ आपसी समझ व विश्वास बढ़ाने की रही है.

रवि शंकर तिवारी, पीतमपुरा, नई दिल्ली