भागते लोगों की दास्तां
तुर्की से किसी तरह ग्रीस के द्वीप तक, वहां से बाल्कान होते हुए हंगरी तक, शरण की उम्मीद में पश्चिमी यूरोप तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हजारों लोग इसी राह पर हैं. एक नजर उनके दास्तां पर.
सीरिया के मोहम्मद
वह पेशे से अंग्रेजी के टीचर हैं. कुर्द होने की वजह से इस्लामिक स्टेट ने उनके इलाके और समुदाय को निशाना बनाया. मोहम्मद किसी तरह भागते भागते मेसेडोनिया पहुंचे हैं. वह जर्मनी पहुंचना चाहते हैं और पूछते हैं, "क्या जर्मनी में आप अंग्रेजी में काम कर सकते हैं."
मोरक्को के जमान
दोस्ती भरी मुस्कुराहट वाले जमान गैर कानूनी रूप से चार साल तक ग्रीस की राजधानी एथेंस में रह चुके हैं. वह कहते हैं, "वहां की पुलिस बहुत नस्लभेदी है." इसीलिए अब वो विस्थापितों के जत्थे में शामिल हो गए हैं. उन्हें लगता है कि जर्मनी में वह बेहतर जिंदगी जी पाएंगे.
इराक के अहमद
17 साल का अहमद काफी खून खराबा देखकर यहां तक पहुंचा है. "हमारे देश की सबसे बड़ी समस्या इस्लामिक स्टेट है. आतंकवादी जो हाथ पड़ता है उसे मार देते हैं." अहमद को बुल्गारिया में पुलिस ने पीटा और सब कुछ छीन लिया. सर्बिया की राजधानी बेलग्रेड में वह खुले में सो रहा है. अहमद जर्मनी पहुंचकर एक सुरक्षित जिंदगी जीना चाहता है.
अफगानिस्तान के मोहम्मद
दो बच्चों के पिता मोहम्मद का बेलग्रेड के सहायता केंद्र में इलाज चल रहा है. दूसरों की तरह उन्होंने तुर्की से ग्रीस आने के लिए कबूतरबाजों को पैसा दिया. वह और उनका परिवार बाल बाल बचा, "हमारी नाव डूब गई. मेरा पूरा परिवार घंटे भर तक पानी में था, तभी तुर्क तटरक्षक बल वहां पहुंचे."
सीरिया के मिलाद
राजधानी दमिश्क से भागे 27 साल के आईटी एक्सपर्ट जर्मन शहर फ्रैंकफर्ट पहुंचना चाहते हैं. सर्बिया के उत्तरी शहर सुबोटिचा में वो किसी "पाकिस्तानी" नागरिक का इंतजार कर रहे हैं जो सर्बिया और हंगरी की सीमा पुलिस को रिश्वत देकर मिलाद और उनके माता पिता को बॉर्डर पार कराएगा. 4,500 यूरो की रिश्वत.
अफगानिस्तान के फलात
25 साल के फलात अपने घर के हालात इन शब्दों में बताते हैं, "बुरी परिस्थितियां, हर दिन युद्ध." वह भी सुबोटिचा में कबूतरबाजों का इंतजार कर रहे हैं. पूरी यात्रा में उन्हें करीब 5,000 यूरो खर्च करने होंगे. रोज के बम धमाकों को पीछे छोड़ यहां तक पहुंचे फलात को हंगरी की सीमा पर लगी बाड़ की कोई परवाह नहीं. उन्हें भरोसा है कि वह जर्मनी पहुंच ही जाएंगे.