भारत और अमेरिका लगाएंगे मिलकर गश्त
१० फ़रवरी २०१६अमेरिका चाहता है कि कि एशिया में उसके समर्थक देश दक्षिण चीन सागर के मुद्दे पर चीन के खिलाफ कड़ा रुख अपनाएं. अमेरिकी अधिकारियों के मुताबिक अमेरिका दक्षिण चीन सागर में चीन के खिलाफ ज्यादा से ज्यादा एशियाई देशों का क्षेत्रीय गठबंधन बनाना चाहता है. चीन द्वारा स्प्रैटली आर्किपेलागो में 7 कृत्रिम द्वीप बनाने की घटना ने भी विवाद को भड़काया है.
अमेरिकी राष्ट्रीय उपसुरक्षा सलाहकार बेन रोड्स ने पत्रकारों से कहा कि चीन सागर का विवाद अंतरराष्ट्रीय नियमों के तहत हल किया जाना चाहिए. इंटरनेशनल लॉ किसी भी देश को उनकी समुद्री सीमा से 12 नॉटिकल मील तक के क्षेत्र में जाने का अधिकार देता है. उसके बाद इंटरनेशनल बॉर्डर का एरिया शुरू हो जाता है. कोई भी देश इस सीमा के बाहर किसी क्षेत्र पर दावा नहीं कर सकता.
हालांकि, भारत ने कभी किसी देश के साथ संयुक्त पैट्रोलिंग में हिस्सा नहीं लिया है. हिन्द महासागर में नौसैनिक अभ्यास भारत और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय था, लेकिन अब जापान भी इसका स्थायी सहभागी है, जिससे चीन असहज हुआ है.
एक नौसैनिक अफसर ने बताया कि भारत की नीति में कोई बदलाव नहीं आया है. इसके तहत वह यूएन के झंडे तले किसी भी अंतरराष्ट्रीय सैन्य अभियान में भाग लेने को तैयार है. उन्होंने बताया कि भारत अदन की खाड़ी में समुद्री लुटेरों के खिलाफ 2008 से चलाए जा रहे कुछ देशों के ऑपरेशन में शामिल होने से इनकार करता रहा है.
दक्षिण चीन सागर में अमेरिका और भारत की संयुक्त गश्त किस पैमाने की होगी अभी यह स्पष्ट नहीं किया गया है. चीन इस समय नए साल के जश्न मना रहा है. इस मामले में अभी चीन की तरफ से कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है. दक्षिण चीन सागर पर भारत और अमेरिका दोनों का ही अधिकार नहीं है लेकिन दोनों का कहना है कि वे दक्षिण चीन सागर में अपना जहाज भेजना या उसके ऊपर से उड़ान भरने को आजाद हैं. वह इलाका फ्रीडम ऑफ नेविगेशन के दायरे में आता है. विवाद की स्थिति में दोनों देशों का मानना है कि इसका हल अंतरराष्ट्रीय लॉ के दायरे में होना चाहिए.
विश्व व्यापार का 5 खरब डॉलर से ज्यादा हिस्सा दक्षिण चीन सागर से होकर गुजरता है. वियतनाम, मलेशिया, ब्रुनेई, फिलीपींस और ताइवान भी इस पानी में अपने हिस्से की दावेदारी करते हैं. भारत का चीन के साथ सालों से सीमा विवाद चल रहा है. हालिया सालों में भारत का मकसद पड़ोसी को भड़काने के बजाय उसके साथ उसके साथ आर्थिक साझेदारी को बढ़ावा देना रहा है. लेकिन ज्वाइंट पेट्रोलिंग के लिए अमेरिका से हाथ मिलाना बड़ा कदम है.
एसएफ/एसएफ (रॉयटर्स)