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भारत के लिए सस्ती कार बनाएगी रेनॉ

१६ दिसम्बर २०१२

भारत में कामयाबी की मिसाल बना मारुति सुजुकी का सस्ती गाड़ी वाला फॉर्मूला टाटा, हुंडई, फोर्ड और निसान से होता हुई रेनॉ तक पहुंच गया है. कंपनी बहुत जल्द तीन लाख से कम कीमत में भारतीय बाजार के लिए गाड़ी बनाने जा रही है.

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तस्वीर: Eric Piermont/AFP/GettyImages

यूरोपीय बाजारों में नुकसान उठा रही फ्रांस की रेनॉ कार कंपनी खुद को उबारने के लिए अब भारत की तरफ देख रही है. भारतीय बाजार में घुसने के लिए लोगान जैसे शुरुआती मॉडल लाने वाले जेरार्ड डिटोर्बे अब और सस्ती कार बनाने के नए मिशन में जुट गए हैं. ऐसी गाड़ी जो मारुति सुजुकी और हुंडई को टक्कर दे सके. जेरार्ड ने कहा, "ऐसा नहीं कि हम ग्राहकों का शिकार करने निकले हैं लेकिन ऐसा होता है कि वो लोग कभी कभी सुजुकी औरर हुंडई से हमारे पास आते हैं."

सुजुकी मोटर कॉर्प ने इस मामले में भारत को अपनी पकड़ में रखा है, उसकी सहयोगी कंपनी मारुति के कारों की कीमत ढाई लाख रुपये से शुरू हो जाती है. देश में एक साल में बिकी करीब 26 लाख कारों में 10 लाख अकेले मारुति ने बेचे हैं. कोरियाई कंपनी हुंडई भी देर सबेर इसी रास्ते पर आ गई है. कंपनी ने अपने इयॉन मॉडल का मिनी संस्करण भी बाजार में पेश कर दिया है जिसकी कीमत तीन लाख के करीब ही शुरू हो जाती है. रेनॉ इस बाजार में ज्यादा जगह वाली कार इसी कीमत पर पेश करने की योजना लेकर आई है. रेनॉ और उसके साथ 43.4 फीसदी शेयरों वाले जापानी सहयोगी निसान ने पल्स और माइक्रा के साथ पहले ही चेन्नई के फैक्टरी के जरिए भारतीय बाजार में कदम रख दिए हैं. अप्रैल- नवंबर के बीच इस साझा कंपनी ने कुल कार बाजार के 3 फीसदी हिस्से पर अपना कब्जा जमाया.

Genfer Autosalon 2012
तस्वीर: Renault Deutschland

साढ़े पांच हजार डॉलर की कीमत के दायरे में तैयार कार सस्ती कारों के बाजार को ध्यान में रख कर बनाई जा रही है. भारत के साथ ही इसमें ब्राजील और रूस के बाजार तक भी पहुंच बनाने की कोशिश रहेगी जहां फॉक्सवैगन और जरनल मोटर्स के साथ ही दूसरी कंपनियों का बोलबाला है. हालांकि डिटोर्बे का कहना है, "इतनी कीमत पर आधुनिक कार सिर्फ भारत में ही दिखती हैं. वैसे एक बार आप दुनिया की सस्ती कार बनाने वाले के साथ मुकाबले में उतर जाएं तो आप ऐसी किसी भी जगह जा सकते हैं जहां मारुति सुजुकी नहीं है."

डिटोर्बे रेनॉ की सस्ती कारों के कार्यक्रम के मुखिया है. लोगान सीरीज के जरिए डस्टर एसयूवी और लॉजी मिनीवैन के जरिए उन्होंने कंपनी के लिए कमाई का बड़ा दरवाजा खोला है. इनके दम पर ही रेनॉ फोर्ड और पीजो वाली हालत नहीं हुई. उसे न तो नौकरियों में कटौती करनी पड़ी ना ही कोई प्लांट बंद करना पड़ा. 12 हजार यूरो यानी करीब साढ़े आठ लाख रुपये कीमत वाली डस्टर एसयूवी ने कंपनी को बढ़िया मुनाफा दिया है और इसकी आधी से ज्यादा बिक्री यूरोप के बाहर हुई है.

अंतिम लक्ष्य

रेनॉ रोमानिया और मोरक्को में बनी सस्ती कारों को डाचिया के नाम से यूरोप में बेचती है. यूरोपीय बाजारों में इन कारों ने सफलता तो बहुत हासिल की है लेकिन फ्रांस में इन्हें लेकर विवाद भी हुआ है. कंपनी पर इस बात के लिए दबाव बन रहा है कि जो पैसा उसने डाचिया को विकसित करने में लगाया वह रेनॉ के लिए नए मॉडल तैयार करने में भी खर्च किया जा सकता था. रेनॉ की लोगान यूरोप में तो बड़ी कामयाब रही लेकिन भारत में यह लोगों को उतना नहीं लुभा सकी. रेनॉ ने महिंद्रा एंड महिंद्रा के साथ इन्हें बनाने का करार भी बाद में रद्द कर दिया और फिर बजाज के साथ मिल कर टाटा की नैनो को टक्कर देने के लिए बेहद सस्ती कार बनाने पर भी विचार किया गया. नैनो जब टाटा की उम्मीदों को ही पूरी नहीं कर सकी तो फिर इस योजना पर इस साल विचार बंद कर दिया गया.

अब डिटोर्बे अपनी नई योजना के साथ आगे बढ़ रहे हैं और 2014 तक नई कार लेकर बाजार में उतरेंगे.

एनआर/एमजे (रॉयटर्स)

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