1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

भारत अमेरिका संबंधों में वीसा की दरार

४ मार्च २०१६

भारत ने अमेरिका की धार्मिक स्वतंत्रता को मोनीटर करने वाली एजेंसी के प्रतिनिधिमंडल को भारत आने का वीसा नहीं दिया है. कुलदीप कुमार का कहना है कि अमेरिका के साथ संबंधों को बेहतर बनाने की भारत की कोशिश में दरार दिख रहे हैं.

https://p.dw.com/p/1I7Bm
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Harish Tyagi

प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने हरचंद कोशिश की कि अमेरिका के साथ भारत के संबंधों में जो गतिरोध या गतिहीनता आ गई थी, उसे दूर किया जाए और एक बार फिर दोनों देशों के बीच प्रगाढ़ संबंध स्थापित हो जाएं. लेकिन भारत के प्रधानमंत्री द्वारा अमेरिका के राष्ट्रपति को गले लगाने का यह अर्थ नहीं है दोनों देश एक-दूसरे के साथ गले मिल रहे हैं. इसलिए अब यह स्पष्ट होता जा रहा है कि भारत-अमेरिका संबंधों में जैसी ऊष्मा देखी जा रही थी या जिसकी उम्मीद की जा रही थी, वैसी ऊष्मा है नहीं. दोनों देश अपने-अपने ढंग से निराशा और नाराजगी का इजहार कर रहे हैं और यह जता रहे हैं कि दोस्ती के बावजूद उनके हित और रुख काफी भिन्न हैं.

अमेरिकी अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग के एक प्रतिनिधिमंडल को आज अमेरिका से भारत के लिए रवाना होना था लेकिन उसे वीसा ही नहीं मिला और यह यात्रा रद्द करनी पड़ी. भारत ने उसे वीसा देने से इन्कार भी नहीं किया और अंतिम क्षण तक दिया भी नहीं. यह आश्चर्यजनक इसलिए भी है क्योंकि धार्मिक असहिष्णुता और अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न के लिए कुख्यात पाकिस्तान, म्यांमार, सऊदी अरब और चीन जैसे देश भी इस आयोग के प्रतिनिधिमंडल को अपने यहां आकर धार्मिक स्वतंत्रताओं का जायजा लेने से नहीं रोकते. चूंकि भारत एक लोकतांत्रिक देश है जहां अनेक धर्मों और संस्कृतियों के अनुयायी रहते हैं, इसलिए उसके द्वारा आयोग की यात्रा में अड़चन डालना अकारण नहीं हो सकता.

Brandanschlag an einer Kirche in Neu Delhi
चर्च पर हमलातस्वीर: Florent Martin

दरअसल पिछले वर्ष इस आयोग की रिपोर्ट में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद उत्पन्न स्थिति पर चिंता प्रकट की गई थी क्योंकि मुसलमानों और ईसाइयों पर हमले बढ़ने लगे थे और सत्तापक्ष से जुड़े लोग ही धार्मिक असहिष्णुता का माहौल बनाने में लगे थे. स्वाभाविक है कि भारत सरकार को यह आलोचना पसंद नहीं आई होगी और उसने वीसा देने में विलंब करके इस यात्रा को रद्द किए जाने की परिस्थिति बनाने का निर्णय लिया होगा.

भारत इस बात से भी कुछ नाराज है कि हाल ही में अमेरिका और पाकिस्तान के बीच प्रतिवर्ष होने वाले संस्थागत रणनीतिक संवाद के एजेंडे में औपचारिक रूप से कश्मीर के मुद्दे का पहली बार उल्लेख किया गया है. यह बात स्वाभाविक रूप से भारत को काफी नागवार लगी है. संवाद के बाद जारी संयुक्त बयान में अमेरिका की ओर से पाकिस्तान द्वारा आतंकवादी संगठनों और नेताओं के खिलाफ की गई कार्रवाई पर संतोष व्यक्त किया गया है जबकि इस यह बात सभी जानते हैं कि लश्कर-ए-तैयबा का जन्मदाता और जमात उद-दावा का मुखिया हाफिज सईद खुलेआम वहां भारत में जिहाद छेड़ने और बलपूर्वक कश्मीर पर कब्जा करने का आह्वान करता रहता है.

Indien Angriff auf Luftwaffenstützpunkt in Punjab
पठानकोट एयरबेस पर आतंकी हमलातस्वीर: Reuters/M. Gupta

26 नवंबर 2008 को मुंबई पर हुए आतंकवादी हमलों की साजिश भी उसी के नेतृत्व में रची गई थी. इन हमलों के दोषियों के खिलाफ कोई कारगर कदम नहीं उठाए गए हैं और पुलिस एवं अन्य जांच एजेंसियां अदालत में पुख्ता सुबूत पेश करने में हमेशा नाकाम रही हैं. भारत की सरकार और जनता इस बात को लेकर काफी असंतुष्ट है. लेकिन अमेरिका ने पठानकोट हमलों के संबंध में पाकिस्तान सरकार द्वारा उठाए गए कदमों पर संतोष प्रकट किया है.

दूसरी ओर भारत और अमेरिका के बीच असैन्य परमाणु ऊर्जा करार हो जाने के बाद अमेरिकी परमाणु उद्योग को यह आशा थी कि भारत अनेक परमाणु संयंत्र खरीदेगा लेकिन अभी तक इस दिशा में कोई उल्लेखनीय प्रगति नहीं हुई है. अमेरिका अपने रक्षा उपकरण और आयुध प्रणालियां भी भारत को उस मात्रा में बेचने में सफल नहीं हुआ है जिसकी उसे आशा थी. यानी दोनों देशों को एक-दूसरे से जो उम्मीदें थीं, वे अभी तक पूरी नहीं हो सकी हैं. जाहिर है कि इससे द्विपक्षीय संबंधों में ठंडापन और तनाव आने लगा है. इसके बावजूद आर्थिक कारणों से दोनों देश एक-दूसरे से बहुत दूर नहीं जा सकते.

ब्लॉग: कुलदीप कुमार